तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे
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जो गुण नहीं था उसमें
हरदम देखा तुमने ,
हर कसौटी पर खरी उतरे
ये भी चाहा तुमने !
पर जो गुण हैं उसमें
उसको समझ सकोगे?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
बचपन की यादों से जिसने
समझौता कर डाला ।
और तुम्हारे ही सपनों को
सर आँखों रख पाला ।
पर उसके अपने ही मन से
उसको मिलने दोगे ?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
सबको अपनाकर भी
सबकी हो ना पायी ।
है बाहर की क्यों अपनों
संग सदा परायी ?
थोड़ा सा सम्मान
कभी उसको भी दोगे ?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
सुनकर तुमको सीख ही जाती
आने वाली पीढ़ी ।
सोच यही फिर बढ़ती जाती
हर पीढ़ी दर पीढ़ी ।
परिर्वतन की नव बेला में
खुद को कभी बदलोगे ?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
समाधिकार उसे दोगे तो
वह हद में रह लेगी ।
अनुसरणी सी घर-गृहस्थी की
बागडोर खुद लेगी ।
निज गृहस्थी के खातिर तुम भी
अपनी हद में रहोगे ?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
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टिप्पणियाँ
बहुत बहुत सुन्दर बहुत सराहनीय
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार एवं धन्यवाद आ.आलोक जी!
हटाएंवाह बेहतरीन
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद रितु जी!
हटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.यशोदा जी मेरी रचना साझा करने हेतु।
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की शुभकामनाएं| सुन्दर सृजन|
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आ.जोशी जी!
हटाएंआपको भी हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजज़्बातों की कद्र वहीं हो सकती है कब ये न समझा जाये कि ये घर गृहस्थी चलानाकेवल एक की ही ज़िम्मेदारी है ।
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण रचना ।
तहेदिल से धन्यवाद आ.संगीता जी!
हटाएंसादर आभार।
जो गुण नहीं था उसमें
जवाब देंहटाएंहरदम देखा तुमने
हर कसौटी पर खरी उतरे
ये भी चाहा तुमने
पर जो गुण हैं उसमें
उसको समझ सकोगे?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
.....बहुत सटीक रचना, अवगुण को गिनाते वक्त अगर इंसान सामने वाले का एक भी गुण स्मरण कर ले तो जो रिश्तों में दूरियाँ या कड़वाहट होती हैं,वो कभी हों ही न।सुंदर रचना ।
तहेदिल से धन्यवाद जिज्ञासा जी!
हटाएंसस्नेह आभार।
उन बेकद्रों को क्या खबर कि कद्र करना क्या चीज है । कभी जैसे को तैसा करके भी देखा जा सकता है । मर्मस्पर्शी विषय पर प्रभावी लेखन ।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद आ.अमृता जी!
हटाएंसादर आभार।
सुंदर और सार्थक संदेश देती यह कविता बहुत अच्छी है। बहुत-बहुत बढ़िया सृजन है। आपको ढेरों शुभकामनाएँ। सादर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार विरेन्द्र जी!
हटाएंसहज सामयिक प्रश्न। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.प्रवीण जी!
हटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आ.मुकेश जी!
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सुधा दी, आज की आपकी इस कविता ने तो कमाल कर दिया। ऐसा लगा कि हर महिला के दिल की आवाज है ये! बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति दी। मैं ने ये रचना मेरे पैरिवारिक ग्रुप में भी शेयर की है।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद ज्योति जी रचना पसन्द करने एवं पारिवारिक ग्रुप मे शेयर करने हेतु।
हटाएंसस्नेह आभार।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१८-०९-२०२१) को
'ईश्वर के प्रांगण में '(चर्चा अंक-४१९१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
तहेदिल से धन्यवाद प्रिय अनीता जी! मेरी रचना को चर्चा मंच पर शेयर करने हेतु।
हटाएंसस्नेह आभार।
हार्दिक धन्यवाद जवं आभार मनोज जी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद जवं आभार आ.ओंकार जी!
हटाएंसुंदर सृजन...
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.संदीप जी!
हटाएंबहुत ही भावनात्मक रचना!
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद प्रिय मनीषा जी!
हटाएंवाह! सुधा जी बहुत ही सटीक लिखा आपने ,किसी से भी उसकी क्षमता के बाहर उम्मीद पालना और वैसे ही व्यवहार की उम्मीद रखना ये विसंगती जरूर है पर गृहणियों से ये उम्मीद कुछ ज्यादा ही लगाता है ये समाज, परिवार, पति बच्चे सब,पर उसके जज़्बातों को समझने का प्रयास कितने लोग करते हैं।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम सृजन।
सुन्दर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.कुसुम जी!
हटाएंदिल और दिमाग दोनो को छूती रचना। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी!
हटाएंजो गुण नहीं था उसमें
जवाब देंहटाएंहरदम देखा तुमने
हर कसौटी पर खरी उतरे
ये भी चाहा तुमने
पर जो गुण हैं उसमें
उसको समझ सकोगे?
सुंदर विचारोत्तेजक कविता...
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नैनवाल जी!
जवाब देंहटाएं