उदियांचल से सूर्य झांकता,
पनिहारिन सह चिड़िया चहकी।
कुहकी कोयल डाल-डाल पर,
ताल-ताल पर कुमुदिनी महकी।
निरभ्र आसमां खिला-खिला सा,
ज्यों स्वागत करता हो रवि का।
अन्तर्द्वन्द उमड़े भावों से,
लिखने को मन आतुर कवि का।।
दुहती ग्वालिन दुग्ध गरगर स्वर,
चाटती बछड़ा गाय प्यार से।
गीली-गीली चूनर उसकी,
तर होती बछड़े की लार से।
उद्यमशील निरन्तर कर्मठ,
भान नहीं उनको इस छवि का।
अन्तर्द्वन्द उमड़े भावों से,
लिखने को मन आतुर कवि का
कहीं हलधर हल लिए काँध पर,
बैलों संग खेतों में जाते।
सुरभित बयार से महकी दिशाएं,
कृषिका का आँचल महकाते।
सुसज्जित प्रकृति भोर में देखो,
मनमोहती हो जैसे अवि का।
अन्तर्द्वन्द उमड़े भावों से,
लिखने को मन आतुर कवि का
चित्र, साभार गूगल से...
40 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर दुहती ग्वालिन दुग्ध गरगर स्वर,
चाटती बछड़ा गाय प्यार से।
गीली-गीली चूनर उसकी,
तर होती बछड़े की लार से।
उद्यमशील निरन्तर कर्मठ,.......
खबसूरत रचना।
भोर बेला का नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत करता मधुरिम नव गीत सुना जी।
मनहर मोहक।
सुधा दी, सुबह की बेला का बहुत ही सुंदर दृश्य उकेरा है आपने।
गांव के भिनसार (सबेरा) का दृश्य आपने अपनी रचना के माध्यम से दिखला दिया।बहुत सुन्दर।👌👌
निरभ्र आसमां खिला-खिला सा,
ज्यों स्वागत करता हो रवि का।
अन्तर्द्वन्द उमड़े भावों से,
लिखने को मन आतुर कवि का।। बेहद खूबसूरत नवगीत सखी
सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार( 31-07-2020) को "जन-जन का अनुबन्ध" (चर्चा अंक-3779) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
सस्नेह आभार, भाई!
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी!
बहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी!
सस्नेह आभार।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद उर्मिला जी !
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार सखी!
सहृदय आभार एवं धन्यवाद मीना जी सहयोग हेतु।
बहुत खूबसूरत दृश्य उकेरा है आपने 👌👌
बहुत सुन्दर भोर का दृश्य लिखा आपने।
बहुत सुन्दर रचना सुधा जी!
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सुधा जी!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद उर्मिला जी!
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सर!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
सादर आभार।
सुंदर और सराहनीय बेहतरीन प्रस्तुति
वाह !सुधा जी ,अनुपम भावाभिव्यक्ति
हार्दिक धन्यवाद राकेश जी !
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद शुभा जी!
बहुत ही सुंदर कविता (शब्द-चित्र भी कह सकते हैं इसे) । अभिनन्दन सुधा जी ।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार माथुर जी !
वाह , बढ़िया रचना
सादर धन्यवाद एवं आभार सर!
बहुत सुंदर रचना, अभी आप मुझे मेरे गांव से घुमा के ले आये। धन्यवाद
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद डबराल जी!
वाह बहुत खूब
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद सर!
आँखों के सामने से एक चलचित्र की तरह गाँव और भोर का दृश्य गुज़र गया ...
सुन्दर शब्दो से संजोती पोस्ट ... सजीली और सुन्दर रचना ...
लाजवाब ... श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नासवा जी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु।
बहुत खूब जी, हम भी अपने ब्लॉग पर अनमोल विचार लिखते हैं प्रेरणादायक सुविचार
जी , धन्यवाद आपका। आपके ब्लॉग पर हो आयी हूँ मैं....बहुत सुन्दर और वाकई प्रेरणादायक विचार लिखे हैं आपने।
दुहती ग्वालिन दुग्ध गरगर स्वर,
चाटती बछड़ा गाय प्यार से।
गीली-गीली चूनर उसकी,
तर होती बछड़े की लार से।
उद्यमशील निरन्तर कर्मठ,
भान नहीं उनको इस छवि का।
अन्तर्द्वन्द उमड़े भावों से,
लिखने को मन आतुर कवि का वाह अत्यंत मनभावन काव्य चित्र प्रिय सुधा जी | एक दम छायावादी कवियों सी सधी शैली में सुकोमल शब्दावली में लिख मन को अहलादित कर दिया आपने | सुंदर रचना हेतु हरिक शुभकामनाएं और बधाई |
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद सखी! अनमोल प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु।
बहुत अच्छी रचना है |
अत्यंत आभार आ.आलोक जी!
अत्यन्त सुंदर, मनमोहक कविता है यह सुधा जी आपकी - ग्राम की वायु एवं मिट्टी की गंध समाहित किये हुए ।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ. जितेन्द्र जी उत्साहवर्धन हेतु।
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