मन की उलझनें
बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती । बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था । पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ? लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...
आपकी लिखी रचना सोमवार. 31 जनवरी 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हृदयतल से धन्यवाद आ.संगीता जी!मेरी इतनी पुरानी रचना को ढूँढ़कर मंच प्रदान करने हेतु।
हटाएंसादर आभार।
हर दिल में आशा और दृढ़ता से आगे बढ़ने का विश्वास जगाती सुंदर सार्थक रचना सुधाजी।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाओं में सुंदर सकारात्मक भाव सदा उत्कृष्ट होते हैं कोई प्रेरक संदेश लिए।
सुंदर सृजन।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.कुसुम जी!
हटाएंपूर्ण विश्वास है कि यह दीप सदा जलता ही रहेगा। अति सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंहौसला निज मन में रखकर,
जवाब देंहटाएंतूफ़ानों से अब लड़ना होगा ....
मन ज्योतिर्मय करने को
मेरे दीप तुम्हें जलना होगा !!!
थके हारे मन में भी ओज का संचार करती अदभुत सृजन सुधा जी,सादर नमन आपको
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी!
हटाएंदीपक से बहुत सुन्दर आग्रह और आह्वान प्रिय सुधा जी। दीपक जलता रहे तो अंधेरे की क्या बिसात कि वह किसी के जीवन को ढक परेशान करे। हार्दिक शुभकामनाएं इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए 🌷🌷💐💐
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार रेणु जी!
हटाएंअति सुंदर सृजन सुधा जी।
जवाब देंहटाएंसकारात्मकता का दीप सदैव तम की आखिरी बूँद को भी हरता रहे।
सस्नेह।
जी, अत्यंत आभार एवं धन्यवाद श्वेता जी!
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