मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

नवसृजित हो रही सृष्टि....

nature recreating itself


अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
क्रोधित कोरोना बन
हमसे ये बोल रहा

हो सावधान मानव
मत अत्याचार करो
इस विभत्सता हेतु
ना मुझे लाचार करो
       
         तेरी बाँधी नफरत
         की गठरी खोल रहा
        अस्तित्व सृष्टि का आज
         यहाँ जब डोल रहा


मजबूर हुई मनु
मैं तेरी ही करनी से
तूने लगाव जो छोड़
दिया निज धरनी से
           
             तेरे विध्वंस को आज
              मेरा मन तोल रहा
            अस्तित्व सृष्टि का आज
            यहाँ जब डोल रहा

ठहरो तनिक तुम
अपने में ही रह जाओ
नवसृजित हो रही
सृष्टि बाधा मत लाओ

    बेदम सृष्टि में कोई
    सुधारस घोल रहा
    अस्तित्व सृष्टि का आज
    यहाँ जब डोल रहा
   

                चित्र साभार,पिन्टरेस्ट से

   
             

20 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

सामयिक और प्रभावी , आभार

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

अस्तित्व सृष्टि का आज डोल रहा सत्य
सामयिक रचना

विश्वमोहन ने कहा…

बेदम सृष्टि में कोई
सुधारस घोल रहा
अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
यथार्थ का चित्रण। आभार और बधाई!!!

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ आदरणीय सतीश जी !
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद, रितु जी !
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद एवं आभार, आदरणीय विश्वमोहन जी !

शुभा ने कहा…

वाह!यथार्थ का सुंदर चित्रण !

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ शुभा जी!बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर सृजन।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

यतार्थ का चित्रण करती बहुत सुंदर रचना सुधा दी।

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 15 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद जोशी जी !
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !

मन की वीणा ने कहा…

सामायिक विषय पर सटीक और सार्थक नव गीत।
बधाई सुधा जी।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से आभार यशोदा जी मेरी रचना को मंच पर साझा करने हेतु...।

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ कुसुम जी! तहेदिल से धन्यवाद आपका।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

इसलिए ही तो प्राकृति ही गुरु अहि ... भगवान् है ... सब कुछ है मानव जाती का आदि और अंत इसी से है ...
स्वतः अपने को भी मार्ग दिखा रह्जी है प्राकृति, बहुत कुछ सिखा रही है ...
बहुत ही लाजवाब शब्दों में प्राकृति के महत्त्व को रक्खा है आपने ... उत्तम रचना ....

Sudha Devrani ने कहा…

आपकी सराहना पाकर रचना सार्थक हुई नासवा जी!हार्दिक धन्यवाद एवं अत्यंत आभार आपका।

मन की वीणा ने कहा…

सटीक,आज भी सामायिक है सृजन।
मनु को चेतावनी देता हुआ ।
सुंदर सार्थक भाव सुधा जी।
सस्नेह।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद कुसुम जी!

हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...