बीती ताहि बिसार दे

स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं। पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं । परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे । ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (१९-०७-२०२०) को शब्द-सृजन-३०'प्रार्थना/आराधना' (चर्चा अंक-३७६७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
तहेदिल से धन्यवाद अनीता जी शब्दसृजन में मेरी रचना साझा करने हेतु।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार राकेश जी!
हटाएंलाजवाब अभिव्यक्ति.. अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद मीना जी !
हटाएंलेकिन मैं प्रभु से प्रार्थना ये करूँ कैसे ??
जवाब देंहटाएंकपटी, स्वार्थी, अहंकारी और भ्रष्टाचारी
बन जाते हो तुम सफलता पाते ही ...!!!!
फिर मैं मन्दोदरी बनूँ कैसे ???......
वाह !! बहुत खूब," मैं मन्दोदरी बनूँ कैसे " बनाना भी नहीं चाहिए। बेहतरीन अभिय्वक्ति सुधा जी,सादर नमन आपको
हृदयतल से धन्यवाद सखी!
हटाएंकितना गहरा व्यंग्य है शालीनता से कितनी बड़ी बात कही सामायिक परिस्थितियों का भी सटीक रेखा चित्र।
जवाब देंहटाएंवाह रचना।
हृदयतल से धन्यवाद कुसुम जी! उत्साहवर्धन हेतु।
हटाएंसस्नेह आभार।
अपनोंं के आशीष में ही ,
जवाब देंहटाएंअपना तो सारा जहाँ है ।
यही सुखद अनुभूति है जीवन की 👌👌🌹🌹❤❤