एक मोती क्या टूटा जो उस माल से
हर इक मोती को खुलकर जगह मिल गयी
एक पत्ता गिरा जब किसी डाल से
नयी कोंपल निकल कर वहाँ खिल गयी
तुम गये जो घरोंदा ही निज त्याग कर
त्यागने की तुम्हें फिर वजह मिल गयी
लौट के आ समय पर समय कह रहा
फिर न कहना कि मेरी जगह हिल गई
था जो कमजोर झटके में टूटा यहाँँ
जोड़ कर गाँठ अब उसमें पड़ ही गयी
कौन रुकता यहाँँ है किसी के लिए
सोच उसकी भी आगे निकल ही गई
तेरे जाने का गम तो बहुत था मगर
जिन्दगी को अलग ही डगर मिल गई
चित्र साभार pixabay से.....
49 टिप्पणियां:
एक पत्ता गिरा जब किसी डाल से
नयी कोंपल निकल कर वहाँ खिल गयी
तुम गये जो घरोंदा ही निज त्याग कर
त्यागने की तुम्हें फिर वजह मिल गयी
सुन्दर रचना.....
प्रिय सुधा जी
बहुत सुंदर रचना।
वक़्त रूकता नहीं किसी के लिए
वक़्त की ये सीख ऐ काश
कि वक़्त पर समझ आती।
लौट के आ समय पर समय कह रहा
फिर न कहना कि मेरी जगह हिल गई
बहुत खूब !!
सुन्दर सृजन सुधा जी !
तेरे जाने का गम तो बहुत था मगर
जिन्दगी को अलग ही डगर मिल गई
सुधा दी,जो लोग किसी के जाने के बाद भी नए सिरे से जिंदगी जीना शरू करते है वे ही जिंदगी में खुश रह पाते है। बहुत सुंदर रचना।
कमाल की रचना। बहुत आभार और बधाई!!
हार्दिक आभार नैनवाल जी!
तहेदिल से धन्यवाद श्वेता जी!
अत्यंत आभार मीना जी!
जी, ज्योति जी! सही कहा आपने...
हार्दिक धन्यवाद आपका।
तहेदिल से धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी!
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत सुन्दर प्रशंसनीय
उत्कृष्ट ग़ज़ल सिरजी है आपने सुधा जी । जितनी भी तारीफ़ की जाए इसकी, कम ही रहेगी ।
हार्दिक धन्यवाद मीना जी!मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु...
सस्नेह आभार।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी!
पांच लिंको का आनन्द, मंच पर मेरी रचना साझा करने हेतु।
तहेदिल से धन्यवाद आ.आलोक जी!
हार्दिक धन्यवाद आ.जितेन्द्र जी!
सादर आभार।
बहुत खूबसूरत
आज कुछ सीख,जरूर मिल गई
जब सोच खुद की ही बदलने लग गयी
जिसने गम को भी लगाया था खूबसूरती से दिल में
आज वह गम भी कही आसमां में खो गयी
गम है उस नादान परिंदे के जाने का
पर आस में हूँ कि वह फिर लौट आए।
शानदार रचना। बहुत आभार और बधाई!!
बेहतरीन सृजन प्रिय दी सराहनीय...
सादर
कब रहा है कोई भी रिक्त स्थान यहां
स्वयं को तू कितना भी रिक्त मान यहां
कौन रुकता यहाँँ है किसी के लिए
सोच उसकी भी आगे निकल ही गई
तेरे जाने का गम तो बहुत था मगर
जिन्दगी को अलग ही डगर मिल गई
बहुत सुंदर सृजन 🌹🙏🌹
कौन रुकता यहाँँ है किसी के लिए
सोच उसकी भी आगे निकल ही गई
तेरे जाने का गम तो बहुत था मगर
जिन्दगी को अलग ही डगर मिल गई
वाह बेहतरीन रचना सखी 👌
उम्दा प्रस्तुति
अत्यंत मार्मिक कथन- चेतावनी भरा..वाह सुधा जी... बहुत खूब लिखा ....
लौट के आ समय पर समय कह रहा
फिर न कहना कि मेरी जगह हिल गई..
गहरी सोच लिए सुंदर कविता...💐
एक पत्ता गिरा जब किसी डाल से
नयी कोंपल निकल कर वहाँ खिल गयी
तुम गये जो घरोंदा ही निज त्याग कर
त्यागने की तुम्हें फिर वजह मिल गयी
वाह!
क्या बात!! 💐
एक मोती क्या टूटा जो उस माल से
हर इक मोती को खुलकर जगह मिल गयी
एक पत्ता गिरा जब किसी डाल से
नयी कोंपल निकल कर वहाँ खिल गयी..गहरी सम्वेदना से भरी लाजवाब अभिव्यक्ति..
बहुत सुंदर रचना
तेरे जाने का गम तो बहुत था मगर
जिन्दगी को अलग ही डगर मिल गई
बहुत सुंदर सृजन 👍
लाजवाब।
बेहतरीन।
सुप्रभात... बहुत अच्छी रचना...।
एक पत्ता गिरा जब किसी डाल से
नयी कोंपल निकल कर वहाँ खिल गयी
कुछ बुरा होता है तो उसके पीछे कुछ अच्छी बात हो ही जाती है
वाह!! बहुत ही सुंदर भवपूर्ण रचना,सादर नमन सुधा जी
Wow this is fantastic article. I love it and I have also bookmark this page to read again and again. Also check first kiss quotes
बहुत ही सुंदर कविता |हार्दिक शुभकामनायें
बहुत ही सुंदर कविता |हार्दिक शुभकामनायें
Nice keep it up
बहुत ही खूबसूरत पंक्ति मैम
Please visit my blog🙏🙏🙏🙏
बहुत सुंदर और संदेशप्रद रचना सुधा जी।
सुन्दर रचना।
तेरे जाने का गम तो बहुत था मगर
जिन्दगी को अलग ही डगर मिल गई
प्रिय सुधा जी , आपकी ये रचना बहुत पहले पढ़ ली थी पर अज्ञात कारणों से लिख ना पायी | बहुत ही भावपूर्ण और अलग तरह की सम्पूर्ण रचना है | संभवतः जीवन की परिवर्तनशीलता का सटीक अन्वेषण करती हुई | अक्सर हम जिस चीज को खोने से डरते हैं उसे खोकर अंततः उसके मोह से मुक्त होकर जीवन में अपार सुकून पाते हैं | इसी दर्शन को उकेरती रचना के लिए ढेरों शुभकामनाएं|
प्रिय सुधा जी , आपके ब्लॉग का मेरी रीडिंग लिस्ट में ना पहुंचना बहुत खेदपूर्ण है | भाई रविन्द्र सिंह यादव जी और आपका ब्लॉग दिखाई नहीं पड़ता बस | आज मैंने अनफ़ॉलो करके फिर से फ़ॉलो किया है |देखती हूँ क्या होता है | यूँ कहीं ना कहीं आपकी किसी टिप्पणी के जरिये मैं आपके ब्लॉग पर पहुँच ही जाती हूँ पर पिछले कुछ समय में अतिव्यस्ताओं की वजह से सक्रियता में कमी रही | मेरी शुभकामनाएं सदैव आपके साथ हैं और रहेंगी | हार्दिक स्नेह के साथ |
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मोती क्या टूटा जो उस माल से
हर इक मोती को खुलकर जगह मिल गयी
एक पत्ता गिरा जब किसी डाल से
नयी कोंपल निकल कर वहाँ खिल गयी,////
आज एक बार फिर पढ़कर निहाल हूं सुधा जी। बहुत ही प्यारी, अनमोल रचना है 🙏💐🌷❤️
जीवन हर पल बदलता रहता है । वक़्त कभी एक सा नहीं ।
खूबसूरती से लिखा आपने ।
आप सभी का तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सुन्दर सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया द्वारा मेरी रचना को सार्थकता प्रदान कर मेरा उत्साहवर्धन करने हेतु।
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