आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

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  आओ बच्चों ! अबकी बारी  होली अलग मनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें  छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग  सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए  एक और रचना इसी ब्लॉग पर ●  बच्चों के मन से

ये भादो के बादल

Cloudy weather
चित्र साभार,pixabay से...


 भुट्टे मुच्छे तान खड़े

तोरई टिण्डे हर्षाते हैं 

चढ़ मचान फैला प्रतान 

अब सब्ज बेल लहराते हैं


चटक चमकती धूप छुपा 

ये घुमड़ घुमड़ गहराते हैं

उमस भरे मौसम में ये 

राहत थोड़ी दे जाते हैं


हरियाये हैं खेत धान के,

देख इन्हें बतियाते हैं

जान इल्तजा उमड़-घुमड़ 

ये धूप मे वर्षा लाते हैं


श्रृंगित प्रकृति के भाल मुकुट 

जब इन्द्रधनुष बन जाते हैं

नाच मयूरा ठुमक ठुमक

घन गर्जन ताल बजाते हैं


ये भादो के बादल हैं 

अब बचा-खुचा बरसाते हैं

ये चंचल कजरारे मेघा

सबके मन को भाते हैं।



पढ़िए, बादलों पर आधारित मेरी एक और रचना

● अक्टूबर के अनाहूत अभ्र


टिप्पणियाँ

  1. भादों माह की प्रकृति और उसकी सार्थकता का बहुत सुंदर वर्णन।इस सुंदर कृति के लिए बहुत बधाई आपको सुधा जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. वर्षा के सब रंग रुपहले। सुन्दर पंक्तियाँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुरंगें भादों की छटा को शब्दों में समेटता सुंदर यथार्थ सृजन सुधा जी मोहक।
    वर्षा ऋतु के मनोहारी चित्रण ने भावों को और सरस कर दिया।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह बहुत सुंदर ऐसा लग रहा है मानों हम उन सुन्दर हरियाली भरी खेतों के बीच इन सब चीजों को देख कर सुन रहे हैं, और जी रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  5. ये भादो के बादल हैं

    अब बचा-खुचा बरसाते हैं

    ये चंचल कजरारे मेघा

    सबके मन को भाते हैं।

    भादों की प्राकृतिक सुंदरता को दर्शाती कविता....बहुत सुंदर...

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 08 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद आ.यशोदा जी मेरी रचना को मुखरित मौन में साझा करने हेतु।
      सादर आभार।

      हटाएं
  7. ये भादो के बादल हैं

    अब बचा-खुचा बरसाते हैं

    ये चंचल कजरारे मेघा

    सबके मन को भाते हैं।
    बहुत सुंदर रचना,सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं
  8. भादो के बादल इतना सुंदर दृश्य रचते हैं ये आपकी रचना पढ़ते हुए साकार सा हो गया । बहुत सुंदर ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार एवं हृदयतल से धन्यवाद आ.संगीता जी!

      हटाएं
  9. बहुत खूबसूरत, सुंदर चित्रण

    जवाब देंहटाएं
  10. श्रृंगित प्रकृति के भाल मुकुट

    जब इन्द्रधनुष बन जाते हैं

    नाच मयूरा ठुमक ठुमक

    घन गर्जन ताल बजाते हैं


    बहुत खूबसूरत

    जवाब देंहटाएं
  11. तहेदिल से धन्यवाद ज्योति जी!
    सस्नेह आभार।

    जवाब देंहटाएं
  12. वाह! बहुत सुंदर समा बाँधा सावन के बादल ने।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप भादो के बादल में सावन का कैसे देख लिए साहिब !!😂😂😂 लगता है शिव जी अभी तक असरकारक बने हुए हैं ...

      हटाएं
    2. हार्दिक धन्यवाद आ.सुबोध जी!

      हटाएं
  13. भुट्टे मुच्छे तान खड़े

    तोरई टिण्डे हर्षाते हैं
    वाह…!

    जवाब देंहटाएं
  14. जी, तहेदिल से धन्यवाद आपका आ.विश्वमोहन जी!पर मैंने भादो के बादलों के विषय में लिखा है जो बचा खुचा बरसा रहे हैं धूप में बारिश, इन्द्रधनुष बनना...आदि।
    सादर आभार।

    जवाब देंहटाएं
  15. सावन के विमर्श के चलते भादों की बात कम ही होती है। आपने भादों के बादलों की चर्चा की, यह एक अनूठी बात है। कविता अच्छी है सुधा जी। अभिनंदन आपका।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र जी! सही कहा सावन की घनघोर घटाएं ही विमर्श में आती हैं हमेशा.... मुझे भादो के बादलों में आकृष्ट किया है आजकल...
      आपको रचना अच्छी लगी जानकर बहुत खुशी हुई
      बहुत बहुत आभार आपका।

      हटाएं
  16. सावन के बादल तो आते हैं बरस जाती हैं ...
    पर भादों के बादल भी इतना कुछ ले आते हैं ... आपकी लाजवाब रचना ने बहुत कुछ बता दिया ...
    बहुत भावपूर्ण और जुदा अंदाज़ की रचना ...
    गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नासवा जी!
      आपको भी गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  17. उम्मीद करते हैं आप अच्छे होंगे

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  19. श्रृंगित प्रकृति के भाल मुकुट

    जब इन्द्रधनुष बन जाते हैं

    नाच मयूरा ठुमक ठुमक

    घन गर्जन ताल बजाते हैं

    Abhiyakti ne Prakiti Shringar ko aur bhi sushobhit kar diya
    sadhuwad sundar abhivyakti ke lie.

    जवाब देंहटाएं

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