ठुड्डी को हथेली में टिकाए उदास बैठी बिन्नी से माँ ने बड़े प्यार से पूछा, "क्या हुआ बेटा ये उदासी क्यों"?
"मम्मा!आज मेरे इंग्लिश के मार्क्स पता चलेंगें "...
"तो?....आपने तो अच्छी तैयारी की थी न एक्जाम की....फिर डर क्यों?
मम्मा! मुझे लगता है मैं फेल हो जाउंगी।
अरे....!...नहीं बेटा....शुभ-शुभ बोलो, और अच्छा सोचो! वो कहते हैं न , बी पॉजिटिव!...
हम्म,कहते तो हैं पर क्या करूं मम्मा!खुशी चाहिए तो गंदा सोचना पड़ता है...।
अरे..! ये क्या बात हुई भला... अच्छा सोचोगे तब अच्छा होगा....और बुरा सोचोगे तो बुरा ही होगा न ...
ओह मम्मा!अच्छा सोचती हूँ तो एक्सपेक्टेशन बढ़ती है फिर जो भी मार्क्स आते हैं वो कम लगने लगते हैं और दुखी होती हूँ....और इसके अपॉजिट बुरा सोचकर एक्सपेक्टेशन खतम, फिर जो भी मार्क्स आयें वो खुशी देते हैं....इसीलिये खुशी चाहिए तो बुरा सोचना ही पड़ता है मम्मा!....
हैं....कहते हुए अब माँ असमंजस में पड़ गयी।
चित्र ,साभार गूगल से...
61 टिप्पणियां:
सही बात। नो एक्सपेक्टेशन, नो चिंता। ध्यायतो विषयान्पुंसः संग: तेषु उपजायते....।
अपेक्षाएं दुःखों की जननी होती हैं इसलिए तो कर्म कर फल की चिंता न कर कहा गया है। सुंदर लघु-कथा। बच्चे मासूमियत में कई बार ऐसी बात बोल देते हैं कि जवाब देना मुश्किल सा हो जाता है।
सही कहा उम्मीद के परिणाम मन मुताबिक न हों तो निराशा ज्यादा होती है।
संदेशात्मक, सारगर्भित लघुकथा प्रिय सुधा जी।
जी,हार्दिक धन्यवाद आपका...
सादर आभार।
सही कहा आपने नैनवाल जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।
सस्नेह धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता जी!
हृदयतल से धन्यवाद कामिनी जी मेरी रचना साझा करने हेतु
सादर आभार।
बच्चे के मनोभावों को दर्शाती सुन्दर रचना
सत्य वचन, बहुत सुंदर रचना।
बहुत ज्यादा उम्मीद भी परेशान कर देती हैं ।अच्छी लघु कथा ।
सुंदर बाल लघुकथा।
बच्चों के नाज़ुक मन भी कुछ सटीक धारणाएं बना लेते हैं ।
सही है उम्मीद से ज्यादा खुशी देता है तो कम की उम्मीद बेहतर हैं।
सुंदर सुधा जी।
बच्चे भी कभी कभी सरलता से ऐसी सारगर्भित बात कह देते है कि हम बडे भी ऊँच में पड़ जाते है। सुंदर संदेश देती लघुकथा, सुधा दी।
वाह!सुधा जी ,बहुत खूब । बच्चों के मन के भावों को बहुत ही सरल शब्दों में प्रस्तुत किया आपनेंं ।
सही धारणा सही विचार । बहुत सुन्दर ।
पढा था कहीं बालक मनोवैज्ञानिक होते हैं।
आज जीवंत उदाहरण देखा।
बहुत गजब।
मेरी नई रचना
हृदयतल से धन्यवाद रितु जी!
सस्नेह धन्यवाद भाई!
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार संगीता जी!ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी !
सहृदय धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद शुभा जी!
हार्दिक धन्यवाद आलोक जी!
सादर आभार।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आदरणीय सर!मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद रोहितास जी!
बहुत सुंदर लघुकथा।
सुन्दर कथा।
बहुत ही सुंदर लघुकथा आदरणीय सुधा दी।
सादर
बिटिया की बात भी सही है-पते की बात कहती लघु कथा.
पते की बात कही बिटिया ने, बढ़िया बहुत ही सुंदर कथा, नमस्कार, बधाई हो आपको
वाह ! सही ज्ञान दे दिया बच्चे ने। सुंदर लघु कथा।
कोमल से मन की ऊहापोह वाली व्यथा को आपने सुंदर कथा का रूप दे दिया.. सुन्दर सृजन..
बच्ची ने बिल्कुल ठीक कहा । अच्छी लघुकथा है यह आपकी सुधा जी । विचारोत्तेजक !
हार्दिक धन्यवाद सखी!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ. विमल जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
सस्नेह आभार प्रिय अनीता जी!
तहेदिल से धन्यवाद आ.प्रतिभा जी!
हार्दिक धन्यवाद आ.ज्योति जी!
तहेदिल से धन्यवाद मीना जी!
तहेदिल से धन्यवाद जिज्ञासा जी!
हार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र जी!
बहुत समझदार बच्ची
यह दृष्टिकोण भी सही है। आपकी यह लघुकथा पसंद आयी। आपको बहुत बहुत बधाई। सादर।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आदरणीय!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका विरेन्द्र जी!
सादर आभार।
बच्चे एक क़दम आगे सोचते हैं.
नज़रिये की बात है.
बच्चों के मन के भावों को बहुत ही सरल शब्दों में प्रस्तुत किया आपनेंं सुधा जी
बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार नुपुरं जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार संजय जी!
सुंदर लघु-कथा। बच्चे मासूमियत में कई बार बड़ों से भी गहरी बात कह देते हैं । अति सुन्दर सृजन ।
बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी!
सुंदर लघु कथा
आत्मानुभव की तह से उभरता बाल-मनोविज्ञान सोच का एक नया धरातल गढ़ता हुआ। सुंदर प्रयोग सुधाजी!
तहेदिल से धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी!
बाल मनोविज्ञान का सतही अवलोकन सुधा जी | मैं भी बचपन में इसी असुरक्षा का शिकार रहती थी पर मुझे भी हमेशा अप्रत्यासित सुंदर परिणाम मिले हैं बहुधा |सस्नेह शुभकामनाएं|
जी, सही कहा आपने सखी!...।सोच के विपरीत ये अप्रत्याशित सुन्दर परिणाम वाकई खुशियाँ तो देंगे ही।
सहृदय धन्यवाद एवं आभार आपका।
वाह! यही तो एक नई सोच है... बहुत सुंदर
सस्नेह आभार एवं धन्यवाद, भाई!
ये भी एक अलग तरह की सोच है ... और अपनी अपनी समझ और भावना के अनुसार बच्चे भी सोचते हैं ...
बच्चों का मनोविज्ञान उनका अपना ही है ... अपना संसार ...
जी, तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
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कभी-कभी बच्चे वह बात कह जाते हैं, जो हम सोच भी नहीं पाते।... मन को छूती रचना!
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