बीती ताहि बिसार दे

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  स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं।  पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं ।  परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है  ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे ।   ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...

वीरांगना बन जाओ बिटिया....

girl practicing karate
नाजुकता अब छोडो बिटिया,
वीरांगना बन जाओ ना ।
सीखो जूडो और करांटे,
बल अपना फिर बढाओ ना ।

भैया दण्ड-पेल हैं करते,
तुम भी वही अपनाओ ना ।
गुड्डा-गुड्डी  खेल छोड़ तुम
वीरांगी बन जाओ ना ।

मात-पिता की चिन्ता हो तुम,
रूप नया अपनाओ ना ।
खेलो दंगल बवीता सा तुम,
देश का मान बढाओ ना ।

छोड़ो कोमलता भी अपनी ,
समय को मात दे जाओ ना ।
रणचण्डी,दुर्गा तुम बनकर,
दुष्टों को धूल चटाओ ना ।

निर्भया ज्योति थी माँ-पापा की ,
तम उनका भी मिटाओ ना ।
ऐसे दरिन्दो का काल बनो तुम ,
इतिहास नया ही रचाओ ना ।

अब कोई भी कली धरा पर ,
ऐसे रौंदी जाये ना ।
बीज पनपने से पहले ये ,
भ्रूण में कुचली जाये ना ।

दहेज के भिखमंगों को भी,
बीच सडक पर लाओ ना ।
बहू जलाने वालों के घर-
आँगन आग लगाओ ना ।

वीरांगना बनो तुम बिटिया
सम्बल होगा देश अपना ।
उत्कृष्ट भविष्य के नव-निर्माण से,
होगा पूरा तेरा हर सपना ।


चित्र ; साभार गूगल से...


टिप्पणियाँ

  1. गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर बिटियों का होंसला बढ़ाती अनुपम भेंट।

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  2. बेटियों को ओज भरा आह्वान करती सुंदर सार्थक रचना सुधा जी प्रेरणादायक सृजन।

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना बेटियो का उत्साह वर्धन सुधा जी

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  4. बहुत ही सुंदर रचना...आज के समय की माँग यही है....

    जवाब देंहटाएं
  5. निर्भया ज्योति थी माँ-पापा की ,
    तम उनका भी मिटाओ ना........
    ऐसे दरिन्दो का काल बनो तुम ,
    इतिहास नया ही रचाओ ना ।
    आज के समय के मद्देनजर बहुत ही सटीक रचना सुधा दी।

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