मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश
देखो जीना हमें है सिखा रही
है बंधी फिर भी उन्मुक्त सोच से
काँच घर को समन्दर बना रही
मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश
देखो जीना हमें है सिखा रही
जब वो आयी तो थोड़ा उदास थी
बहुत प्यारी थी अपने में खास थी
जल्द हिलमिल गयी बदले परिवेश में
हर हालात मन से अपना रही
मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हीं फिश
देखो जीना हमें है सिखा रही
दाने दाने की जब वो मोहताज है
खुद पे फिर भी उसे इतना नाज है
है विधाता की अनुपम सी कृति वो
मूल्यांकन स्वयं का सिखा रही
मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश
देखो जीना हमें है सिखा रही।
चित्र साभार गूगल से...
41 टिप्पणियां:
मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश
देखो जीना हमें है सिखा रही।
बहुत बड़ी सीख लिए बहुत सुन्दर रचना ।
तहेदिल से धन्यवाद आ. यशोदा जी!
मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन के मंच पर साझा करने हेतु।
सहृदय धन्यवाद मीना जी!
सस्नेह आभार आपका।
सुधा दी,यदि इंसान सीखना चाहे तो प्रकृति से बहुत कुछ सीख सकता है। बस वैसी दृष्टि चाहिए। और आपकी दृष्टि के तो कहने ही क्या?
सही कहा ज्योति जी प्रकृति हमें बहुत कुछ सिखा देती है .....
सुन्दर सराहनीय अनमोल प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।
सुन्दर सृजन
जीवन मंत्र सिखाती कविता
वाह !बहुत ही सुंदर सृजन दी सराहना से परे।
सादर
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार ( 7 सितंबर 2020) को 'ख़ुद आज़ाद होकर कर रहा सारे जहां में चहल-क़दमी' (चर्चा अंक 3817) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. जोशी जी!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद राकेश जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ओंकार जी!
सहृदय धन्यवाद एवं आभार अनीता जी!
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ. रविन्द्र जी मेरी रचना चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।
मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश
देखो जीना हमें है सिखा रही
है बंधी फिर भी उन्मुक्त सोच से
काँच घर को समन्दर बना ,,,,,,,,,,, बहुत सुंदर रचना,
बहुत अच्छी रचना सुधा जी । सचमुच ही हम एक्वेरियम की मछली से सीख सकते हैं कि बदलते हालात में कैसे जीना चाहिए ।
हार्दिक धन्यवाद मधुलिका जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
सादर आभार।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ. जितेंद्र जी!
सादर आभार आपका।
क्या बात है ! एकदम मौलिक और सुंदर सरल रचना।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार मीना जी!
बहुत सुंदर सृजन सुधा जी ,सच आँख खोल कर देखें तो हर शय हर प्राणी हमें कुछ शिक्षा देता है बस लेने वाले की ग्राह्यता चहिए ।
सरल सहज भाव प्रवाह ।
बेहतरीन रचना सखी।
मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश
देखो जीना हमें है सिखा रही
है बंधी फिर भी उन्मुक्त सोच से
काँच घर को समन्दर बना रही
जो है,जितना है उसी में जीने की सीख दे रही है। बहुत ही सुंदर भाव लिए बेहतरीन रचना,सादर नमन सुधा जी
बहुत सुन्दर रचना.
जी कुसुम जी!हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका उत्साह वर्धन हेतु।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ. कामिनी जी!
हार्दिक धन्यवाद डॉ.जेन्नी शबनम जी!
सादर आभार।
बहुत सुंदर
एक सकारात्मक - एक सुन्दर सोचवाली रचना...
सस्नेह आभार एवं धन्यवाद भाई!
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद, विशाल जी!
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
सरल और सुंदर रचना
सरल और सुंदर रचना
सुन्दर भावपूर्ण कोमल रचना ...
जीवन क्या है ... कैसा है और कैसे जीना चाहिए सब को सिखा जाती है ... एक नन्ही सी जान ...
शांत सरल सौम्य मछली का जीवन ...
सुंदर रचना ....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार रस्तोगी जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद नासवा जी!आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साहवर्धन करती है।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आदरणीय।
बहुत सुंदर रचना है।
मैंने भी स्ट्रीटडॉग्स पर एक कविता लिखी है।एक पढ़ें ।मेरा विश्वास है आपको भावुक कर देगी।पसन्द आये तो फॉलो कमेंट करके उत्साह वर्धन करे
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार सतीश जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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