जो गुण नहीं था उसमें
हरदम देखा तुमने
हर कसौटी पर खरी उतरे
ये भी चाहा तुमने
पर जो गुण हैं उसमें
उसको समझ सकोगे?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
बचपन की यादों से जिसने
समझौता कर डाला
और तुम्हारे ही सपनों को
सर आँखों रख पाला
पर उसके अपने ही मन से
उसको मिलने दोगे ?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
सबको अपनाकर भी
सबकी हो ना पायी
है बाहर की क्यों अपनों
संग सदा परायी
थोड़ा सा सम्मान
कभी उसको भी दोगे ?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
सुनकर तुमको सीख ही जाती
आने वाली पीढ़ी
सोच यही फिर बढ़ती जाती
हर पीढ़ी दर पीढ़ी
परिर्वतन की नव बेला में
खुद को कभी बदलोगे
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
समाधिकार उसे दोगे तो
वह हद में रह लेगी
अनुसरणी सी घर-गृहस्थी की
बागडोर खुद लेगी
निज गृहस्थी के खातिर तुम भी
अपनी हद में रहोगे ?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
38 टिप्पणियां:
बहुत बहुत सुन्दर बहुत सराहनीय
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 14 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह बेहतरीन
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आ.आलोक जी!
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.यशोदा जी मेरी रचना साझा करने हेतु।
हार्दिक धन्यवाद रितु जी!
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं| सुन्दर सृजन|
जज़्बातों की कद्र वहीं हो सकती है कब ये न समझा जाये कि ये घर गृहस्थी चलानाकेवल एक की ही ज़िम्मेदारी है ।
सुंदर भावपूर्ण रचना ।
जो गुण नहीं था उसमें
हरदम देखा तुमने
हर कसौटी पर खरी उतरे
ये भी चाहा तुमने
पर जो गुण हैं उसमें
उसको समझ सकोगे?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
.....बहुत सटीक रचना, अवगुण को गिनाते वक्त अगर इंसान सामने वाले का एक भी गुण स्मरण कर ले तो जो रिश्तों में दूरियाँ या कड़वाहट होती हैं,वो कभी हों ही न।सुंदर रचना ।
उन बेकद्रों को क्या खबर कि कद्र करना क्या चीज है । कभी जैसे को तैसा करके भी देखा जा सकता है । मर्मस्पर्शी विषय पर प्रभावी लेखन ।
हार्दिक धन्यवाद आ.जोशी जी!
आपको भी हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं।
तहेदिल से धन्यवाद आ.संगीता जी!
सादर आभार।
तहेदिल से धन्यवाद जिज्ञासा जी!
सस्नेह आभार।
तहेदिल से धन्यवाद आ.अमृता जी!
सादर आभार।
सुंदर और सार्थक संदेश देती यह कविता बहुत अच्छी है। बहुत-बहुत बढ़िया सृजन है। आपको ढेरों शुभकामनाएँ। सादर।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार विरेन्द्र जी!
सहज सामयिक प्रश्न। सुन्दर रचना।
सुंदर कविता
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.प्रवीण जी!
हार्दिक धन्यवाद आ.मुकेश जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सुधा दी, आज की आपकी इस कविता ने तो कमाल कर दिया। ऐसा लगा कि हर महिला के दिल की आवाज है ये! बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति दी। मैं ने ये रचना मेरे पैरिवारिक ग्रुप में भी शेयर की है।
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१८-०९-२०२१) को
'ईश्वर के प्रांगण में '(चर्चा अंक-४१९१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदयतल से धन्यवाद ज्योति जी रचना पसन्द करने एवं पारिवारिक ग्रुप मे शेयर करने हेतु।
सस्नेह आभार।
हार्दिक धन्यवाद जवं आभार मनोज जी!
तहेदिल से धन्यवाद प्रिय अनीता जी! मेरी रचना को चर्चा मंच पर शेयर करने हेतु।
सस्नेह आभार।
बहुत सुन्दर
सुंदर सृजन...
बहुत ही भावनात्मक रचना!
वाह! सुधा जी बहुत ही सटीक लिखा आपने ,किसी से भी उसकी क्षमता के बाहर उम्मीद पालना और वैसे ही व्यवहार की उम्मीद रखना ये विसंगती जरूर है पर गृहणियों से ये उम्मीद कुछ ज्यादा ही लगाता है ये समाज, परिवार, पति बच्चे सब,पर उसके जज़्बातों को समझने का प्रयास कितने लोग करते हैं।
अप्रतिम सृजन।
हार्दिक धन्यवाद जवं आभार आ.ओंकार जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.संदीप जी!
हार्दिक धन्यवाद प्रिय मनीषा जी!
सुन्दर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.कुसुम जी!
दिल और दिमाग दोनो को छूती रचना। बहुत सुंदर।
जो गुण नहीं था उसमें
हरदम देखा तुमने
हर कसौटी पर खरी उतरे
ये भी चाहा तुमने
पर जो गुण हैं उसमें
उसको समझ सकोगे?
सुंदर विचारोत्तेजक कविता...
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नैनवाल जी!
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