वीरांगना बन जाओ ना ।
सीखो जूडो और करांटे,
बल अपना फिर बढाओ ना ।
भैया दण्ड-पेल हैं करते,
तुम भी वही अपनाओ ना ।
गुड्डा-गुड्डी खेल छोड़ तुम
वीरांगी बन जाओ ना ।
मात-पिता की चिन्ता हो तुम,
रूप नया अपनाओ ना ।
खेलो दंगल बवीता सा तुम,
देश का मान बढाओ ना ।
छोड़ो कोमलता भी अपनी ,
समय को मात दे जाओ ना ।
रणचण्डी,दुर्गा तुम बनकर,
दुष्टों को धूल चटाओ ना ।
निर्भया ज्योति थी माँ-पापा की ,
तम उनका भी मिटाओ ना ।
ऐसे दरिन्दो का काल बनो तुम ,
इतिहास नया ही रचाओ ना ।
अब कोई भी कली धरा पर ,
ऐसे रौंदी जाये ना ।
बीज पनपने से पहले ये ,
भ्रूण में कुचली जाये ना ।
दहेज के भिखमंगों को भी,
बीच सडक पर लाओ ना ।
बहू जलाने वालों के घर-
आँगन आग लगाओ ना ।
वीरांगना बनो तुम बिटिया
सम्बल होगा देश अपना ।
उत्कृष्ट भविष्य के नव-निर्माण से,
होगा पूरा तेरा हर सपना ।
चित्र ; साभार गूगल से...
10 टिप्पणियां:
गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर बिटियों का होंसला बढ़ाती अनुपम भेंट।
बेटियों को ओज भरा आह्वान करती सुंदर सार्थक रचना सुधा जी प्रेरणादायक सृजन।
हार्दिक धन्यवाद भाई!
हृदयतल से धन्यवाद, कुसुम जी!
बहुत ही सुन्दर रचना बेटियो का उत्साह वर्धन सुधा जी
बहुत ही सुंदर रचना...आज के समय की माँग यही है....
निर्भया ज्योति थी माँ-पापा की ,
तम उनका भी मिटाओ ना........
ऐसे दरिन्दो का काल बनो तुम ,
इतिहास नया ही रचाओ ना ।
आज के समय के मद्देनजर बहुत ही सटीक रचना सुधा दी।
हार्दिक धन्यवाद रितु जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नैनवाल जी!
तहेदिल से धन्यवाद, ज्योति जी!
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