बीती ताहि बिसार दे

स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं। पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं । परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे । ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...
जीवन का अंत कब और कैसे होगा कोई नहीं बता सकता। बहुत सुंदर रचना,सुधा दी।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद, ज्योति जी!उत्साहवर्धन हेतु...
हटाएंसस्नेह आभार।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२१ -०६-२०२०) को शब्द-सृजन-26 'क्षणभंगुर' (चर्चा अंक-३७३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
जी हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका
हटाएंमेरी रचना साझा करने हेतु।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 21 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहृदयतल सै धन्यवाद यशोदा जी! मेरी रचना साझा करने हेतु....
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
जीवन की नश्वरता यही है..मगर जीवन की जीजिविषा बांधे रखती है अपने बंधन में । हृदयस्पर्शी लघुकथा ।
जवाब देंहटाएंसही कहा मीना जी जिजीविषा बाँधे रखती है अपने बंधन में...।
हटाएंउत्साहवर्धन हेतु हृदयतल से धन्यवाद आपका।
ओह ...जीवन सचमुच क्षणभंगुर है . कई बार अवसर ही नहीं देता किसी को बताने का . बिल्कुल यही मेरी सहकर्मी के पति का हुआ . मार्मिक कथा
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद आपका आ. गिरिजा जी! ब्लॉग पर आपका अभिनंदन है।
हटाएंजीवन के क्षणभंगुर और अनिश्चित चरित्र को उद्घाटित करती लघुकथा। बधाई।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. विश्वमोहन जी!
हटाएंइसी सच का सामना करने की हिम्मत नहीं होती है मनुष्य की।
जवाब देंहटाएंजी ,आ. जोशी जी !सही कहा आपने हिम्मत नहीं होती और जब विपत्ति आती है तो बिखर कर रह जाते हैं....।
हटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।
ओह !!
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी विधि का विधान अबूझ ।
उत्कृष्ट भाव कथा।
तहेदिल से धन्यवाद कुसुम जी!उत्साहवर्धन हेतु।
हटाएंहाँ समय का कुछ पता नहीं फिर भी सावधानी जरूरी, कर्मण्येवाधिकारस्ते।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद आ. विमल जी !
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है...।
भावी प्रबल होती है "हानि लाभ जीवन मरण जस अपजस विधि हाथ"सुन्दर लघु कथा।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार, उर्मिला जी!
हटाएंसादर।
गहन भाव उकेरे हैं सुधा जी।
जवाब देंहटाएंजीवन तो क्षणभंगुर ही है हम मन के बंधन की माया में उलझकर रह जाते हैं।
सुगढ़ता से लिखी सार्थक लघुकथा सुधा जी।
हृदयतल से धन्यवाद श्वेता जी, उत्साहवर्धन हेतु....
हटाएंसस्नेह आभार।
बहुत सुंदर लघु कथा। वाकई जीवन क्षण भंगुर का ही है।
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार भाई!
हटाएंशायद एक यही है जो इश्वर ने अपने हाथ में रक्खी है ...
जवाब देंहटाएंइंसान सोचता तो बहुत कुछ है ... सपने हर रोज़ नए बुनता है पर सत्य किसी को नहीं पता रहता है ...
जीवन नश्वर है ये सिर्फ ग्यानी ही समझ पाते हैं ...
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार नासवा जी !
हटाएंवाह!सुधा जी ,बहुत सुंदर ,गहन भाव लिए जीवन की सच्चाई बताती हुई कथा
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार शुभा जी!
हटाएंजीवन सचमुच क्षणभंगुर है
जवाब देंहटाएंजिजीविषा बाँधे रखती है अपने बंधन में, और जीते जाते हैं और शुक्र भी है
गहन सोच लिए बहुत सुंदर , सार्थक लघु कथा
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद जोया जी !
हटाएंजीवन क्षणभंगुर है गहन भाव लिए मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद सखी!
हटाएंअत्यंत कटु सत्य है मृत्यु, लेकिन फिर भी बरसों की सोच के बैठा है इंसान। यथार्थ दिखाती रचना।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार भाई!
हटाएंमौत बिन बुलाई मेहमान होती है !
जवाब देंहटाएंखलक चबैना काल का, कुछ मुख में, कुछ गोद !
जी, सर!सही कहा आपने...
हटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रोत्साहन हेतु...।