सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे, तेरे पुण्यों का भार तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।।
यथार्थ !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नव गीत सुना जी अभिनव व्यंजनाएं।
आपने दृश्य उत्पन्न कर दिया है।
दिल से धन्यवाद कुसुम जी!उत्साहवर्धन हेतु....
हटाएंसस्नेह आभार।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद श्वेता जी! मेरी रचना साझा करने हेतु।
हटाएंशिथिल देह सूखा गला जब
जवाब देंहटाएंघूँट जल को है तरसता
हस्त कंपित जब उठा वो
दूर मटका उसपे हँसता
ब्याधियाँ तन बैठकर फिर
आज बिस्तर हैं पकड़ती
बहुत सुंदर यथार्थ चित्रण करती पंक्तियाँ। वाह क्या खूब।
सस्नेह आभार भाई!
हटाएंवाह!सुधा जी ,बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शुभा जी!
हटाएंसस्नेह आभार।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद मीना जी!मुझे चर्चा मंच में शामिल करने हेतु...।
जवाब देंहटाएंमन को छूता बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन दी।
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय धन्यवाद प्रिय अनीता जी!
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आ.ओंकार जी!
हटाएंभावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार आपका तिवारी जी!
हटाएंवृद्धावस्था का भयावह, निराशापूर्ण किन्तु सच्चा चित्रण !
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद आ.सर!
हटाएंबहुत सुंदर नवगीत
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी!
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आदरणीय।
हटाएंबहुत बहुत सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.आलोक जी!
हटाएंबहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आ.जेन्नी शबनम जी!
हटाएंमर्मस्पर्शी व भावपूर्ण रचना - - साधुवाद।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद सर!
हटाएंसादर आभार।
मर्मस्पर्शी कविता
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार सर!
हटाएंदिल को छूती सुंदर रचना, सुधा दी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी!
हटाएंअत्यंत मर्मस्पर्शी कविता सिरजी है आपने सुधा जी ।
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार आपका सर!
हटाएंउम्र जीवन को किस अवस्वथा में ले आता है जहाँ कई बार मन विचलित हो जाता है ....
जवाब देंहटाएंव्यथा का सरीक छत्रं करते भाव और शब्द ...
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.नासवा जी!
हटाएंइस दारुण दृश्य में सच में रुह काँप रही है ... बस आह !
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.अमृता जी!
हटाएंवाह कितनी सरलता से कितने गूढ़ भावों को लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंबधाई !
हृदयतल से धन्यवाद संजय जी!
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