जब वह भी कुछ कह पायी
सहमत हो पति ने आज सुना
वह भी दिल हल्का कर पायी
आँखों में नया विश्वास जगा
आवाज में क्रंदन था उभरा
कुचली सी भावना आज उठी
कुचली सी भावना आज उठी
सोयी सी रुह ज्यों जाग उठी
हाँ ! बेटी जनी थी बस मैंने
तुम तो बेटे ही पर मरते थे
बेटी बोझ, परायी थी तुमको
उससे यूँ नजरें फेरते थे...
तिरस्कार किया जिसका तुमने
उसने देवतुल्य सम्मान दिया
निज प्रेम समर्पण और निष्ठा से
दो-दो कुल का उत्थान किया
आज बुढापे में बेटे ने
अपने ही घर से किया बेघर
बेटी जो परायी थी तुमको
बिठाया उसने सर-आँखोंं पर
आज हमारी सेवा में
वह खुद को वारे जाती है
सीने से लगा लो अब तो उसे
ये प्रेम उसी की थाती है.......
**********************
सच कहती हो,खूब कहो !
शर्मिंदा हूँ निज कर्मों से......
वंश वृद्धि और पुत्र मोह में
उलझा था मिथ्या भ्रमोंं से
फिर भी धन्य हुआ जीवन मेरा
जो पिता हूँ मैं भी बेटी का
बेटी नहीं बोझ न पराया धन
वह तो टुकड़ा अपने दिल का !!!!!!
चित्र- साभार गूगल से...
42 टिप्पणियां:
फिर भी धन्य हुआ जीवन मेरा
जो पिता हूँ मैं भी बेटी का
बेटी नहीं बोझ न पराया धन
वह तो टुकड़ा अपने दिल का !!!!!!
भावमय करती पंक्तियां ... अनुपम सृजन
सत्य दर्शन..सुधा जी सार्थक सृजन..
बहुत सुंदर संदेशपूर्ण रचना👌👌
ठोकर लगी और आँख खुली
समझ आया जब सबक मिला
बेटियाँ बेटों से कम नहीं होती
संवेदनशील है बेशरम नहींं होती
करो मान अपना मानो उन्हें भी
पवित्र गंगा से वो कम नहीं होती
फिर भी धन्य हुआ जीवन मेरा
जो पिता हूँ मैं भी बेटी का
बेटी नहीं बोझ न पराया धन
वह तो टुकड़ा अपने दिल का !!!!!! बेहद हृदयस्पर्शी रचना
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति सुधा जी मन को गहरे तक छू गयी।
एक सत्य जो देर से समझ आता है पर पराई होने पर भी माता पिता को बेटियां बहुत याद आती है।
बहुत सुंदर सार्थक सृजन।
आज बुढापे में बेटे ने
अपने ही घर से किया बेघर
बेटी जो परायी थी तुमको
बिठाया उसने सर-आँखोंं पर...बेहतरीन सृजन दी जी
सादर
बेहतरीन सृजन
सुंदर भाव
यथार्थ
बहुत बहुत धन्यवाद सदा जी !
आभार आपका....
आभारी हूँ श्वेता जी!बहुत ही सुन्दर पंक्तियां रचना को सार्थकता एवं पूर्णता प्रदान कर रही हैं...उत्साहवर्धन के लिए
बहुत बहुत धन्यवाद.... सस्नेह।
हृदयतल से धन्यवाद अनुराधा जी !
सादर आभार...।
जी, कुसुम जी! धन्यवाद आपका उत्साहवर्धन के लिए...
सस्नेह आभार ।
धन्यवाद अनीता जी ! सस्नेह आभार...
हृदयतल से धन्यवाद रविन्द्र जी !
बहुत सुंदर रचना,भावों की बहती हवाओं में मानों सजीव चित्रण चल रहा हो।
ठोकर खाकर ही सही, कभी तो बाप को अक्ल आई.
बेटियों को हक़ भी दीजिए और ज़िम्मेदारियाँ भी.
बेटी नहीं बोझ न पराया धन
वह तो टुकड़ा अपने दिल का...
बहुत ही नाजुक विषय पर संवेदनाओं को छूकर गुजरती रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया सुधा देवरानी जी।
बेटी नहीं बोझ न पराया धन
वह तो टुकड़ा अपने दिल का !!!!!!
अत्यंत सुन्दर और कोमल भावों से सजी कविता जो सीधे मन मेंं उतरती है ।
सस्नेह आभार , भाई!...
सही कहा आपने बेटियों को हक और जिम्मेदारी दोनों दें...तहेदिल से शुक्रिया एवं धन्यवाद आपका....
सादर आभार ।
आपका हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार, पुरुषोत्तम जी !...
बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी !
सस्नेह आभार....
बहुत ही मर्मस्पर्शी काव्य चित्र प्रिय सुधा जी | जो पिता अथवा माँ दुलारी बेटियों से जरा सा भेदभाव करते हैं उन्हें जरुर पछताना चाहिए और स्वयं से ही क्षमा मांगनी चाहिए | और सुधि माँ को भी पिता की अंतरात्मा जगाने का भरसक प्रयास करना ही चाहिए | बेटियों का अपना घर परिवार भी होता है तब भी वे माता- पिता के सुख दुःख की सहभागी सदैव ही रहती हैं और माँ बाप के आसूं पोछने को तत्पर भी | माँ पिता के स्नेह को कभी भी बिसराती नहीं --
तुम्हारे ही दिल का टुकडा थी
मैं कब थी धन पराया
तुम हंसे तो मैं हंसी
तुम रोये मन मेरा भर आया
होना ना किचिंत भी विचलित
कोई नहीं तो मैं तो हूँ
निष्ठुर सी इस दुनिया में
स्नेह का घर मैं तो हूँ
आज लौटा दूंगी वो स्नेह
जिसे तुमने मुझ पर लुटाया!!
सुंदर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |
रचना को विस्तार एवं पूर्णता देती बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी काव्य पंक्तियां सखी! उत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ तहेदिल से....सही कहा आपने बेटियां माँ पापा को कभी नहीं बिसराती.....।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका , सस्नेह ।
अत्यंत कोमल भावों से सुसज्जित बहुत ही सुंदर रचना, सुधा दी।
बेहतरीन भाव सृजन
आपका हृदयतल से धन्यवाद, ज्योति जी!
सादर आभार....
हार्दिक धन्यवाद रितु जी !
सादर आभार...
बहुत सटीक और भावमयी रचना। सच में बेटी का प्रेम अतुलनीय है।
हार्दिक धन्यवाद शर्मा जी!
सादर आभार...
कई बार ये समझ आते आते बहुत देर हो जाती है ...
हालाँकि बेतिमा का रूप है जो माफ़ कर देती है किसी भी समय पर जीवन बीत जाता है तब तक कई बार ...
सुन्दर रचना ... दिल को छू जाती है ...
हृदयतल से धन्यवाद नासवा जी!आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साहवर्धन करती हैं....
सादर आभार।
अच्छी कविता |सुंदर टिप्पणी के लिए आभार |
सुंदर कविता |बधाई
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार जयकृष्ण जी !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है....
सुन्दर हृदयस्पर्शी पंक्तियां
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद संजय जी !
मर्मस्पर्शी रचना
हार्दिक धन्यवाद जोशी जी!
सादर आभार।
हार्दिक धन्यवाद , वर्षा जी !
सादर आभार।
सुंदर भावपूर्ण रचना
सुंदर भावपूर्ण रचना
जी अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.कैलाश जी !
एक टिप्पणी भेजें