श्राद्ध में करें तर्पण (मनहरण घनाक्षरी)

श्राद्ध में करें तर्पण, श्रद्धा मन से अर्पण, पितरों को याद कर, पूजन कराइये । ब्राह्मण करायें भोज, उन्नति मिलेगी रोज, दान, दक्षिणा, सम्मान, शीष भी नवाइये । पिण्डदान का विधान, पितृदेव हैं महान, बैतरणी करें पार गयाजी तो जाइये । तर्पण से होगी मुक्ति, श्राद्ध है पावन युक्ति, पितृलोक से उद्धार, स्वर्ग पहुँचाइये । पितृदेव हैं महान, श्राद्ध में हो पिण्डदान, जवा, तिल, कुश जल, अर्पण कराइये । श्राद्ध में जिमावे काग, श्रद्धा मन अनुराग, निभा सनातन रीत, पितर मनाइये । पितर आशीष मिले वंश खूब फूले फले , सुख समृद्धि संग, खुशियाँ भी पाइये । सेवा करें बृद्ध जन, बात सुने पूर्ण मन, विधि का विधान जान, रीतियाँ निभाइये । हार्दिक अभिनंदन🙏 पढ़िए एक और मनहरण घनाक्षरी छंद ● प्रभु फिर आइए
सामयिक और प्रभावी , आभार
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय सतीश जी !
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका।
अस्तित्व सृष्टि का आज डोल रहा सत्य
जवाब देंहटाएंसामयिक रचना
हार्दिक धन्यवाद, रितु जी !
हटाएंसस्नेह आभार।
बेदम सृष्टि में कोई
जवाब देंहटाएंसुधारस घोल रहा
अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
यथार्थ का चित्रण। आभार और बधाई!!!
तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद एवं आभार, आदरणीय विश्वमोहन जी !
हटाएंवाह!यथार्थ का सुंदर चित्रण !
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ शुभा जी!बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
हटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद जोशी जी !
हटाएंसादर आभार।
यतार्थ का चित्रण करती बहुत सुंदर रचना सुधा दी।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 15 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार यशोदा जी मेरी रचना को मंच पर साझा करने हेतु...।
हटाएंसामायिक विषय पर सटीक और सार्थक नव गीत।
जवाब देंहटाएंबधाई सुधा जी।
आभारी हूँ कुसुम जी! तहेदिल से धन्यवाद आपका।
हटाएंइसलिए ही तो प्राकृति ही गुरु अहि ... भगवान् है ... सब कुछ है मानव जाती का आदि और अंत इसी से है ...
जवाब देंहटाएंस्वतः अपने को भी मार्ग दिखा रह्जी है प्राकृति, बहुत कुछ सिखा रही है ...
बहुत ही लाजवाब शब्दों में प्राकृति के महत्त्व को रक्खा है आपने ... उत्तम रचना ....
आपकी सराहना पाकर रचना सार्थक हुई नासवा जी!हार्दिक धन्यवाद एवं अत्यंत आभार आपका।
जवाब देंहटाएंसटीक,आज भी सामायिक है सृजन।
जवाब देंहटाएंमनु को चेतावनी देता हुआ ।
सुंदर सार्थक भाव सुधा जी।
सस्नेह।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद कुसुम जी!
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