पा प्रियतम से प्रेम का वर्षण
शिशिर शरद से गुजर धरा का ,
व्यथित मलिन सा मुखड़ा ।
धूल धूसरित वृक्ष केश सब
बयां कर रहे दुखड़ा ।
पीत पर्ण से जीर्ण वसन लख
व्याकुल नभ घबराया ।
अंजुरि भर-भर स्नेह बिंदु फिर
प्रेम से यूँ छलकाया ।
पा प्रियतम से प्रेम का वर्षण
हुआ गुलाबी मुखड़ा ।
हर्षित मन नव अंकुर फूटे
भूली पल में दुखड़ा ।
सीने से सट क्षितिज के पट
धरा गगन से बोली ।
"नैना तेरे दीप दिवाली,
वचन प्रेमरस होली ।
रंग दे मेरे मन का आँगन,
अनगिन कष्ट भुलाऊँ ।
युग युग तेरे प्रेम के खातिर
हद से गुजर मैं जाऊँ" ।
अधखुले नेत्र अति सुखातिरेक,
नभ मंद-मंद मुस्काया ।
हर्षित दो मन तब हुए एक,
बहुरंगी चाप बनाया ।
अद्भुत छवि लख मुदित सृष्टि,
अभिनंदित ऋतुपति आये ।
करने श्रृंगारित वसुधा को फिर,
स्वयं काम-रति धाये ।
बहुरंगी चाप = इंद्रधनुष
ऋतुपति = बसंत
लख = देखना
पढ़िए बसंत ऋतु के आगमन पर एक नवगीत
वाह
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. जोशी जी !
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जवाब देंहटाएंआ. रवींद्र जी आपका हार्दिक धन्यवाद एवं अत्यंत आभार मेरी रचना चयन करने हेतु ।
हटाएंवाह! सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.शुभा जी !
हटाएंअद्भुत!!अति सुंदर सृजन !!आपका कान्टैक्ट मिल सकता है ? आपको अपने पेज पर आमंत्रित करना चाहती हूँ !
जवाब देंहटाएंडॉ.उषा श्रीवास्तव
तहेदिल से धन्यवाद आ.डॉ. उषा श्रीवास्तव जी ! ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।
हटाएंजी, आप अपना कान्टैक्ट दीजिए मैं
फॉलो कर लूँगी ।
आपसे जुड़कर मुझे अत्यंत खुशी होगी ।
हटाएंपीत पर्ण से जीर्ण वसन लख
जवाब देंहटाएंव्याकुल नभ घबराया ।
अंजुरि भर-भर स्नेह बिंदु फिर
प्रेम से यूँ छलकाया ।
बड़ी ही उम्दा मृदुल काव्य कृति
तहेदिल से धन्यवाद मनोज जी !
हटाएंसीने से सट क्षितिज के पट
जवाब देंहटाएंधरा गगन से बोली ।
"नैना तेरे दीप दिवाली,
वचन प्रेमरस होली ।
प्रकृति और प्रेम का अद्भुत वर्णन, सराहना से परे है ये रचना सुधा जी, 🙏
हृदयतल से धन्यवाद कामिनी जी !
हटाएंप्रकृति का अद्भुत चित्रण सुधा जी ! लाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद मीनाजी !
हटाएंअद्भुत कविता...विशुद्ध हिन्दी...मन भीग गया पढ़कर..कि..
जवाब देंहटाएंपीत पर्ण से जीर्ण वसन लख
व्याकुल नभ घबराया ।
अंजुरि भर-भर स्नेह बिंदु फिर
प्रेम से यूँ छलकाया ।..आह ..वाह सुधा जी
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद अलकनंदा जी !
हटाएंअद्भुत सुधा जी अद्भुत! शृंगार रस छलक रहा है हर शब्द हर पंक्ति में सरस सुंदर मनभावन काव्य सृजन के लिए हृदय से बधाई।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद आ.कुसुम जी !
हटाएंआहा,अद्भुत अति मनमोहक कविता दी।
जवाब देंहटाएंऋतुराज के स्वागत में शब्दों की धनक मन छू रही है।
सस्नेह प्रणाम दी।
तहेदिल से धन्यवाद ए्वं आभार प्रिय श्वेता !
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