गुरुवार, 14 अक्तूबर 2021

कबूतर की दादागिरी


Pigeon'sdadagiri
                    चित्र साभार pixabay से


एक कबूतर जमा रहा है,

 बिखरे दानों पर अधिकार ।

शेष कबूतर दूर हो रहे,

उसकी दादागिरी से हार ।


गोल घूमता गुटर-गुटर कर ,

गुस्से से फूला जाता ।

एक-एक के पीछे पड़कर,

उड़ा सभी को दम पाता ।


श्वेत कबूतर तो कुष्ठी से,

हैं अछूत इसके आगे ।

देख दूर से इसके तेवर,

बेचारे डरकर भागे ।


बैठ मुंडेरी तिरछी नजर से,

सबकी बैंड बजाता वो ।

सुबह से पड़ा दाना छत पर,

पूरे दिन फिर खाता वो ।


समझ ना आता डर क्यों उसका,

इतना माने पूरा दल ?

मिलकर सब ही उसे भगाने,

क्यों न लगाते अपना बल ?


किस्सों में पढ़ते हैं हम जो,

क्या ये सच में है सरदार ?

या कोई बागी नेता ये,

बना रहा अपनी सरकार ?


नील गगन के पंछी भी क्या,

झेलते होंगे सियासी मार ?

इन उन्मुक्त उड़ानों का क्या,

भरते होंगे ये कर भार ?


25 टिप्‍पणियां:

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सुंदर कल्पना...जानवरों में वर्चस्व की लड़ाई तो होती सुनी है....विशेषकर शेर इत्यादि में...शायद कबूतरों में भी होती हो लेकिन ये लड़ाई सियासी तो नहीं ही होती होगी....

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५ -१०-२०२१) को
'जन नायक श्री राम'(चर्चा अंक-४२१८)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

Manisha Goswami ने कहा…

समझ ना आता डर क्यों उसका,
इतना माने पूरा दल ?
मिलकर सब ही उसे भगाने,
क्यों न लगाते अपना बल ?
यह तो कबूतर की कहानी है
पर हकीकत में हम इंसानों मैं भी ऐसा ही हो रहा है!
हमारी और पक्षियों की दशा कुछ मामलों में एक समान ही है!
बेहतरीन अभिव्यक्ति

शुभा ने कहा…

वाह!बहुत खूब 👌

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

अच्छी कविता है यह सुधा जी। हम भी वर्षों से कबूतरों को दाने खिलाते समय ऐसे एकाध कबूतर को देखते ही हैं। आपने कबूतरों के समूह का रूपक लेते हुए ऐसी प्रवृत्ति के लिए मानवीय परिप्रेक्ष्य में संकेत किया है। गहन मनन का विषय है यह। वैसे सरल स्वभाव के कबूतरों की तुलना में मानव स्वभाव जटिल भी होता है तथा व्यक्ति से व्यक्ति भिन्नता लिए हुए भी। किन्तु स्वीकार करना होगा कि आपने निश्चय ही एक अनूठी कविता लिखी है, एक अछूते विषय पर लेखनी चलाई है तथा कुछ ऐसे विचार प्रस्तुत किए हैं जिन पर विचारशील एवं संवेदनशील व्यक्तियों को समय देना चाहिए। इसके लिए अभिनन्दन की पात्र तो आप हैं ही।

Sudha Devrani ने कहा…

पता नहीं नैनवाल जी! वाकई कई दिनों एक कबूतर ऐसा कर रहा है मेरी छत पर....जहाँ सुबह ढ़ेर सारे कबूतर मिलकर दाना चुगते थे एक दो लड़ते भी थे ...पर आजकल कुछ दिनों से ऐसा हो रहा है वह फिर अकेले चुगता है पूरा दाना।
हाँ सियासत तो क्या होती होगी पर दबदबा बहुत है उसका।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद प्रिय अनीता जी! मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, सही कहा प्रिय मनीषा जी! आपने...पर हम मनुष्य ही करते होंगे ऐसा अन्य प्राणी नहीं ...ऐसा मैं सोचती थी। कबूतरों में ऐसी स्वार्थी प्रवृत्ति देख आश्चर्य में हूँ....
हृदयतल से धन्यवाद विमर्श हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार शुभा जी !

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सुधा दी, कबूतरों के माध्यम से इंसान की फिदरत का बहुत ही सुंदर तरीके से वर्णन किया है आपने। बहुत ही गहनता से कबूतरों की वर्चस्व की लड़ाई का वर्णन।

मन की वीणा ने कहा…

रोजमर्रा से किसी दृश्य को उठा उसको एहसासों से जोड़कर फिर कवि की कल्पना और तर्क बुद्धि के संयोग से आपने एक अनूठा अछूता सा काव्य रच दिया सुधा जी।
नमन आपकी लेखनी को पक्षियों में भी नेताशाही के गुण पनप रहे हैं।
बहुत सुंदर सृजन।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.जितेन्द्र जी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु....रचना का मंतव्य एवं मर्म तक पहुँचकर सार स्पष्ट करने हेतु अत्यंत आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी!आपके सराहनीय अनमोल प्रतिक्रिया के लिए।

Sudha Devrani ने कहा…

जी,आ.कुसुम जी! पक्षियों की ऐसी नेताशाही देख हैरान हूँ मैं....
सराहनीय प्रतिक्रिया से प्रोत्साहित करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद सर!

Himkar Shyam ने कहा…

वाह, बहुत ख़ूब

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

वर्चस्व की लड़ाई का सुंदर और यथार्थवादी दृष्टिकोण एक पक्षी को केंद्र में रख कर आपने किया है, वह बहुत ही सराहनीय है सुधा जी ।। कभी कभी मन के किसी कोने में छुपी भावना को पक्षी या पशु रूपांतरित करवा देते हैं,कभी कभी मैं भी ऐसे दृश्य देखती हूं फिर महसूस करती हूं,तब! जब मेरे आंगन में कई सारी गौरैया धीरे धीरे चूं चूं करते करते अचानक अपना सुर तेज कर देती हैं तो अक्सर लगता है कि वो किसी को पुकार रहीं,लड़ रहीं या शिकायत कर रहीं हैं। सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई सुधा जी ।

Bharti Das ने कहा…

बहुत खूब सृजन

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

इंसान तो पक्षियों से कुछ न सीख पाया लेकिन लगता है अब पक्षी ही इंसान से दबंगई सीख रहे।
यथार्थ चित्रण सुंदर शब्दों में बांधा है ।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आदरणीय!

Sudha Devrani ने कहा…

जी, जिज्ञासा जी!सही कहा आपने...
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका उत्साहवर्धन हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद भारती जी!

Sudha Devrani ने कहा…

दबंगई! बिल्कुल सही कहा आपने....ये पशु-पक्षी इंसानो से दबंगई सीख रहे हैं..
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.संगीता जी!आपकी सराहना पाकर अति प्रोत्साहित हूँ।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर सृजन

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार आ.जोशी जी!

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