क्षण-भंगुर जीवन
"चुप करो जी ! ऐसा कुछ नहीं होगा और देखो मैंने अच्छे से मुँह ढ़का है फिर भी नसीब में अभी मौत होगी तो वैसे भी आ जायेगी ।
चक्की बन्द कर देंगे तो खायेंगे क्या ? कोरोना से नहीं तो भूख से मर जायेंगे , तुम जाओ जी ! बैठो घर के अन्दर ! मुझे मेरा काम करने दो"!
"हाँ ! हाँ ! मत मान मान मेरी मेरी बात । यहीं रह अपनी चक्की में ! तेरा खाना -पीना यहीं भेज दूँगा और हाँ ! सो भी यहीं जाना कहीं कोने में ! मैं तो चला । अपने बच्चों के साथ मजे से जीऊंगा ! तुझे मरना है न , तो मर"! (बड़बड़ाते हुए अमरजीत वहाँ से चला गया)।
(हुँह करके सान्ता भी मुँह घुमाकर अपने काम में व्यस्त हो गयी)
दोपहर में बेटी दीपा ने आवाज लगायी "माँ ! बाबूजी !खाना तैयार है जल्दी आ जाओ तो सान्ता बोली "बेटा ! तुम खा लो और अपने बाबूजी को भी खिला देना, मैं बाद में खा लूँगी" ।
"बाबूजी तो यहाँ नहीं हैं माँ ! " दीपा बोली,
(कहा नहीं माना तो गुस्से में मुँह फुलाकर बैठे होंगे कहीं सान्ता बड़बड़ायी) फिर बोली , "ताऊजी के घर होंगे बुला लाओ" !
थोड़ी देर बाद दीपा आयी और बोली, "बाबूजी ताऊजी के घर भी नहीं हैं माँ ! और अड़ोस-पड़ोस में भी पता किया , कहीं नहीं हैं"।
सान्ता चक्की बन्द कर घर आ गयी, हाथ-मुँह धोने बाथरूम का दरवाजा खोलने लगी तो दरवाजा अन्दर से बन्द था ,ओह ! तो ये यहाँ हैं,(सोचकर वहीं खड़े-खड़े इंतजार करने लगी)
कुछ देर बाद भी दरवाजा न खुला तो आवाज लगायी बच्चे भी आवाज लगाने लगे, शोर सुनकर पड़ोसी भी जमा हो गये, तब भी दरवाजा न खुला तो सबको डर और संदेह होने लगा।
जबरन दरवाजा तोड़ा तो सब हक्के-बक्के रह गये, अमरजीत को फर्श पर लुढ़का देखकर सान्ता के तो पैरों तले जमीन ही खिसक गयी ।
उठाकर कमरे में लाये, कोई हाथ की तो कोई पैर की मालिस करने लगा।
किसी ने फोन करके डॉक्टर बुलाया जाँच से पता चला कि अचानक दिल का दौरा पड़ने से उसकी मृत्यु हो गयी है । पूरे परिवार पर तो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा ।
कहाँ अमरजीत महामारी से बचने और मजे से जीने की बात कर रहा था और कहाँ ये क्षण- भंगुर जीवन पल भर में समाप्त हो गया।
टिप्पणियाँ
सस्नेह आभार।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२१ -०६-२०२०) को शब्द-सृजन-26 'क्षणभंगुर' (चर्चा अंक-३७३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
मेरी रचना साझा करने हेतु।
सादर आभार।
उत्साहवर्धन हेतु हृदयतल से धन्यवाद आपका।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।
हृदय स्पर्शी विधि का विधान अबूझ ।
उत्कृष्ट भाव कथा।
जीवन तो क्षणभंगुर ही है हम मन के बंधन की माया में उलझकर रह जाते हैं।
सुगढ़ता से लिखी सार्थक लघुकथा सुधा जी।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है...।
सादर।
सस्नेह आभार।
इंसान सोचता तो बहुत कुछ है ... सपने हर रोज़ नए बुनता है पर सत्य किसी को नहीं पता रहता है ...
जीवन नश्वर है ये सिर्फ ग्यानी ही समझ पाते हैं ...
जिजीविषा बाँधे रखती है अपने बंधन में, और जीते जाते हैं और शुक्र भी है
गहन सोच लिए बहुत सुंदर , सार्थक लघु कथा
खलक चबैना काल का, कुछ मुख में, कुछ गोद !
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रोत्साहन हेतु...।