बीती ताहि बिसार दे

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  स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं।  पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं ।  परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है  ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे ।   ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...

तमस राज अपना फैला रहा है

 

Dark night
                चित्र साभार pixabay.com से


दिवाली गयी अब दिये बुझ गये सब

वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है...

अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है

तमस राज अपना फैला रहा है

अमा के तमस से सहमा सा जुगनू

टिम-टिम चमकने में कतरा रहा है

दिवाली गयी अब दिये बुझ गये सब

वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है....।


कितनी अयोध्या जगमग सजी हैं

पर ना कहीं कोई राम आ रहा है

कष्टों के बादल कहर ढ़ा रहे हैं 

पर्वत उठाने ना श्याम आ रहा है

दीवाली गयी अब दिये बुझ गये सब

वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है।

अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है

तमस राज अपना फैला रहा है.....।


कहीं साँस लेना भी मुश्किल हुआ है

सियासत का कोहरा गहरा रहा है

करेंगे तो अपनी ही मन की सभी

पर ढ़ीला हुकूमत का पहरा रहा है

दीवाली गयी अब दिये बुझ गये सब

वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है

अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है

तमस राज अपना फैला रहा है.....।


बने मुफ्तभोगी सत्ता के लोभी

हराकर मनुज को दनुज जी रहा है

निष्कर्म जीवन चुना स्वार्थी मन

पकड़ रोशनी के वो पंख सी रहा है

दीवाली गयी अब दिये बुझ गये सब 

वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है

अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है

तमस राज अपना फैला रहा है......।




टिप्पणियाँ

  1. अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है

    तमस राज अपना फैला रहा है

    अमा के तमस से सहमा सा जुगनू
    टिम-टिम चमकने में कतरा रहा है
    दिवाली गयी अब दिये बुझ गये सब
    वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है....।
    गहन भावाभिव्यक्ति। हृदयस्पर्शी सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद मीना जी!
      सस्नेह आभार।

      हटाएं
  2. कटु सत्य को उजागर करती आपकी यह कविता मुझे झकझोर गई सुधा जी। सत्य से ओतप्रोत ऐसी कविताएं करने के लिए भी नैतिक साहस चाहिए जो किसी-किसी में ही होता है। नमन आपकी लेखनी को।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन हेतु तहेदिल से धन्यवाद आ.जितेन्द्र जी!
      सादर आभार।

      हटाएं
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(११-११-२०२१) को
    'अंतर्ध्वनि'(चर्चा अंक-४२४५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद प्रिय अनीता जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।
      सस्नेह आभार।

      हटाएं
  4. अमा के तमस से सहमा सा जुगनू
    टिम-टिम चमकने में कतरा रहा है
    बहुत ही सुंदर व बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. यथार्थ पर गहनता से प्रहार है ये रचना बहुत सुंदर सृजन सुधा जी सत्य और सत्य के आस पास।
    हराकर मनुज को दनुज जी रहा है
    निष्कर्म जीवन चुना स्वार्थी मन
    पकड़ रोशनी के वो पंख सी रहा है।
    सटीक !
    अभिनव रचना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद कुसुम जी!आपकी अनमोल प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित करती हैं
      सादर आभार।

      हटाएं
  6. जीवन के अल्प उत्सव के बाद वही समय फिर से लौट आता है। क्षणिक उजालों के बाद निर्मोही अंधेरे का राज दीर्घकालीन और प्राय स्थायी सा अनुभव होता है। सार्थक चिन्तन को प्रेरित करतीं भावपूर्ण रचना प्रिय सुधा जी। बस यहीं दुआ है अंधेरे के साम्राज्य पर विजय प्राप्त कर उजालों की कीर्ति अमर हो।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित एवं अनमोल प्रतिक्रिया द्वारा रचना का मर्म स्पष्ट करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय रेणु जी!

      हटाएं
  7. कितनी अयोध्या जगमग सजी हैं
    पर ना कहीं कोई राम आ रहा है
    कष्टों के बादल कहर ढ़ा रहे हैं
    पर्वत उठाने ना श्याम आ रहा है
    दीवाली गयी अब दिये बुझ गये सब
    वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है।
    अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है
    तमस राज अपना फैला रहा है.....।👌👌👌❤️❤️🌷🌷

    जवाब देंहटाएं
  8. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी!
      सस्नेह आभार।

      हटाएं
  9. वाह सुधा जी बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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