सोमवार, 26 जुलाई 2021

नभ तेरे हिय की जाने कौन

 Cloudy sky


नभ ! तेरे हिय की जाने कौन ?

ये अकुलाहट पहचाने कौन ?

नभ ! तेरे हिय की जाने कौन ?


उमड़ घुमड़ करते ये मेघा

बूँद बन जब न बरखते हैं

स्याह वरण हो जाता तू 

जब तक ये भाव नहीं झरते हैं

भाव बदली की उमड़-घुमड़

मन का उद्वेलन जाने कौन ?

ये अकुलाहट पहचाने कौन ?


तृषित धरा तुझे जब ताके

कातर खग मृग तृण वन झांके

आधिक्य भाव उद्वेलित मन...

रवि भी रूठा, बढती है तपन

घन-गर्जन तेरा मन मंथन

वृष्टि दृगजल हैं,  माने कौन

ये अकुलाहट पहचाने कौन ?


कहने को दूर धरा से तू

पर नाता रोज निभाता है

सूरज चंदा तारे लाकर

चुनरी धानी तू सजाता है

धरा तेरी है धरा का तू

ये अर्चित बंधन माने कौन

ये अकुलाहट पहचाने कौन ?


ऊष्मित धरणी श्वेदित कण-कण

आलोड़ित नभ हर्षित तृण-तृण

अरुणिम क्षितिज ज्यों आकुंठन

ये अमर आत्मिक अनुबंधन

सम्बंध अलौकिक माने कौन

ये अकुलाहट पहचाने कौन ?


नभ तेरे हिय की जाने कौन...?


55 टिप्‍पणियां:

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना। शुभ कामनाएं

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

कहने को दूर धरा से तू
पर नाता रोज निभाता है
सूरज चंदा तारे लाकर
चुनरी धानी तू सजाता है
धरा तेरी है धरा का तू
ये अर्चित बंधन माने कौन
ये अकुलाहट पहचाने कौन....

बहुत सुन्दर रचना.. सच में नभ के हिये की कौन जान सका है.....

Jyoti Dehliwal ने कहा…

ये अमर आत्मिक अनुबंधन

सम्बंध अलौकिक माने कौन

ये अकुलाहट पहचाने कौन....



नभ तेरे हिय की जाने कौन...?
बहुत सुंदर सृजन,सुधा दी।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद सर!
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नैनवाल जी!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अहा अद्भुत शब्द चित्र प्रस्तुत किया है। सुन्दर सृजन।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

अत्यंत श्रेष्ठ कविता है यह आपकी सुधा जी। इसे केवल शब्दों से देखना एवं समझना उचित नहीं लगता, शब्दों के पार जाकर देखना-समझना होगा। इस कविता में वर्णित नभ की उपमा उन संवेदनशील स्त्री-पुरुषों को भी दी जा सकती है जो सबके सुख-दुख बांटते हैं (विशेषतः दुख) लेकिन उनके अपने मन की व्यथा बाहर नहीं आती (वे स्वयं ही नहीं आने देते क्योंकि उसे कोई समझने वाला,बांटने वाला कोई नहीं होता)। जैसे नभ एक ही है, ऐसे लोग भी विरले ही होते हैं। किसी के हिय की तो वही जान सकता है जो (उससे अपने वास्तविक लगाव के कारण) जानना चाहे। अन्यथा किसे पड़ी जो किसी के हिय की थाह ले। आप कभी-कभी ही लिखती हैं लेकिन जब लिखती हैं तो ऐसा लिखती हैं जो मुझ जैसे व्यक्ति के हृदय के तल तक जा पहुँचता है।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक आभार एवं धन्यवाद प्रवीण पाण्डेय जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद जितेन्द्र जी रचना के मर्म तक पहुँचकर रचना का सार स्पष्ट करने हेतु...सही कहा कौन किसी के हिय की थाह लेता है आजकल....।
अनमोल प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु तहेदिल से शुक्रिया...।
सादर आभार।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आकाश के माध्यम से बहुत कुछ कह देने का प्रयास ...
बूंदों की अकुलाहट, मिलन की चाह और संवेदना को बाखूबी लिखा है आपने ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुधा जी ,
बहुत कमाल का लिखा है !! बादलों के माध्यम से जैसे आकुल मन की व्याकुल भाषा समझा दी । जब बरस नहीं पाते बादल तो श्याम वर्ण हो जाता है , केवल मेघों का ही नहीं शायद प्रकृति और हर जीव जंतु भावों के वेग को संभालते हुए विवर्ण हो जाता है ।।
पूरी रचना के साथ ऐसा लग रहा है कि कुछ इसके पैरलल भी चल रहा है । मानव मन की संवेदनाएँ साथ जुड़ रही हैं ।
बस मन बरस गया ।
सुंदर रचना

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद श्वेता जी मेरी रचना को पांच लिंकों के आनंद पर साझा करने हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नासवा जी!प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

रचना के मर्म तक पहुँचकर सारगर्भित सार्थक प्रतिक्रिया से मेरा उत्साह द्विगुणित करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.संगीता जी!
जी एकदम सही कहा आपने नभ के हिय के साथ मानव मन की संवेदनाएं...भावों की आत्मा और मंतव्य तक पहुँचने हेतु दिल से शुक्रिया आपका।

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

सुन्दर लेखन

उर्मिला सिंह ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन ।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

Digvijay Agrawal ने कहा…

जोशीला अंक...
सादर..

शुभा ने कहा…

वाह!! सुधा जी ,खूबसूरत अभिव्यक्ति ।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जिज्ञासा सिंह ने कहा…

ऊष्मित धरणी श्वेदित कण-कण

आलोड़ित नभ हर्षित तृण-तृण

अरुणिम क्षितिज ज्यों आकुंठन

ये अमर आत्मिक अनुबंधन

सम्बंध अलौकिक माने कौन

ये अकुलाहट पहचाने कौन....

सच! सुधा जी आपकी ये रचना जितनी खूबसूरत है, उतना ही मर्म को भी छू गई,लगा जैसे कि आपने नभ का आवाहन करके मानव मन की व्यथा और कथा भी कह दी,यही तो एक कविमन की सुंदर पहचान है, कि बात एक भाव अनेक । सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏💐💐

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

"नभ तेरे ह्रदय की जाने कौन‌" सुधा जी शीर्षक की गहराई प्रस्तुति के बेहतरीन होने का प्रमाण हैं ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत सुंदर

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.विभा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार उर्मिला जी!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.जोशी जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आदरणीय!

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार शुभा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद रितु जी!
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद सु-मन जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Amrita Tanmay ने कहा…

आकुलता शब्द-शब्द से सबकी व्यथा स्वयं कह रही है मानो । व्याकुल हुआ मन ...

Meena Bhardwaj ने कहा…

भाव बदली की उमड़-घुमड़
मन का उद्वेलन जाने कौन
ये अकुलाहट पहचाने कौन...
बेहतरीन व लाजवाब सृजन सुधा जी ।

मन की वीणा ने कहा…

अहो सुधा जी! मैं भाव विभोर हूँ ,सच कहूँ तो बस पढ़ रही हूँ ,पढ़ती ही जा रही हूँ शब्दों का सांगोपांग चयन और प्रयोग ,एक से सुंदर एक प्रतीक, भावों का तरल प्रवाह, धरा और नभ के
आत्मिक अनुबंधन और अलौकिक सम्बन्धों को अपने आलौकिक भाषा में समेट लिया परत दर परत खुलती हैं नये अर्थ नये भाव लेकर ।
अलौकिक सृजन।
अभिनव अभिराम।

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३१-०७-२०२१) को
'नभ तेरे हिय की जाने कौन'(चर्चा अंक- ४१४२)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

रेणु ने कहा…

प्रिय सुधा जी। माननीय सुधि पाठकों की भावपूर्ण प्रतिक्रियाओं से सजी ये रचना सचमें बहुत ही प्रभावी और सराहनीय है। शीर्षक ही बहुत सुंदर है। मानों नभ का संदेश लेकर ही बादल धरती पर आता है। बहुत खूबसूरती से भावों को उकेरा हैं। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं इस सुंदर प्रस्तुति के लिए!!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आ.अमृता जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार मीना जी!

Sudha Devrani ने कहा…

आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक एवं उत्साह द्विगुणित हुआ कुसुम जी!तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद प्रिय अनीता जी!मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु..।
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद प्रिय रेणु जी! आपकी सराहना सम्पन्न स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक एवं उत्साह द्विगुणित हो गया..।
सस्नेह आभार आपका।

Manisha Goswami ने कहा…

बहुत ही सुंदर और सरहनीय रचना

Vocal Baba ने कहा…

खूबसूरत रचना। बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार मनीषा जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार विरेन्द्र जी!

Anita ने कहा…

कोमल भावपूर्ण रचना

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।

PRAKRITI DARSHAN ने कहा…

सूरज चंदा तारे लाकर

चुनरी धानी तू सजाता है

धरा तेरी है धरा का तू

ये अर्चित बंधन माने कौन

ये अकुलाहट पहचाने कौन....बहुत ही अच्छी रचना...।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार आ.अनीता जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.संदीप जी!

Udan Tashtari ने कहा…

अद्भुत शब्द चित्र- साधुवाद

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आदरणीय समीरलाल जी!

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल ने कहा…

मुग्धता ही मुग्धता बिखेरती रचना - - निःशब्द कर जाती है - - साधुवाद सह।

विश्वमोहन ने कहा…

अद्भुत!

kissan samuh ने कहा…

बहुत अच्छा सुधा जी

हो सके तो समभाव रहें

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