चित्र साभार प्रिंट्स से....
बसंत की पदचाप सुन
शिशिर अब सकुचा रही
कुहासे की चादर समेटे
पतली गली से जा रही.......
हवाएं उधारी ले धरा
पात पीले झड़ा रही
नवांकुर से होगा नवसृजन
मन्द-मन्द मुस्करा रही......
फूली सरसों लहलहाके
सबके मन को भा रही
अमराइयों में झूम-झूमे
कोकिला भी गा रही........
शिशिर देखे पीछे मुड़ के
जीते कैसे मुझसे लड़ के !
रवि-रश्मियां भी खिलखिलाके
वसंत-राग गा रही .........
पंखुड़ियाँ फूलों लदी
सुगन्ध हैंं फैला रही
गुनगुना रहे भ्रमर
तितलियां मंडरा रही.......
नवेली सी सजी धरा
घूँघट में यूँ शरमा रही
रति स्वयं ज्यों काम संग
अब धरा में आ रही.......।
39 टिप्पणियां:
नवेली सी सजी धरा
घूँघट में यूँ शरमा रही
रति स्वयं ज्यों काम संग
अब धरा में आ रही.......।
बहुत ही सुंदर रचना, सुधा दी।
बहुत सुंदर नव गीत सुना जी।
सुधा जी
मन को मुग्ध करता सुंदर सृजन, प्रणाम।
वाह बेहतरीन रचना सखी
शिशिर व बसंत दोनों ही मौसम में सबसे ज्यादा प्यारे होते हैं । एक में प्रकृति सरस हो जाती है तो दूसरे में विविध रंगों में रंग जाती है। आपकी यह रचना इसीलिये प्रभावशाली बनकर उभरी है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया ।
शिशिर देखे पीछे मुड़ के
जीते कैसे मुझसे लड़ के !
रवि-रश्मियां भी खिलखिलाके
वसंत-राग गा रही .........वाह !बेहतरीन सृजन आदरणीया दीदी जी
आभारी हूँ ज्योति जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
तहेदिल से धन्यवाद कुसुम जी !
सस्नेह आभार।
बहुत बहुत धन्यवाद शशि जी !
सस्नेह आभार।
सुन्दर बेहतरीन
बसंत की पदचाप सुन
शिशिर अब सकुचा रही
कुहासे की चादर लपेटे
पतली गली से का रही
बेहतरीन प्रस्तुति
सहृदय धन्यवाद अनुराधा जी !
सस्नेह आभार...।
हृदयतल से धन्यवाद पुरूषोत्तम जी!
सादर आभार आपका।
सहृदय धन्यवाद अनीता जी !
सस्नेह आभार।
हृदयतल से धन्यवाद रितु जी !
सस्नेह आभार।
.. पहली बार इतनी सुंदर सुंदर कविताएं बसंत के ऊपर पढ़ने मिली और उनमे सेएक आपकी कविता, वाकई में बहुत ही सुंदर बिंबों का प्रयोग किया है आपने, और बेहद खूबसूरत कविता बंन पड़ी है तो शुरू से पढ़ा तो बस पढ़ती ही चली गई अंत तक ...बधाई आपको इतनी अच्छी रचना के लिए..।
सहृदय धन्यवाद उर्मिला जी !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
आपको कविता अच्छी लगी अनु जी तो मेरा श्रम साध्य हुआ....तहेदिल से धन्यवाद आपका।
सस्नेह आभार।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 10 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हृदयतल से धन्यवाद यशोदा जी! मेरी रचना को साझा करने के लिए....
सादर आभार।
नवेली सी सजी धरा
घूँघट में यूँ शरमा रही
रति स्वयं ज्यों काम संग
अब धरा में आ रही.......
वाह !!! अनुपम सौंदर्य बिखेरता बसंत की पदचाप ,लाज़बाब सुधा जी ,सादर नमन
बहुत प्यारी और मोहक रचना, बधाई.
हवाएं उधारी ले धरा
पात पीले झड़ा रही
नवांकुर से होगा नवसृजन
मन्द-मन्द मुस्करा रही
बहुत प्यारा प्रकृति गान !
उत्साह वर्धन करती आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु सहृदय धन्यवाद कामिनी जी।
सस्नेह आभार।
हृदयतल से धन्यवाद जेन्नी शबनम जी आपका ....
सादर आभार।
सहृदय धन्यवाद मीना जी आपकी सराहना उत्साह द्विगुणित कर देती है...।
सस्नेह आभार।
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (17-02-2020) को 'गूँगे कंठ की वाणी'(चर्चा अंक-3614) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुन्दर रचना
वाह
बहुत सुंदर रचना
वाह !आदरणीय दीदी बहुत ही सुन्दर मनभावन सृजन किया है आपने.. बेहतरीन 👌👌
हृदयतल से धन्यवाद ओंकार जी !
सादर आभार।
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आदरणीय सर!
सहृदय धन्यवाद अनीता जी !
सस्नेह आभार।
बेहतरीन रचना ।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.संगीता जी!
अद्भुत मोहक श्रृंगार भाव! बधाई और आभार इतनी ललित रचना का!
बहुत सुंदर रचना
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद भारती जी!
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