सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

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  किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात  सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे,  तेरे पुण्यों का भार  तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ●  तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे

आस का वातावरण फिर, इक नया विश्वास लाया



Hopfull way

आस का वातावरण फिर, 

इक नया विश्वास लाया ।

सो रहे सपनों को उसने,

आज फिर से है जगाया ।


चाँद ज्यों मुस्का के बोला,

चाँदनी भी दूर मुझसे ।

हाँ मैं तन्हा आसमां में,

पर नहीं मजबूर खुद से ।

है अमावश का अंधेरा,

पूर्णिमा में खिलखिलाया ।

आस का वातावरण फिर,

 इक नया विश्वास लाया ।



शूल से आगे निकल कर,

शीर्ष पर पाटल है खिलता ।

रात हो कितनी भी काली,

भोर फिर सूरज निकलता ।

राह के तम को मिटाने,

एक जुगनू टिमटिमाया ।

आस का वातावरण फिर,

इक नया विश्वास लाया ।


 

चाह से ही राह मिलती,

मंजिलें हैं मोड़ पर ।

कोशिशें अनथक करें जो,

संकल्प मन दृढ़ जोड़ कर ।

देख हर्षित हो स्वयं फिर,

साफल्य घुटने टेक आया ।

आस का वातावरण फिर,

इक नया विश्वास लाया ।


टिप्पणियाँ

  1. सहृदय धन्यवाद अनीता जी! मेरी रचना को चर्चा मंच में साझा करने हेतु ।
    सस्नेह आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. आस का वातावरण फिर, ^
    इक नया विश्वास लाया ।
    सो रहे सपनों को उसने,
    आज फिर से है जगाया ।
    बहुत सार्धक रचना प्रिय सुधा जी।आखिर उम्मीद पर ही तो ये दुनिया कायम है।सस्नेह बधाई और शुभकामनाएं ❤❤🌹🌹

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय रेणु जीआपकी सराहनीय प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ ।

      हटाएं
  3. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ. संगीता जी !

      हटाएं
  5. सकारात्मक ऊर्जा का अलौकिक गान है आपकी रचना।
    निराशा और विपरीत मनोस्थिति से लड़ते मन में नवीन उत्साह का संचार करती रचना के लिए बहुत बधाई सुधा जी।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता जी !

      हटाएं
  6. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सु-मन जी !

    जवाब देंहटाएं
  7. हार्दिक धन्यवाद जवं आभार कामिनी जी ! मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु ।

    जवाब देंहटाएं
  8. चाह से ही राह मिलती,
    मंजिलें हैं मोड़ पर ।
    कोशिशें अनथक करें जो,
    संकल्प मन दृढ़ जोड़ कर ।
    सकारात्मक विचारों का संचार करती अत्यंत सुन्दर
    भावाभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं

  9. शूल से आगे निकल कर,

    शीर्ष पर पाटल है खिलता ।

    रात हो कितनी भी काली,

    भोर फिर सूरज निकलता ।

    राह के तम को मिटाने,

    एक जुगनू टिमटिमाया ।

    आस का वातावरण फिर,

    इक नया विश्वास लाया । .
    आजकल जैसे निराशाओं का दौर चल रहा है ।
    समय के दुष्चक्र को दुत्कारती, मनुष्य जीवन में आशा और विश्वास का संचार करती सुंदर रचना ।
    बधाई प्रिय सुधा जी ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवादजिज्ञासा जी !
      सस्नेह आभार ।

      हटाएं
  10. आशाएं ही तो जीवन हैं। बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना.......... शुभकामनायें ।

    जवाब देंहटाएं
  12. विश्वास के सकारात्मक भाव हमेशा मन को आनद देते हैं ...
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार नासवा जी !

      हटाएं

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