बीती ताहि बिसार दे

स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं। पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं । परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे । ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...
वाह!
जवाब देंहटाएंपीड़ित मानवता की आह को समेटते प्रभावशाली मुक्तक जो सीधे मर्म को छू लेते हैं।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
लिखते रहिए।
हृदयतल से धन्यवाद रविन्द्र जी!उत्साहवर्धन हेतु...
हटाएंसादर आभार।
पीड़ित मन की व्यथा बताती रचना। हम बस सरकारी दस्तावेजों में एक संख्या बनकर रह गए हैं।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद, विकास जी !
हटाएंसादर आभार.?
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (02-06-2020) को
"हमारे देश में मजदूर की, किस्मत हुई खोटी" (चर्चा अंक-3720) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी!चर्चा मंच पर मेरी रचना साझा करने हेतु..
हटाएंसस्नेह आभार।
वाह!!सखी सुधा जी ,बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद, शुभा जी !
हटाएंसादर आभार...।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, सुधा दी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी!
हटाएंसस्नेह आभार।
वाह ...."किसी की बेबसी पर सियासत ही सजातें हैं"
जवाब देंहटाएंलाज़बाब रचना सुधा जी।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार उर्मिला जी!
हटाएंअद्भुत.. सभी मुक्तक शानदार👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सुधा जी!
हटाएंवाह सखी बहुत ही सुन्दर रचना 🙏🌹
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सखी !
हटाएंबहुत ही सुन्दर मुक्तक हैं सब्जी .... प्रवासियों के जावन को लक्षित करते भाव को बाखूबी लिखा है आपने इन मुक्तक में ...
जवाब देंहटाएंपहला प्रयास है आपका जी बहुत ही सफल है ... ऐसे ही लिखती रहे ...
जी, नासवा जी!उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आपका...।
हटाएंसादर आभार।
अपने ही घर में बेगाने हो गए
जवाब देंहटाएंबड़ी विडम्बना है सियासत का खेल बदस्तूर जारी रहता है
मरमस्पर्शी प्रस्तुति
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कविता जी !
हटाएंबेहद खूबसूरत मुक्तक सखी 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सखी!
हटाएंसस्नेह आभार।
हमें तो गर्व था खुद पे कि हम भारत के वासी हैं
जवाब देंहटाएंदुखी हैं आज जब जाना यहाँ तो हम प्रवासी हैं
सियासत की सुनो जानो तो बस इक वोट भर हैं हम
सिवा इसके नहीं कुछ भी बस अंत्यज उपवासी हैं...
हर मेहनतकश भारतीय की यहीं अंतर्व्यथा है। बहुत सुंदर चित्रण।
हृदयतल से धन्यवाद आपका आ. विश्वमोहन जी !
हटाएंबहुत सुन्दर रचना.... माननीयों की संवेदन शून्यता देखकर दुःख होता है.
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.अनिल जी!
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।