गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

लघुकथा: 'बेबसी'

   
helplessness of migrant workers
चित्र; साभार गूगल से......
       
एक जमींदार के खेत में छोटी सी झुग्गी में एक गरीब किसान अपनी पत्नी व बच्चे के साथ रह रहा था, वह खेत में फसल उगाता और किनारों पर सब्जियां उगाकर ठेले में रख आसपास के अपार्टमेंट में बेच आता। फसल की कटाई मंडाई के बाद जमींदार भी उसे कुछ अनाज दिया करता था।
यह अनाज तो कुछ समय में ही खत्म हो जाता,पर सब्जियां बेचकर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो ही जाता था।
तभी कोरोना जैसी वैश्विक महामारी फैलने से शहर में कर्फ्यू लग गया।अब सब्जी बेचना भी दूभर हो गया। तीन चार दिन तो बचे खुचे राशन से निकल  गये।परन्तु रोग पर नियंत्रण न होने से पूरे देश को लम्बे समय तक लॉकडाउन कर दिया गया।

घर का राशन खत्म और हालात बदतर होते देख वह बहुत चिन्तित था । अब पति-पत्नी बचे-खुचे राशन से थोड़ा सा भोजन बना बच्चे को खिलाते स्वयं पानी पीकर रह जाते, दो दिन और निकले कि घर में फाका पड़ने लगा।
भूख से बेहाल परिवार की हालत किसान से देखी नहीं जा रही थी, उसने खेत की सब्जी से ठेली भरी और चल पड़ा अपार्टमेंट की तरफ....।

पुलिस की नजरों से बचते-बचाते वह गलियों में सब्जी बेचने पहुँचा तो लोगों ने उसे बालकनी से इशारा करके घर पर सब्जी देने को कहा।
'मरता क्या न करता'आखिर सबके द्वार पर सब्जी के दाम कुछ बढ़ाकर देने लगा, जल्द ही सारी सब्जियाँ अच्छे दामों में बिक गयी।
उसकी खुशी का ठिकाना न था, राशन व दूध लेकर घर लौटा तो पत्नी व बच्चे के चेहरे खिल उठे ।
पत्नी ने फटाफट खाना बनाया, सभी भोजन पर टूट पड़े।  आज रात उसे बड़े चैन की नींद आयी।

देर सुबह जगा तो झुग्गी का द्वार बन्द था, पत्नी जो हमेशा उससे पहले उठ जाती थी आज निश्चेत सी लेटी थी।उसे उठाने के लिए छुआ तो सन्न रह गया।पत्नी का बदन बुखार से तप रहा था पास में लेटा बच्चा भी जोर-जोर से खाँस रहा था ।उसने उठने की कोशिश की तो उसका सिर चकराने लगा। बुरी आशंका से उसका हृदय काँप उठा।
सामने पड़ी राशन की थैलियाँ उसे मुँह चिढ़ा रही थी.......।













30 टिप्‍पणियां:

~Sudha Singh vyaghr~ ने कहा…

समसामयिक कहानी।
सृष्टि का ऐसा कहर टूटा है आज कि एक ओर कुआँ तो दूसरी ओर खाई है। स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।

विश्वमोहन ने कहा…

लोकबन्दी! महामारी का डर और डर की महामारी!!

शुभा ने कहा…

पेट की आग ,लोकबंदी और महामारी ...क्या करे अदना इंसान ।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, सुधा जी!सही कहा आपने...
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ. विश्वमोहन जी!

Sudha Devrani ने कहा…

जी, शुभा जी!बड़ी विकट समस्या है
तहेदिल से धन्यवाद आपका।

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

सुधा जी बहुत ही मार्मिक एवं यथार्थ चित्रण ,
वास्तव में विश्व भर में जो महामारी का संकट फैला है ,इस महामारी के संकटकाल में बहुत ही सावधानी बरतने की आश्यकता है ।

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

सुधा जी यथार्थ एवम् मार्मिक चित्रण ,

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ रितु जी! बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार रितु जी!

रेणु ने कहा…

स्तब्ध कर गयी ये लघुकथा प्रिय सुधा जी | मज़बूरी जो ना कराये सो थोड़ा | सारा चित्र आँखों के समक्ष जीवंत हो डरा गया |

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 24 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sweta sinha ने कहा…

बहुत मार्मिक है दशा।
सुधा जी समय चाहे कैसा भी हो इनकी दशा सदैव हृदय को द्रवित करती है।
लघुकथा आपकी लेखनी से पढ़कर बहुत अच्छा लगा। उम्मीद है आगे भी आपकी क़लम की गद्य रचनाएँ पढ़ने मिलेंगी।
शुभकामनाएँ।
सादर।
सस्नेह।

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ सखी !तहेदिल से धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी!मेरी रचना को साझा करने हेतु...।
सादर आभार आपका ।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद श्वेता जी! लघुकथा लिखने का ये मेरा प्रथम प्रयास है।आप सभी का सहयोग और मार्गदर्शन यूँ ही रहा तो प्रयास सफल होगा....
अत्यंत आभार आपका।

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२५-०४-२०२०) को 'पुस्तक से सम्वाद'(चर्चा अंक-३६८२) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी

Subodh Sinha ने कहा…

समसामयिक मार्मिक संवेदनशील घटना/कहानी ...

SUJATA PRIYE ने कहा…

गरीबों की मजबूर दरसाती लाजवाब सृजन सखी।
बेहद मार्मिक रचना

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार अनीता जी मेरी रचना साझा करने हेतु...।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद सुबोध जी!
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ सुजाता जी!बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

Kamini Sinha ने कहा…

मार्मिक कथा ,सजीव चित्रण किया हैं आपने ,ऐसी कितनी ही कहनी घर -घर जीवन्त हो रही हैं अभी ,प्रकृति का ऐसा कोप ना पहले देखा ना सुना ,बस प्रार्थना के अलाव कुछ नहीं कर सकते। सादर नमन आप को

Nitish Tiwary ने कहा…

दिल को छूने वाली लघुकथा।

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ कामिनी जी ! हृदयतल से धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद नीतीश जी!
सादर आभार।

Harash Mahajan ने कहा…

बहुत ही सुंदर चित्रण ।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद हर्ष जी !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
सादर आभार।

मन की वीणा ने कहा…

ओह दुखद और मार्मिक ।
एक सार्थक लघुकथा।

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ कुसुम जी हृदयतल से धन्यवाद आपका।

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