उम्र भर संघर्ष करके
रोटियाँ अब कुछ कमाई
झोपड़ी मे खाट ताने
नींद नैनों जब समायी
नींद उचटी स्वप्न भय से
क्षीण काया जब बिलखती
दर्द होठों में दबाकर
भींच मुट्ठी रूह तड़पती...
शिथिल देह सूखा गला जब
घूँट जल को है तरसता
हस्त कंपित जब उठा वो
सामने मटका भी हँसता
ब्याधियाँ तन बैठकर फिर
आज बिस्तर हैं पकड़ती
दर्द होंठों में दबाकर
भींच मुट्ठी रुह तड़पती
ये मिला संघर्ष करके
मौत ताने मारती है
असह्य सी इस पीर से
अब जिन्दगी भी हारती है
खत्म होती देख लिप्सा
रोटियाँ भी हैं सुबकती
दर्द होंठों में दबाकर
भींच मुट्ठी रुह तड़पती
चित्र साभार गूगल से....
41 टिप्पणियां:
यथार्थ !
बहुत सुंदर नव गीत सुना जी अभिनव व्यंजनाएं।
आपने दृश्य उत्पन्न कर दिया है।
सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 18-12-2020) को "बेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं" (चर्चा अंक- 3919) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
शिथिल देह सूखा गला जब
घूँट जल को है तरसता
हस्त कंपित जब उठा वो
दूर मटका उसपे हँसता
ब्याधियाँ तन बैठकर फिर
आज बिस्तर हैं पकड़ती
बहुत सुंदर यथार्थ चित्रण करती पंक्तियाँ। वाह क्या खूब।
वाह!सुधा जी ,बेहतरीन ।
दिल से धन्यवाद कुसुम जी!उत्साहवर्धन हेतु....
सस्नेह आभार।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद मीना जी!मुझे चर्चा मंच में शामिल करने हेतु...।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद श्वेता जी! मेरी रचना साझा करने हेतु।
सस्नेह आभार भाई!
बहुत बहुत धन्यवाद शुभा जी!
सस्नेह आभार।
मन को छूता बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन दी।
सादर
बहुत बढ़िया
भावपूर्ण रचना।
वृद्धावस्था का भयावह, निराशापूर्ण किन्तु सच्चा चित्रण !
बहुत सुंदर नवगीत
सहृदय धन्यवाद प्रिय अनीता जी!
हार्दिक धन्यवाद आ.ओंकार जी!
अत्यंत आभार आपका तिवारी जी!
तहेदिल से धन्यवाद आ.सर!
सहृदय धन्यवाद सखी!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत सराहनीय रचना ।
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
मर्मस्पर्शी व भावपूर्ण रचना - - साधुवाद।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आदरणीय।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.आलोक जी!
सहृदय धन्यवाद आ.जेन्नी शबनम जी!
हार्दिक धन्यवाद सर!
सादर आभार।
मर्मस्पर्शी कविता
अत्यंत आभार सर!
दिल को छूती सुंदर रचना, सुधा दी।
हार्दिक धन्यवाद ज्योति जी!
अत्यंत मर्मस्पर्शी कविता सिरजी है आपने सुधा जी ।
अत्यंत आभार आपका सर!
उम्र जीवन को किस अवस्वथा में ले आता है जहाँ कई बार मन विचलित हो जाता है ....
व्यथा का सरीक छत्रं करते भाव और शब्द ...
इस दारुण दृश्य में सच में रुह काँप रही है ... बस आह !
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.नासवा जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.अमृता जी!
वाह कितनी सरलता से कितने गूढ़ भावों को लिखा है आपने
बधाई !
हृदयतल से धन्यवाद संजय जी!
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