मधुर गीत गाने लगा
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा
पेड़ों की डाली पे झूले झुलाये
फूलों की खुशबू को वो गुनगुनाए
प्रीत के गीत गाकर वो चालाक भँवरा
पुष्पों को लुभाने लगा
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा ।
नहीं प्रेम उसको वो मकरन्द चाहता
इक बार लेकर कभी फिर न आता
मासूम गुल को बहकाये ये जालिम
स्वयं में फँसाने लगा
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा ।
सभी फूल की दिल्लगी ले रहा ये
वफा क्या ये जाने नहीं
यहाँ आज कल और जाने कहाँ ये
सदाएं भी माने नहीं
पटे फूल सारे रंगे इसके रंग में
मधुप उनको भाने लगा
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा ।
ना लौटा जो जाके तो गुल बिलबिलाके
राह उसकी तकने लगे
विरह पीर सहते , दलपुंज ढ़हते
नयन अश्रु बहने लगे
दिखी दूजि बगिया खिले फूल पर फिर
बेवफा गुनगुनाने लगा ।
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा ।
चित्र साभार गूगल से
पढ़िए मानवीकरण पर आधारित एक और गीत
38 टिप्पणियां:
. बेहद सुंदर गीत लिखा आपने...
बहुत सुंदर रचना, सुधा दी।
क्या बात क्या बात। खूबसूरत रचना।
बहुत सुंदर नवगीत सखी
सभी फूल की दिल्लगी ले रहा ये
वफा क्या ये जाने नहीं
यहाँ आज कल और जाने कहाँ ये
सदाएं भी माने नहीं
पटे फूल सारे रंगे इसके रंग में
मधुप उनको भाने लगा
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा... प्रकृति के इस अद्भुत सौंदर्य को इस कोरोना काल में याद दिलाने के लिए धन्यवाद सुधा जी
अति ऊत्तम रचना।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 21 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हृदयतल से धन्यवाद अनीता जी !
हृदयतल से धन्यवाद ज्योति जी !
सस्नेह आभार भाई!
हृदयतल से धन्यवाद सखी!
हृदयतल सज धन्यवाद, आदरणीय!
हृदयतल से धन्यवाद उर्मिला जी!
हृदयतल से धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना
मंच पर साझा करने हेतु....
सादर आभार।
बहुत सुंदर गीत
बधाई
पढ़ें--लौट रहें हैं अपने गांव
बहुत ही सुंदर गीत
हार्दिक धन्यवाद आ. सरिता जी !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
फूल सारे रंगे इसके रंग में
मधुप उनको भाने लगा
बहुत सुंदर नवगीत
रचना बहुत उम्दा रही
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार जोया जी!
सहृदय धन्यवाद अनीता जी मेरी रचना साझा करने हेतु...
सस्नेह आभार।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार गगन जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत सुन्दर और प्यारी रचना. बधाई.
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नितीश जी!
बहुत सुंदर गीत ।
आनन्द गया आपके इस मकरन्द गीत जैसे भ्रमर गीत पढ रहे है । बहुत ही सुन्दर ।
वाह! बहुत ही सुंदर गीत।
हार्दिक धन्यवाद अखिलेश जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अखिलेश शुक्ला जी !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी !
बहुत सुंदर गीत नामना जी।👌👌👌
भवरों का तो अंदाज़ ही यही है ... पहले लुभाते हैं फिर रस चूस कर दूर हो जाते हिं ... पर कई बार ऐसे ही नव सृजन के बीज भी बो जाते हैं ... प्रेम, अनु-विनय, अनुराग, जुदाई के पलों को बाखूबी बाँधा है इस रचना के माध्यम से आपने .... बहुत सुन्दर रचना है ...
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार सुधा जी !
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार नासवा जी!सुन्दर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु...।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. जोशी जी!
प्रकृति का अद्भुत और मनोरम चित्रण । बेहतरीन व लाजवाब सृजन सुधा जी ।
हृदयतल से धन्यवाद मीना जी उत्साहवर्धन हेतु।
बहुत खूब लिखा है बहुत ही सुंदर गीत।
फुर्सत मिले तो नाचीज की देहलीज पर भी आए
संजय भास्कर
https://sanjaybhaskar.blogspot.com
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