सुनो माँ ! अब तो बात मेरी
और आर करो या पार !
छोटा हूँ तो बचपन सा लाड दो
हूँ बड़ा तो दो अधिकार !
टीवी मोबाइल हो या कम्प्यूटर
मेरे लिए सब लॉक ?
थोड़ी सी गलती कर दूँ तो
सब करते हो ब्लॉक ?
कभी कहते हो बच्चे नहीं तुम
छोड़ भी दो जिद्द करना !
समझ बूझ कुछ सीखो बड़ों से
बस करो यूं बहस करना !
कभी मुकरते इन बातों से
बड़ा न मुझे समझते
"बच्चे हो बच्चे सा रहो" कह
सख्त हिदायत देते
उलझन में हूँ समझ न आता !
ऐसे मुझको कुछ नहीं भाता !
बड़ा हो गया या हूँ बच्चा !
क्या मैं निपट अकल का कच्चा ?
पर माँ ! तुम तो सब हो जानती
नटखट लल्ला मुझे मानती ।
फिर अब ऐसे मत रूठो ना
मेरी गलती छुपा भी लो माँ!
माँ मैं आपका प्यारा बच्चा
जिद्दी हूँ पर मन का सच्चा !
चित्र साभार गूगल से..
17 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 26 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुधा दी,किशोरावस्था की उलझन को आपने बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया हैं। हर इंसान की किशोरावस्था में यहीं हालत होती हैं।
उलझन में हूँ समझ न आता
ऐसे मुझको कुछ नहीं भाता
बड़ा हो गया या हूँ बच्चा !
क्या मैं निपट अकल का कच्चा ? बहुत सुंदर रचना किशोरावस्था की उलझन को व्यक्त करती।
सहृदय धन्यवाद यशोदा जी! मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में साझा करने हेतु...
सादर आभार।
जी ज्योति जी!तहेदिल से धन्यवाद आपका मेरे विचारों से सहमत होने हेतु...
सस्नेह आभार।
सस्नेह आभार भाई !
सुनो माँ अब तो बात मेरी
और आर करो या पार!
छोटा हूँ तो बचपन सा लाड दो
हूँ बडा़ तो दो अधिकार !
टीवी मोबाइल हो या कम्प्यूटर
मेरे लिए सब लॉक
थोड़ी सी गलती कर दूँ तो
सब करते हो ब्लॉक... बेहतरीन सृजन आदरणीया दीदी 👌
ये किशोरावस्था होती ही ऐसी है ...।बहुत ही उम्दा सृजन सुधा जी ।
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी! उत्साह वर्धन हेतु...
सस्नेह आभार।
बहुत बहुत धन्यवाद,शुभा जी!
बेहतरीन रचना सखी
सहृदय धन्यवाद एवं आभार सखी!
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२६ -०६-२०२०) को 'उलझन किशोरावस्था की' (चर्चा अंक-३७४५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
सुन्दर सृजन
सहृदय धन्यवाद अनीता जी रचना साझा करने हेतु।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद जोशी जी !
अभूतपूर्व जी, हमारे ब्लॉग पर भी जरूर देखें प्रेरणादायक सुविचार
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