मंगलवार, 9 मार्च 2021

नयी सोच




 ठुड्डी को हथेली में टिकाए उदास बैठी बिन्नी से माँ ने बड़े प्यार से पूछा, "क्या हुआ बेटा ये उदासी क्यों"?

"मम्मा!आज मेरे इंग्लिश के मार्क्स पता चलेंगें "...

"तो?....आपने तो अच्छी तैयारी की थी न एक्जाम की....फिर डर क्यों?

मम्मा! मुझे लगता है मैं फेल हो जाउंगी।

अरे....!...नहीं बेटा....शुभ-शुभ बोलो, और अच्छा सोचो! वो कहते हैं न , बी पॉजिटिव!...

हम्म,कहते तो हैं पर क्या करूं मम्मा!खुशी चाहिए तो गंदा सोचना पड़ता है...।

अरे..!  ये क्या बात हुई भला... अच्छा सोचोगे तब अच्छा होगा....और बुरा सोचोगे तो बुरा ही होगा न ...

ओह मम्मा!अच्छा सोचती हूँ तो एक्सपेक्टेशन बढ़ती है फिर जो भी मार्क्स आते हैं वो कम लगने लगते हैं और दुखी होती हूँ....और इसके अपॉजिट बुरा सोचकर एक्सपेक्टेशन खतम, फिर जो भी मार्क्स आयें वो खुशी देते हैं....इसीलिये खुशी चाहिए तो बुरा सोचना ही पड़ता है मम्मा!....

हैं....कहते हुए अब माँ असमंजस में पड़ गयी।


चित्र ,साभार गूगल से...

61 टिप्‍पणियां:

विश्वमोहन ने कहा…

सही बात। नो एक्सपेक्टेशन, नो चिंता। ध्यायतो विषयान्पुंसः संग: तेषु उपजायते....।

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

अपेक्षाएं दुःखों की जननी होती हैं इसलिए तो कर्म कर फल की चिंता न कर कहा गया है। सुंदर लघु-कथा। बच्चे मासूमियत में कई बार ऐसी बात बोल देते हैं कि जवाब देना मुश्किल सा हो जाता है।

Sweta sinha ने कहा…

सही कहा उम्मीद के परिणाम मन मुताबिक न हों तो निराशा ज्यादा होती है।
संदेशात्मक, सारगर्भित लघुकथा प्रिय सुधा जी।

Sudha Devrani ने कहा…

जी,हार्दिक धन्यवाद आपका...
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा आपने नैनवाल जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद कामिनी जी मेरी रचना साझा करने हेतु
सादर आभार।

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

बच्चे के मनोभावों को दर्शाती सुन्दर रचना

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

सत्य वचन, बहुत सुंदर रचना।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत ज्यादा उम्मीद भी परेशान कर देती हैं ।अच्छी लघु कथा ।

मन की वीणा ने कहा…

सुंदर बाल लघुकथा।
बच्चों के नाज़ुक मन भी कुछ सटीक धारणाएं बना लेते हैं ।
सही है उम्मीद से ज्यादा खुशी देता है तो कम की उम्मीद बेहतर हैं।
सुंदर सुधा जी।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बच्चे भी कभी कभी सरलता से ऐसी सारगर्भित बात कह देते है कि हम बडे भी ऊँच में पड़ जाते है। सुंदर संदेश देती लघुकथा, सुधा दी।

शुभा ने कहा…

वाह!सुधा जी ,बहुत खूब । बच्चों के मन के भावों को बहुत ही सरल शब्दों में प्रस्तुत किया आपनेंं ।

आलोक सिन्हा ने कहा…

सही धारणा सही विचार । बहुत सुन्दर ।

Rohitas Ghorela ने कहा…

पढा था कहीं बालक मनोवैज्ञानिक होते हैं।
आज जीवंत उदाहरण देखा।
बहुत गजब।
मेरी नई रचना

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद रितु जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह धन्यवाद भाई!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार संगीता जी!ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी !

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद शुभा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आलोक जी!
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आदरणीय सर!मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद रोहितास जी!

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर लघुकथा।

विमल कुमार शुक्ल 'विमल' ने कहा…

सुन्दर कथा।

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत ही सुंदर लघुकथा आदरणीय सुधा दी।
सादर

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

बिटिया की बात भी सही है-पते की बात कहती लघु कथा.

ज्योति सिंह ने कहा…

पते की बात कही बिटिया ने, बढ़िया बहुत ही सुंदर कथा, नमस्कार, बधाई हो आपको

Meena sharma ने कहा…

वाह ! सही ज्ञान दे दिया बच्चे ने। सुंदर लघु कथा।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

कोमल से मन की ऊहापोह वाली व्यथा को आपने सुंदर कथा का रूप दे दिया.. सुन्दर सृजन..

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

बच्ची ने बिल्कुल ठीक कहा । अच्छी लघुकथा है यह आपकी सुधा जी । विचारोत्तेजक !

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद सखी!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ. विमल जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह आभार प्रिय अनीता जी!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.प्रतिभा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ.ज्योति जी!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद मीना जी!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद जिज्ञासा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र जी!

KUMMAR GAURAV AJIITENDU ने कहा…

बहुत समझदार बच्ची

Vocal Baba ने कहा…

यह दृष्टिकोण भी सही है। आपकी यह लघुकथा पसंद आयी। आपको बहुत बहुत बधाई। सादर।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आदरणीय!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आपका विरेन्द्र जी!
सादर आभार।

नूपुरं noopuram ने कहा…

बच्चे एक क़दम आगे सोचते हैं.
नज़रिये की बात है.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बच्चों के मन के भावों को बहुत ही सरल शब्दों में प्रस्तुत किया आपनेंं सुधा जी

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार नुपुरं जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार संजय जी!

Meena Bhardwaj ने कहा…

सुंदर लघु-कथा। बच्चे मासूमियत में कई बार बड़ों से भी गहरी बात कह देते हैं । अति सुन्दर सृजन ।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी!

MANOJ KAYAL ने कहा…

सुंदर लघु कथा

विश्वमोहन ने कहा…

आत्मानुभव की तह से उभरता बाल-मनोविज्ञान सोच का एक नया धरातल गढ़ता हुआ। सुंदर प्रयोग सुधाजी!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी!

रेणु ने कहा…

बाल मनोविज्ञान का सतही अवलोकन सुधा जी | मैं भी बचपन में इसी असुरक्षा का शिकार रहती थी पर मुझे भी हमेशा अप्रत्यासित सुंदर परिणाम मिले हैं बहुधा |सस्नेह शुभकामनाएं|

Sudha Devrani ने कहा…

जी, सही कहा आपने सखी!...।सोच के विपरीत ये अप्रत्याशित सुन्दर परिणाम वाकई खुशियाँ तो देंगे ही।
सहृदय धन्यवाद एवं आभार आपका।

ANIL DABRAL ने कहा…

वाह! यही तो एक नई सोच है... बहुत सुंदर

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह आभार एवं धन्यवाद, भाई!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये भी एक अलग तरह की सोच है ... और अपनी अपनी समझ और भावना के अनुसार बच्चे भी सोचते हैं ...
बच्चों का मनोविज्ञान उनका अपना ही है ... अपना संसार ...

Sudha Devrani ने कहा…

जी, तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Simran Sharma ने कहा…

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Gajendra Bhatt "हृदयेश" ने कहा…

कभी-कभी बच्चे वह बात कह जाते हैं, जो हम सोच भी नहीं पाते।... मन को छूती रचना!

हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...