नवगीत--- 'तन्हाई'
अद्य को समृद्ध करने
हेतु अपने सुख थे त्यागे
अब न अपने साथ कोई
जो थे अपनी राह भागे
स्वस्थ थे सुख ले न पाये ,
थी कहाँ परवाह तन की।
भविष्य के सपने सजाते,
ना सुनी यूँ चाह मन की।
व्याधियां हँसने लगी हैं,
सो रहे दिन रात जागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।
आज ऐसे यूँ अकेले,
जिन्दगी के दिन हैं कटते ।
अल्लसुबह से रात बीते,
यूँ अतीती पन्ने फटते।
जागते से नेत्र बोले,
स्वप्न झूठी बात लागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।
चित्र गूगल से साभार
हेतु अपने सुख थे त्यागे
अब न अपने साथ कोई
जो थे अपनी राह भागे
स्वस्थ थे सुख ले न पाये ,
थी कहाँ परवाह तन की।
भविष्य के सपने सजाते,
ना सुनी यूँ चाह मन की।
व्याधियां हँसने लगी हैं,
सो रहे दिन रात जागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।
आज ऐसे यूँ अकेले,
जिन्दगी के दिन हैं कटते ।
अल्लसुबह से रात बीते,
यूँ अतीती पन्ने फटते।
जागते से नेत्र बोले,
स्वप्न झूठी बात लागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।
चित्र गूगल से साभार
टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सुधा जी।
आपकी रचना पढ़कर मन से फूटी कुछ पंक्तियाँ-
----
पन्नें अतीती फाड़कर
मनभाव जीवित गाड़कर
हिय विकलता न मिटे
प्रीत की हर बात झूठी
वेदना न जाये ढोई
तोड़ दूँ मैं मोह धागे
रचना को विस्तार देती...तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
सस्नेह आभार।
सहृदय धन्यवाद।
सादर आभार।
यूँ अतीती पन्ने फटते।
जागते से नेत्र बोले,
स्वप्न झूठी बात लागे।
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी गीत सुधा जी ।
भविष्य के सपने सजाते
&
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे। ...
इस चार पंक्तियों में मानव जीवन के आम सार ...यहाँ पर हर पल आनी-जानी है, कुछ पल ही तो ज़िंदगानी है ...
सादर आभार।
हेतु अपने सुख थे त्यागे
अब न अपने साथ कोई
जो थे अपनी राह भागे
स्वस्थ थे सुख ले न पाये ,
थी कहाँ परवाह तन की।
भविष्य के सपने सजाते,
ना सुनी यूँ चाह मन की।
व्याधियां हँसने लगी हैं,
सो रहे दिन रात जागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।... वाह !लाजवाब सृजन आदरणीया दीदी 👌
सस्नेह आभार।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०९-०५-२०२०) को 'बेटे का दर्द' (चर्चा अंक-३६९६) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
सस्नेह आभार।
थी कहाँ परवाह तन की।
भविष्य के सपने सजाते,
ना सुनी यूँ चाह मन की।
सत्य कहा आपने सुधा जी ,लाज़बाब सृजन ,सादर नमस्कार
ब्लॉग पर आपका स्वागत है