तन में मन है या मन में तन ?

चित्र
ये मन भी न पल में इतना वृहद कि समेट लेता है अपने में सारे तन को, और हवा हो जाता है जाने कहाँ-कहाँ ! तन का जीव इसमें समाया उतराता उकताता जैसे हिचकोले सा खाता, भय और विस्मय से भरा, बेबस ! मन उसे लेकर वहाँ घुस जाता है जहाँ सुई भी ना घुस पाये, बेपरवाह सा पसर जाता है। बेचारा तन का जीव सिमटा सा अपने आकार को संकुचित करता, समायोजित करता रहता है बामुश्किल स्वयं को इसी के अनुरूप वहाँ जहाँ ये पसर चुका होता है सबके बीच।  लाख कोशिश करके भी ये समेटा नहीं जाता,  जिद्दी बच्चे सा अड़ जाता है । अनेकानेक सवाल और तर्क करता है समझाने के हर प्रयास पर , और अड़ा ही रहता है तब तक वहीं जब तक भर ना जाय । और फिर भरते ही उचटकर खिसक लेता वहाँ से तन की परवाह किए बगैर । इसमें निर्लिप्त बेचारा तन फिर से खिंचता भागता सा चला आ रहा होता है इसके साथ, कुछ लेकर तो कुछ खोकर अनमना सा अपने आप से असंतुष्ट और बेबस । हाँ ! निरा बेबस होता है ऐसा तन जो मन के अधीन हो।  ये मन वृहद् से वृहद्तम रूप लिए सब कुछ अपने में समेटकर करता रहता है मनमानी । वहीं इसके विपरीत कभी ये पलभर में सिकुड़कर या सिमटकर अत्यंत सूक्ष्म रूप में छिपक...

मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश...

 

little golden fish

मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश

देखो जीना हमें है सिखा रही

है बंधी फिर भी उन्मुक्त सोच से

काँच घर  को समन्दर बना रही


मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश

देखो जीना हमें है सिखा रही


जब वो आयी तो थोड़ा उदास थी

बहुत प्यारी थी अपने में खास थी

जल्द हिलमिल गयी बदले परिवेश में

हर हालात मन से अपना रही


मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हीं फिश

देखो जीना हमें है सिखा रही


दाने दाने की जब वो मोहताज है

 खुद पे फिर भी उसे इतना नाज है

है विधाता की अनुपम सी कृति वो

मूल्यांकन स्वयं का सिखा रही


मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश

देखो जीना हमें है सिखा रही।

     

                   चित्र साभार गूगल से...

टिप्पणियाँ

  1. मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश
    देखो जीना हमें है सिखा रही।
    बहुत बड़ी सीख लिए बहुत सुन्दर रचना ।

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    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद मीना जी!
      सस्नेह आभार आपका।

      हटाएं
  2. तहेदिल से धन्यवाद आ. यशोदा जी!
    मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन के मंच पर साझा करने हेतु।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुधा दी,यदि इंसान सीखना चाहे तो प्रकृति से बहुत कुछ सीख सकता है। बस वैसी दृष्टि चाहिए। और आपकी दृष्टि के तो कहने ही क्या?

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    उत्तर
    1. सही कहा ज्योति जी प्रकृति हमें बहुत कुछ सिखा देती है .....
      सुन्दर सराहनीय अनमोल प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।

      हटाएं
  4. जीवन मंत्र सिखाती कविता

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह !बहुत ही सुंदर सृजन दी सराहना से परे।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार ( 7 सितंबर 2020) को 'ख़ुद आज़ाद होकर कर रहा सारे जहां में चहल-क़दमी' (चर्चा अंक 3817) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ. रविन्द्र जी मेरी रचना चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।

      हटाएं
  7. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ओंकार जी!

    जवाब देंहटाएं
  8. मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश

    देखो जीना हमें है सिखा रही

    है बंधी फिर भी उन्मुक्त सोच से

    काँच घर को समन्दर बना ,,,,,,,,,,, बहुत सुंदर रचना,

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद मधुलिका जी!
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है
      सादर आभार।

      हटाएं
  9. बहुत अच्छी रचना सुधा जी । सचमुच ही हम एक्वेरियम की मछली से सीख सकते हैं कि बदलते हालात में कैसे जीना चाहिए ।

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    उत्तर
    1. अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ. जितेंद्र जी!
      सादर आभार आपका।

      हटाएं
  10. क्या बात है ! एकदम मौलिक और सुंदर सरल रचना।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुंदर सृजन सुधा जी ,सच आँख खोल कर देखें तो हर शय हर प्राणी हमें कुछ शिक्षा देता है बस लेने वाले की ग्राह्यता चहिए ।
    सरल सहज भाव प्रवाह ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी कुसुम जी!हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका उत्साह वर्धन हेतु।

      हटाएं
  12. मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश
    देखो जीना हमें है सिखा रही
    है बंधी फिर भी उन्मुक्त सोच से
    काँच घर को समन्दर बना रही
    जो है,जितना है उसी में जीने की सीख दे रही है। बहुत ही सुंदर भाव लिए बेहतरीन रचना,सादर नमन सुधा जी

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    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ. कामिनी जी!

      हटाएं
  13. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद डॉ.जेन्नी शबनम जी!
      सादर आभार।

      हटाएं
  14. एक सकारात्मक - एक सुन्दर सोचवाली रचना...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक आभार एवं धन्यवाद, विशाल जी!
      मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

      हटाएं
  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  16. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  17. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार रस्तोगी जी!
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

      हटाएं
  18. सुन्दर भावपूर्ण कोमल रचना ...
    जीवन क्या है ... कैसा है और कैसे जीना चाहिए सब को सिखा जाती है ... एक नन्ही सी जान ...
    शांत सरल सौम्य मछली का जीवन ...
    सुंदर रचना ....

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    उत्तर
    1. अत्यंत आभार एवं धन्यवाद नासवा जी!आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साहवर्धन करती है।

      हटाएं
  19. अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत सुंदर रचना है।

    मैंने भी स्ट्रीटडॉग्स पर एक कविता लिखी है।एक पढ़ें ।मेरा विश्वास है आपको भावुक कर देगी।पसन्द आये तो फॉलो कमेंट करके उत्साह वर्धन करे

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार सतीश जी!
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

      हटाएं

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