और एक साल बीत गया

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प्रदत्त पंक्ति ' और एक साल बीत गया' पर मेरा एक प्रयास  और एक साल बीत गया  दिन मास पल छिन  श्वास तनिक रीत गया  हाँ ! और एक साल बीत गया ! ओस की सी बूँद जैसी उम्र भी टपक पड़ी  अंत से अजान ऐसी बेल ज्यों लटक खड़ी  मन प्रसून पर फिर से आस भ्रमर रीझ गया  और एक साल बीत गया ! साल भर चैन नहीं पाने की होड़ लगी  और, और, और अधिक संचय की दौड़ लगी  भान नहीं पोटली से प्राण तनिक छीज गया और एक साल बीत गया ! जो है सहेज उसे चैन की इक श्वास तो ले जीवन उद्देश्य जान सुख की कुछ आस तो ले    मन जो संतुष्ट किया वो ही जग जीत गया  और एक साल बीत गया ! नववर्ष के अग्रिम शुभकामनाओं के साथ पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर -- ●  नववर्ष मंगलमय हो

नवगीत--- 'तन्हाई'

loneliness
 अद्य को समृद्ध करने
हेतु अपने सुख थे त्यागे
अब न अपने साथ कोई
जो थे अपनी राह भागे


स्वस्थ थे सुख ले न पाये ,
थी कहाँ परवाह तन की।
भविष्य के सपने सजाते,
ना सुनी यूँ चाह मन की।
व्याधियां हँसने लगी हैं,
सो रहे दिन रात जागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।


आज ऐसे यूँ अकेले,
जिन्दगी के दिन हैं कटते ।
अल्लसुबह से रात बीते,
यूँ अतीती पन्ने फटते।
जागते से नेत्र बोले,
स्वप्न झूठी बात लागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।

    चित्र गूगल से साभार

टिप्पणियाँ

  1. क्या बात है वाह..वेदना कका अंतस नाद।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सुधा जी।

    आपकी रचना पढ़कर मन से फूटी कुछ पंक्तियाँ-
    ----
    पन्नें अतीती फाड़कर
    मनभाव जीवित गाड़कर
    हिय विकलता न मिटे
    प्रीत की हर बात झूठी
    वेदना न जाये ढोई
    तोड़ दूँ मैं मोह धागे

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    उत्तर
    1. वाह!श्वेता जी बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ
      रचना को विस्तार देती...तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

      हटाएं
  2. वाह सुन्दर प्रस्तुति सखी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ रितु जी!बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

      हटाएं
  3. बहुत बहुत सुंदर सखी, यथार्थ दर्शन करवाता सार्थक सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ कुसुम जी! आपकी अनमोल प्रतिक्रिया उत्साह द्विगुणित कर देती है
      सस्नेह आभार।

      हटाएं
  4. बहुत सुंदर रचना, सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ ज्योति जी आपके निरंतर सहयोग एवं उत्साह वर्धन हेतु...
      सहृदय धन्यवाद।

      हटाएं
  5. वाह!सुधा जी ,सुंदर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  6. ऐसा होता है ... जब मन में जोश, हिम्मत, जवानी रहती है तब तक सब के दौड़ता है .... पर जब तन्हाई का आलम आता है तो कोई साथ नहीं होता ... ये तो जीवन की एक आवश्यक रीत है ... हर किसी के साथ होती है ... इसलिए खुद के लिए जीना समय रहते बहुत जरूरी है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद, नासवा जी!सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु...
      सादर आभार।

      हटाएं
  7. अल्लसुबह से रात बीते,
    यूँ अतीती पन्ने फटते।
    जागते से नेत्र बोले,
    स्वप्न झूठी बात लागे।
    बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी गीत सुधा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  8. थी कहाँ परवाह तन की।
    भविष्य के सपने सजाते
    &
    अब न अपने साथ कोई,
    जो थे अपनी राह भागे। ...
    इस चार पंक्तियों में मानव जीवन के आम सार ...यहाँ पर हर पल आनी-जानी है, कुछ पल ही तो ज़िंदगानी है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद, आ. सुबोध जी!सारगर्भित प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु...
      सादर आभार।

      हटाएं
  9. अद्य को समृद्ध करने
    हेतु अपने सुख थे त्यागे
    अब न अपने साथ कोई
    जो थे अपनी राह भागे


    स्वस्थ थे सुख ले न पाये ,
    थी कहाँ परवाह तन की।
    भविष्य के सपने सजाते,
    ना सुनी यूँ चाह मन की।
    व्याधियां हँसने लगी हैं,
    सो रहे दिन रात जागे।
    अब न अपने साथ कोई,
    जो थे अपनी राह भागे।... वाह !लाजवाब सृजन आदरणीया दीदी 👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद अनीता जी!उत्साहवर्धन हेतु...
      सस्नेह आभार।

      हटाएं
  10. यथार्थवादी लाजवाब सृजन सुधा जी,बहुत अच्छा लिख रही हैं आप।

    जवाब देंहटाएं
  11. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०९-०५-२०२०) को 'बेटे का दर्द' (चर्चा अंक-३६९६) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    **
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद अनीता जी मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु...
      सस्नेह आभार।

      हटाएं
  12. स्वस्थ थे सुख ले न पाये ,
    थी कहाँ परवाह तन की।
    भविष्य के सपने सजाते,
    ना सुनी यूँ चाह मन की।

    सत्य कहा आपने सुधा जी ,लाज़बाब सृजन ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी !

      हटाएं
  13. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद यादव जी!
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है

      हटाएं
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  16. बहुत अच्छी प्रस्तुति है आपकी । वाह ।

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