अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
क्रोधित कोरोना बन
हमसे ये बोल रहा
हो सावधान मानव
मत अत्याचार करो
इस विभत्सता हेतु
ना मुझे लाचार करो
तेरी बाँधी नफरत
की गठरी खोल रहा
अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
मजबूर हुई मनु
मैं तेरी ही करनी से
तूने लगाव जो छोड़
दिया निज धरनी से
तेरे विध्वंस को आज
मेरा मन तोल रहा
अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
ठहरो तनिक तुम
अपने में ही रह जाओ
नवसृजित हो रही
सृष्टि बाधा मत लाओ
बेदम सृष्टि में कोई
सुधारस घोल रहा
अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
चित्र साभार,पिन्टरेस्ट से
20 टिप्पणियां:
सामयिक और प्रभावी , आभार
अस्तित्व सृष्टि का आज डोल रहा सत्य
सामयिक रचना
बेदम सृष्टि में कोई
सुधारस घोल रहा
अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
यथार्थ का चित्रण। आभार और बधाई!!!
आभारी हूँ आदरणीय सतीश जी !
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
हार्दिक धन्यवाद, रितु जी !
सस्नेह आभार।
तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद एवं आभार, आदरणीय विश्वमोहन जी !
वाह!यथार्थ का सुंदर चित्रण !
आभारी हूँ शुभा जी!बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
सुन्दर सृजन।
यतार्थ का चित्रण करती बहुत सुंदर रचना सुधा दी।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 15 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक धन्यवाद जोशी जी !
सादर आभार।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !
सामायिक विषय पर सटीक और सार्थक नव गीत।
बधाई सुधा जी।
हृदयतल से आभार यशोदा जी मेरी रचना को मंच पर साझा करने हेतु...।
आभारी हूँ कुसुम जी! तहेदिल से धन्यवाद आपका।
इसलिए ही तो प्राकृति ही गुरु अहि ... भगवान् है ... सब कुछ है मानव जाती का आदि और अंत इसी से है ...
स्वतः अपने को भी मार्ग दिखा रह्जी है प्राकृति, बहुत कुछ सिखा रही है ...
बहुत ही लाजवाब शब्दों में प्राकृति के महत्त्व को रक्खा है आपने ... उत्तम रचना ....
आपकी सराहना पाकर रचना सार्थक हुई नासवा जी!हार्दिक धन्यवाद एवं अत्यंत आभार आपका।
सटीक,आज भी सामायिक है सृजन।
मनु को चेतावनी देता हुआ ।
सुंदर सार्थक भाव सुधा जी।
सस्नेह।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद कुसुम जी!
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