बेटी----टुकड़ा है मेरे दिल का
जब वह भी कुछ कह पायी
सहमत हो पति ने आज सुना
वह भी दिल हल्का कर पायी
आँखों में नया विश्वास जगा
आवाज में क्रंदन था उभरा
कुचली सी भावना आज उठी
कुचली सी भावना आज उठी
सोयी सी रुह ज्यों जाग उठी
हाँ ! बेटी जनी थी बस मैंने
तुम तो बेटे ही पर मरते थे
बेटी बोझ, परायी थी तुमको
उससे यूँ नजरें फेरते थे...
तिरस्कार किया जिसका तुमने
उसने देवतुल्य सम्मान दिया
निज प्रेम समर्पण और निष्ठा से
दो-दो कुल का उत्थान किया
आज बुढापे में बेटे ने
अपने ही घर से किया बेघर
बेटी जो परायी थी तुमको
बिठाया उसने सर-आँखोंं पर
आज हमारी सेवा में
वह खुद को वारे जाती है
सीने से लगा लो अब तो उसे
ये प्रेम उसी की थाती है.......
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सच कहती हो,खूब कहो !
शर्मिंदा हूँ निज कर्मों से......
वंश वृद्धि और पुत्र मोह में
उलझा था मिथ्या भ्रमोंं से
फिर भी धन्य हुआ जीवन मेरा
जो पिता हूँ मैं भी बेटी का
बेटी नहीं बोझ न पराया धन
वह तो टुकड़ा अपने दिल का !!!!!!
चित्र- साभार गूगल से...
टिप्पणियाँ
जो पिता हूँ मैं भी बेटी का
बेटी नहीं बोझ न पराया धन
वह तो टुकड़ा अपने दिल का !!!!!!
भावमय करती पंक्तियां ... अनुपम सृजन
बहुत सुंदर संदेशपूर्ण रचना👌👌
ठोकर लगी और आँख खुली
समझ आया जब सबक मिला
बेटियाँ बेटों से कम नहीं होती
संवेदनशील है बेशरम नहींं होती
करो मान अपना मानो उन्हें भी
पवित्र गंगा से वो कम नहीं होती
जो पिता हूँ मैं भी बेटी का
बेटी नहीं बोझ न पराया धन
वह तो टुकड़ा अपने दिल का !!!!!! बेहद हृदयस्पर्शी रचना
एक सत्य जो देर से समझ आता है पर पराई होने पर भी माता पिता को बेटियां बहुत याद आती है।
बहुत सुंदर सार्थक सृजन।
अपने ही घर से किया बेघर
बेटी जो परायी थी तुमको
बिठाया उसने सर-आँखोंं पर...बेहतरीन सृजन दी जी
सादर
सुंदर भाव
यथार्थ
आभार आपका....
बहुत बहुत धन्यवाद.... सस्नेह।
सादर आभार...।
सस्नेह आभार ।
बेटियों को हक़ भी दीजिए और ज़िम्मेदारियाँ भी.
वह तो टुकड़ा अपने दिल का...
बहुत ही नाजुक विषय पर संवेदनाओं को छूकर गुजरती रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया सुधा देवरानी जी।
वह तो टुकड़ा अपने दिल का !!!!!!
अत्यंत सुन्दर और कोमल भावों से सजी कविता जो सीधे मन मेंं उतरती है ।
सादर आभार ।
सस्नेह आभार....
बहुत ही मर्मस्पर्शी काव्य चित्र प्रिय सुधा जी | जो पिता अथवा माँ दुलारी बेटियों से जरा सा भेदभाव करते हैं उन्हें जरुर पछताना चाहिए और स्वयं से ही क्षमा मांगनी चाहिए | और सुधि माँ को भी पिता की अंतरात्मा जगाने का भरसक प्रयास करना ही चाहिए | बेटियों का अपना घर परिवार भी होता है तब भी वे माता- पिता के सुख दुःख की सहभागी सदैव ही रहती हैं और माँ बाप के आसूं पोछने को तत्पर भी | माँ पिता के स्नेह को कभी भी बिसराती नहीं --
तुम्हारे ही दिल का टुकडा थी
मैं कब थी धन पराया
तुम हंसे तो मैं हंसी
तुम रोये मन मेरा भर आया
होना ना किचिंत भी विचलित
कोई नहीं तो मैं तो हूँ
निष्ठुर सी इस दुनिया में
स्नेह का घर मैं तो हूँ
आज लौटा दूंगी वो स्नेह
जिसे तुमने मुझ पर लुटाया!!
सुंदर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |
बहुत बहुत धन्यवाद आपका , सस्नेह ।
सादर आभार....
सादर आभार...
सादर आभार...
हालाँकि बेतिमा का रूप है जो माफ़ कर देती है किसी भी समय पर जीवन बीत जाता है तब तक कई बार ...
सुन्दर रचना ... दिल को छू जाती है ...
सादर आभार।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है....
सादर आभार।
सादर आभार।