श्राद्ध में करें तर्पण (मनहरण घनाक्षरी)

श्राद्ध में करें तर्पण, श्रद्धा मन से अर्पण, पितरों को याद कर, पूजन कराइये । ब्राह्मण करायें भोज, उन्नति मिलेगी रोज, दान, दक्षिणा, सम्मान, शीष भी नवाइये । पिण्डदान का विधान, पितृदेव हैं महान, बैतरणी करें पार गयाजी तो जाइये । तर्पण से होगी मुक्ति, श्राद्ध है पावन युक्ति, पितृलोक से उद्धार, स्वर्ग पहुँचाइये । पितृदेव हैं महान, श्राद्ध में हो पिण्डदान, जवा, तिल, कुश जल, अर्पण कराइये । श्राद्ध में जिमावे काग, श्रद्धा मन अनुराग, निभा सनातन रीत, पितर मनाइये । पितर आशीष मिले वंश खूब फूले फले , सुख समृद्धि संग, खुशियाँ भी पाइये । सेवा करें बृद्ध जन, बात सुने पूर्ण मन, विधि का विधान जान, रीतियाँ निभाइये । हार्दिक अभिनंदन🙏 पढ़िए एक और मनहरण घनाक्षरी छंद ● प्रभु फिर आइए
अपनी राजभाषा
जवाब देंहटाएंहम करें ये आशा
कि अब तो इसे
राष्ट्रभाषा बनाइये ।
अच्छी प्रस्तुति ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.संगीता जी !आपकी अनमोल प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ ।
हटाएंवाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी !
हटाएंविश्वविदित हो भाषा
जवाब देंहटाएंसबकी ये अभिलाषा
जयकारे हिन्दी के
जग में फैलाइए ।
यही हमारी भी कामना है। बहुत सुंदर सृजन,सादर नमस्कार सुधा जी 🙏
जी, कामिनी जी ! दिल से धन्यवाद एवं आभार 🙏🙏
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.जोशी जी !
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(३०-०९ -२०२२ ) को 'साथ तुम मझधार में मत छोड़ देना' (चर्चा-अंक -४५६८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु दिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी !
हटाएंहिंदी को विश्वविदित भाषा बनाने के लिए जिस अनथक प्रयास, लगन, समर्पण, निष्ठा और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, वह हम हिंदी-प्रेमियों में नहीं है.
जवाब देंहटाएंगंगावतरण तो भागीरथ प्रयास से ही संभव हो पाया था और हिंदी के विश्वव्यापी प्रचार-प्रसार के लिए भी हम सबको भागीरथ प्रयास ही करना होगा.
जी, आदरणीय सर ! एकदम सही कहा आपने।
हटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका ।🙏🙏
संस्कृति की परिभाषा
जवाब देंहटाएंउन्नति की यही आशा
राष्ट्रभाषा बने हिन्दी
मुहिम चलाइये..
हिंदी को समृद्ध करती बहुत ही प्रेरक सार्थक रचना ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सखी !
हटाएंसुधा दी, हिंदी का महत्व जानकर ही आजकल गूगल भी हिंदी को महत्व दे रहा है। जब हम अंग्रेजी की गुलामी की मानसिकता आए उबर पाएंगे तब धीरे धीरे ही सही हिंदी का महत्व समझने लगेगा। सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंजी ज्योति जी, सही कहा आपने...
हटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद।
सार्थक एवं ज्ञानबर्धक लेखन
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार मनोज जी !
हटाएंहिंदी भाषा की आर्थिक अभिलाषा
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.कैलाश जी !
हटाएंबहुत सुन्दर कामना समाहित किये हिन्दी भाषा को समर्पित बहुत सुन्दर कृति सुधा जी !
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद एवं आभार मीनाजी !
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