पेड़-- पर्यावरण संतुलन की इकाई
हम अचल, मूक ही सही मगर
तेरा जीवन निर्भर है हम पर
तू भूल गया अपनी ही जरूरत
हम बिन तेरा जीवन नश्वर
तेरी दुनिया का अस्तित्व हैं हम
हम पर ही हाथ उठाता है,
आदम तू भूला जाता है
हम संग खुद को ही मिटाता है
अपना आवास बनाने को
तू पेड़ काटता जाता है
परिन्दोंं के नीड़ों को तोड़
तू अपनी खुशी मनाता है
बस बहुत हुआ ताण्डव तेरा
अबकी तो अपनी बारी है
हम पेड़ भले ही अचल,अबुलन
हम बिन ये सृष्टि अधूरी है
वन-उपवन मिटाकर,बंगले सजा
सुख शान्ति कहाँ से लायेगा
साँसों में तेरे प्राण निहित तो
प्राणवायु कहाँ से पायेगा.....
चींटी से लेकर हाथी तक
आश्रित हैं हम पर ही सब
तू पुनः विचार ले आदम हम बिन
पर्यावरण संतुलित नहीं रह पायेगा ।
टिप्पणियाँ
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु ।
सादर
सार्थक सृजन.सुधा जी।
सस्नेह।
हम जो प्रतिक्रिया लिखे क्यों नहीं दीख रहा प्लीज आप स्पेम में चेक करिये न क्योंकि मेरे ब्लॉग पर.भी बहुत सारी प्रतिक्रिया स्पेम में जा रही जिसे not spam करके हम पब्लिश किए।
शायद कुछ प्रतिक्रिया स्पेम में हों।
दिल से आभार आपका।