सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

चित्र
  किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात  सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे,  तेरे पुण्यों का भार  तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ●  तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे

वीरांगना बन जाओ बिटिया....

girl practicing karate
नाजुकता अब छोडो बिटिया,
वीरांगना बन जाओ ना ।
सीखो जूडो और करांटे,
बल अपना फिर बढाओ ना ।

भैया दण्ड-पेल हैं करते,
तुम भी वही अपनाओ ना ।
गुड्डा-गुड्डी  खेल छोड़ तुम
वीरांगी बन जाओ ना ।

मात-पिता की चिन्ता हो तुम,
रूप नया अपनाओ ना ।
खेलो दंगल बवीता सा तुम,
देश का मान बढाओ ना ।

छोड़ो कोमलता भी अपनी ,
समय को मात दे जाओ ना ।
रणचण्डी,दुर्गा तुम बनकर,
दुष्टों को धूल चटाओ ना ।

निर्भया ज्योति थी माँ-पापा की ,
तम उनका भी मिटाओ ना ।
ऐसे दरिन्दो का काल बनो तुम ,
इतिहास नया ही रचाओ ना ।

अब कोई भी कली धरा पर ,
ऐसे रौंदी जाये ना ।
बीज पनपने से पहले ये ,
भ्रूण में कुचली जाये ना ।

दहेज के भिखमंगों को भी,
बीच सडक पर लाओ ना ।
बहू जलाने वालों के घर-
आँगन आग लगाओ ना ।

वीरांगना बनो तुम बिटिया
सम्बल होगा देश अपना ।
उत्कृष्ट भविष्य के नव-निर्माण से,
होगा पूरा तेरा हर सपना ।


चित्र ; साभार गूगल से...


टिप्पणियाँ

  1. गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर बिटियों का होंसला बढ़ाती अनुपम भेंट।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेटियों को ओज भरा आह्वान करती सुंदर सार्थक रचना सुधा जी प्रेरणादायक सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर रचना बेटियो का उत्साह वर्धन सुधा जी

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुंदर रचना...आज के समय की माँग यही है....

    जवाब देंहटाएं
  5. निर्भया ज्योति थी माँ-पापा की ,
    तम उनका भी मिटाओ ना........
    ऐसे दरिन्दो का काल बनो तुम ,
    इतिहास नया ही रचाओ ना ।
    आज के समय के मद्देनजर बहुत ही सटीक रचना सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

तन में मन है या मन में तन ?