सोमवार, 22 मार्च 2021

अहा ! कितने व्यूअर् होंगे !

 




अपनी चादर में पैर रुकते नहीं जमाने के

ऐसे फैला कि हक उसी का है ।

चुप है दूजा कि छोड़ रहने दो, कलह न हो

वो तो निपट कायर ही समझ बैठा है।

शान्ति से शान्ति की वार्ता अगर चाहे कोई

गीदड़ भभकी से भय बनाके ऐसे ऐंठा है।

शेर कब तक सहे गीदड़ की ये ललकार आखिर

एक गर्जन से ही लाचार छुपा दुबका है।

करें तो क्या करें बिल में छुपे इन जयचन्दों का

कहीं अर्जुन भी वही प्रण लिए ऐंठा हैं।

तमाशा देखने को हैं कितने आतुर  देखो !

मुँह में राम बगल में छुरी दबा के बैठा है।

मदद की गुहारें भी हवा में दफन होती हैं यहाँ

इयरफोन में सुनने लायक ही कौन रहता है ।

महाभारत हुआ तो अहा ! कितने 'व्यूअर' होंगे !

कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।



45 टिप्‍पणियां:

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-3-21) को "सीमित है संसार में, पानी का भण्डार" (चर्चा अंक 4014) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा

Sudha Devrani ने कहा…

सादर धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी!मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर , बहुत सुन्दर सराहनीय |

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

मुँह में राम बगल में छुरी दबा के बैठा है।

मदद की गुहारें भी हवा में दफन होती हैं यहाँ

वर्तमान के परिक्षेत्र में आपकी रचना सटीक बैठती है

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

वाह, सुधा जी बिना बोले आप ने कइयों को आईना दिखाया होगा।और। समझने वाले को समझ भी आया होगा ।। सार्थक रचना के लिए आपको बधाई ।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

सुधा जी, समझने वाले समझ गए हैं, ना समझे वो अनाड़ी है ।

Vocal Baba ने कहा…

कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है। वाह। क्या बात है। बहुत खूब। सार्थक सृजन। आपको बधाई।

Amrita Tanmay ने कहा…

क्या खूब कहा है ... बहुत बढ़िया ।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

महाभारत हुआ तो अहा ! कितने 'व्यूअर' होंगे !

कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।
बहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति,सुधा दी।

विमल कुमार शुक्ल 'विमल' ने कहा…

वाह कलयुगी व्यास वीडियो बनाने बैठा है इसका जवाब नहीं

Anuradha chauhan ने कहा…

महाभारत हुआ तो अहा ! कितने 'व्यूअर' होंगे !

कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।

वाह!!बेहतरीन सृजन सखी।

Meena Bhardwaj ने कहा…

महाभारत हुआ तो अहा ! कितने 'व्यूअर' होंगे !
कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।
सटीक भावाभिव्यक्ति सुधा जी ।

अनीता सैनी ने कहा…

वाह! बहुत ख़ूब 👌
सराहनीय ।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ. आलोक जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद राजपुरोहित जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद जिज्ञासा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद विरेन्द्र जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अमृता जी!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद ज्योति जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार सखी!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद मीना जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

बहुत सुन्दर कहा है....

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

कोरोना के चक्कर में सिनेमा हॉल्स में तो मेगा-बजट वाली महाभारत चल नहीं पाएगी, सिर्फ़ इन्टरनेट का ही आसरा रहेगा.
यानी कि घाटे का सौदा !

विश्वमोहन ने कहा…

तमाशा देखने को हैं कितने आतुर देखो !

मुँह में राम बगल में छुरी दबा के बैठा है।
वाह! लाज़वाब!!

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत सुंदर 

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद, नैनवाल जी!

Sudha Devrani ने कहा…

जी, सही कहा आपने ...
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार सर!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद आ. विश्वमोहन जी!

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी!

यशपथ (www.yashpath.com) ने कहा…

सही कहा आपने।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज कल दिखावे के ही बोलबाला है । लाइमलाइट में रहने के लिए शायद यही सब ज़रूरी लगता ।
सार्थक व्यंग्य ।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार, आ. सर!

Sudha Devrani ने कहा…

जी, अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

व्यंग की तीखी धार नज़र आ रही है हर पंक्ति में ...
आज के समय को पैनी नज़र से देखने और लिखने का बाखूबी प्रयास किया है इस व्यंग में आपने ...
बहुत प्रभावशाली रचना ...

Himkar Shyam ने कहा…

वाह, बहुत ख़ूब

Preeti Mishra ने कहा…

कलयुग की महिमा का खूबसूरत वर्णन

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद हिमकर श्याम जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद प्रीति जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

रेणु ने कहा…

सटीक महिमा मंडन हमारे कलयुगीन व्यास माहाशयों का। वैदिक साहित्य रचियताओं ने गूढ़ ज्ञान में डुबकी लगाई तो वैदिक संपदा का अर्जन किया था पर इन कुटिल ज्ञानियों की मात्र एक क्लिक पर सब कुछ उपलब्ध है। बहुत बढिया व्यंग लिखा आपने। हार्दिक शुभकामनाएं ❤❤🙏🌹🌹

रेणु ने कहा…

अब मेल से मिल जाती हैं आपकी रचनाएँ प्रिय सुधा जी। हार्दिक स्नेह आपके लिए❤❤🌹🌹🙏

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद सखी रचना के भाव एवं सार को समझने व स्पष्ट करने हेतु...
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

आपकी कोशिश कामयाब रही सखी!मैं तो कुछ भी सुधार नहीं कर पायी...।
अभी भी कोशिश ही कर रही हूँ।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद नासवा जी!

हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...