बीती ताहि बिसार दे

स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं। पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं । परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे । ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...
सुंदर सकारात्मक सृजन
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार 16 मई 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.संगीता जी !
हटाएंमेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु ।
दिनांक ---- 17 मई
जवाब देंहटाएंजी, 🙏🙏🙏🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन। नष्ट होते जंगल, पेड़ों का दोहन, मूक बैठा मानव... गहन चिंतन लिए बढ़िया रचना।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर सकारात्मक संदेश देती रचना !
जवाब देंहटाएंपर्यावरण संरक्षण के प्रति मनुष्यों की उदासीनता चिंतनीय है।आवश्यकता है आज प्रकृति के प्रति स्वंय के कर्तव्यों का बोध करने की अन्य लोगों को.भी प्रेरित करने की।
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन.सुधा जी।
सस्नेह।
इतनी विभिषिका झेलने के बाद भी हम असुरी नींद से नहीं जागे तो क्या कहा जाए। न जाने हम कब सुधरेंगे। प्रभावी सृजन।
जवाब देंहटाएंसुधा जी,
जवाब देंहटाएंहम जो प्रतिक्रिया लिखे क्यों नहीं दीख रहा प्लीज आप स्पेम में चेक करिये न क्योंकि मेरे ब्लॉग पर.भी बहुत सारी प्रतिक्रिया स्पेम में जा रही जिसे not spam करके हम पब्लिश किए।
शायद कुछ प्रतिक्रिया स्पेम में हों।
जी, श्वेता जी ! स्पेम में थी आपकी प्रतिक्रिया ..अन्य पोस्ट पर भी यही था । बहुत बहुत धन्यवाद बताने के लिए अब सभी को पब्लिश कर दिया...
हटाएंदिल से आभार आपका।
इन निरीह पेड़ों की व्यथा कौन जान सका है सिवाय कवि मन के।भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय सुधा जी।
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