नयी सोच
ठुड्डी को हथेली में टिकाए उदास बैठी बिन्नी से माँ ने बड़े प्यार से पूछा, "क्या हुआ बेटा ये उदासी क्यों"?
"मम्मा!आज मेरे इंग्लिश के मार्क्स पता चलेंगें "...
"तो?....आपने तो अच्छी तैयारी की थी न एक्जाम की....फिर डर क्यों?
मम्मा! मुझे लगता है मैं फेल हो जाउंगी।
अरे....!...नहीं बेटा....शुभ-शुभ बोलो, और अच्छा सोचो! वो कहते हैं न , बी पॉजिटिव!...
हम्म,कहते तो हैं पर क्या करूं मम्मा!खुशी चाहिए तो गंदा सोचना पड़ता है...।
अरे..! ये क्या बात हुई भला... अच्छा सोचोगे तब अच्छा होगा....और बुरा सोचोगे तो बुरा ही होगा न ...
ओह मम्मा!अच्छा सोचती हूँ तो एक्सपेक्टेशन बढ़ती है फिर जो भी मार्क्स आते हैं वो कम लगने लगते हैं और दुखी होती हूँ....और इसके अपॉजिट बुरा सोचकर एक्सपेक्टेशन खतम, फिर जो भी मार्क्स आयें वो खुशी देते हैं....इसीलिये खुशी चाहिए तो बुरा सोचना ही पड़ता है मम्मा!....
हैं....कहते हुए अब माँ असमंजस में पड़ गयी।
चित्र ,साभार गूगल से...
टिप्पणियाँ
संदेशात्मक, सारगर्भित लघुकथा प्रिय सुधा जी।
सादर आभार।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।
सादर आभार।
बच्चों के नाज़ुक मन भी कुछ सटीक धारणाएं बना लेते हैं ।
सही है उम्मीद से ज्यादा खुशी देता है तो कम की उम्मीद बेहतर हैं।
सुंदर सुधा जी।
आज जीवंत उदाहरण देखा।
बहुत गजब।
मेरी नई रचना
सादर आभार।
सादर
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सादर आभार।
नज़रिये की बात है.
सहृदय धन्यवाद एवं आभार आपका।
बच्चों का मनोविज्ञान उनका अपना ही है ... अपना संसार ...
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