अद्य को समृद्ध करने
हेतु अपने सुख थे त्यागे
अब न अपने साथ कोई
जो थे अपनी राह भागे
स्वस्थ थे सुख ले न पाये ,
थी कहाँ परवाह तन की।
भविष्य के सपने सजाते,
ना सुनी यूँ चाह मन की।
व्याधियां हँसने लगी हैं,
सो रहे दिन रात जागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।
आज ऐसे यूँ अकेले,
जिन्दगी के दिन हैं कटते ।
अल्लसुबह से रात बीते,
यूँ अतीती पन्ने फटते।
जागते से नेत्र बोले,
स्वप्न झूठी बात लागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।
चित्र गूगल से साभार
हेतु अपने सुख थे त्यागे
अब न अपने साथ कोई
जो थे अपनी राह भागे
स्वस्थ थे सुख ले न पाये ,
थी कहाँ परवाह तन की।
भविष्य के सपने सजाते,
ना सुनी यूँ चाह मन की।
व्याधियां हँसने लगी हैं,
सो रहे दिन रात जागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।
आज ऐसे यूँ अकेले,
जिन्दगी के दिन हैं कटते ।
अल्लसुबह से रात बीते,
यूँ अतीती पन्ने फटते।
जागते से नेत्र बोले,
स्वप्न झूठी बात लागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।
चित्र गूगल से साभार
46 टिप्पणियां:
वाह बेहतरीन रचना सखी
क्या बात है वाह..वेदना कका अंतस नाद।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सुधा जी।
आपकी रचना पढ़कर मन से फूटी कुछ पंक्तियाँ-
----
पन्नें अतीती फाड़कर
मनभाव जीवित गाड़कर
हिय विकलता न मिटे
प्रीत की हर बात झूठी
वेदना न जाये ढोई
तोड़ दूँ मैं मोह धागे
वाह सुन्दर प्रस्तुति सखी
बहुत बहुत सुंदर सखी, यथार्थ दर्शन करवाता सार्थक सृजन।
बहुत सुंदर रचना, सुधा दी।
सहृदय धन्यवाद एवं आभार सखी!
वाह!श्वेता जी बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ
रचना को विस्तार देती...तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
आभारी हूँ रितु जी!बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
आभारी हूँ कुसुम जी! आपकी अनमोल प्रतिक्रिया उत्साह द्विगुणित कर देती है
सस्नेह आभार।
आभारी हूँ ज्योति जी आपके निरंतर सहयोग एवं उत्साह वर्धन हेतु...
सहृदय धन्यवाद।
वाह!सुधा जी ,सुंदर सृजन ।
अति उत्तम
ऐसा होता है ... जब मन में जोश, हिम्मत, जवानी रहती है तब तक सब के दौड़ता है .... पर जब तन्हाई का आलम आता है तो कोई साथ नहीं होता ... ये तो जीवन की एक आवश्यक रीत है ... हर किसी के साथ होती है ... इसलिए खुद के लिए जीना समय रहते बहुत जरूरी है ...
अत्यंत आभार, शुभा जी !
सस्नेह आभार भाई!
हार्दिक धन्यवाद, उर्मिला जी !
हृदयतल से धन्यवाद, नासवा जी!सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु...
सादर आभार।
अल्लसुबह से रात बीते,
यूँ अतीती पन्ने फटते।
जागते से नेत्र बोले,
स्वप्न झूठी बात लागे।
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी गीत सुधा जी ।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद मीना जी !
सुन्दर सृजन
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ. जोशी जी !
थी कहाँ परवाह तन की।
भविष्य के सपने सजाते
&
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे। ...
इस चार पंक्तियों में मानव जीवन के आम सार ...यहाँ पर हर पल आनी-जानी है, कुछ पल ही तो ज़िंदगानी है ...
बहुत अच्छी प्रस्तुति
हृदयतल से धन्यवाद, आ. सुबोध जी!सारगर्भित प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु...
सादर आभार।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कविता जी !
अद्य को समृद्ध करने
हेतु अपने सुख थे त्यागे
अब न अपने साथ कोई
जो थे अपनी राह भागे
स्वस्थ थे सुख ले न पाये ,
थी कहाँ परवाह तन की।
भविष्य के सपने सजाते,
ना सुनी यूँ चाह मन की।
व्याधियां हँसने लगी हैं,
सो रहे दिन रात जागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।... वाह !लाजवाब सृजन आदरणीया दीदी 👌
सहृदय धन्यवाद अनीता जी!उत्साहवर्धन हेतु...
सस्नेह आभार।
यथार्थवादी लाजवाब सृजन सुधा जी,बहुत अच्छा लिख रही हैं आप।
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०९-०५-२०२०) को 'बेटे का दर्द' (चर्चा अंक-३६९६) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
सहृदय धन्यवाद एवं आभार सुधा जी!
सहृदय धन्यवाद अनीता जी मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु...
सस्नेह आभार।
बहुत सुंदर नवगीत सखी👌👌
स्वस्थ थे सुख ले न पाये ,
थी कहाँ परवाह तन की।
भविष्य के सपने सजाते,
ना सुनी यूँ चाह मन की।
सत्य कहा आपने सुधा जी ,लाज़बाब सृजन ,सादर नमस्कार
Nice Line, Keep writing
Book Rivers
अत्यंत आभार सुधा जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी !
बहुत अच्छी प्रस्तुति .l
हार्दिक धन्यवाद यादव जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
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जी, धन्यवाद आपका।
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जी, धन्यवाद आपका...।
बहुत अच्छी प्रस्तुति है आपकी । वाह ।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
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