पहले से ही खचाखच भरी बस जब स्टॉप पर रुकी तो बहुत से लोगों के साथ एक शराबी भी बस में चढ़ा जो खड़े रह पाने की हालत में नहीं था...।
सभी सीट पहले से ही फुल थी, उसे लड़खड़ाते देख बस में खड़ी महिलाएं इधर उधर खिसकने की कोशिश करने लगी।
तभी एक उन्नीस - बीस साल की लड़की अपनी सीट से उठी और शराबी को सीट पर बैठने का आग्रह किया। शराबी बड़े रौब से लड़खडा़ती आवाज में बोला, "इट्स ओके…आइ विल मैनेज"...।
लड़की ने बस कंडक्टर से इशारा कर शराबी को अपनी सीट पर बिठा दिया।
बस में खड़ी सभी महिलाओं के चेहरे पर सहजता के भाव साफ नजर आ रहे थे .....
अब वह लड़की भी उन्ही के साथ खड़ी थी।
तभी एक बुजुर्ग महिला बस के झटके से गिरने को हुई तो लड़की ने उन्हें सम्भाला और पास में बैठे लड़के से बोली "भाई क्या आप अपनी सीट इन ऑण्टी को दे सकते हैं"...?
लड़का तपाक से बोला "मैं आपकी तरह बेवकूफ नहीं हूँ, कि अपनी सीट दूसरों को देकर धक्के खाता फिरूँ...। आपने उस शराबी को सीट क्यों दी ? देनी ही थी तो इन ऑण्टी जैसे लोंगो को देती जो खड़े रहने में अक्षम हैं..... और वैसे भी तुम्हारी सीट तो महिला आरक्षित सीट थी न"....?
लड़की बड़े शान्त स्वर मे बोली ,"ठीक है भाई! मैंने तो आपसे सिर्फ पूछा है...देना, न देना, ये आपकी इच्छा है....और रही बात मेरी सीट की , तो वह आदमी नशे में होश खोया है और इतनी सारी महिलाओं के साथ खड़े होकर वह होश में आना भी नहीं चाहता....।
ऐसे ही लोगों की वजह से न जाने कितनी महिलाओं को छेड़छाड़ जैसी बेहूदा हरकतों से गुजरना पड़ता है, इसीलिए मैंने उसे अपनी आरक्षित सीट दे दी। क्योंकि ऐसे लोग हम महिलाओं के आस-पास न हों तो हमें आरक्षण की कोई खास आवश्यकता भी नहीं"।
लड़की की बात सुनकर अन्य कई युवा उठकर बस में खड़े बुजुर्गों और असमर्थों को अपनी सीट पर बिठाकर स्वयं खड़े होकर सफर करने लगे।
चित्र साभार गूगल से.....
42 टिप्पणियां:
बहुत बहुत सराहनीय सुन्दर संदेश वाहक रचना |
सटीक सोच के साथ
सटीक शिक्षा भी..
आभार जागरूकता संदेश के लिए
सादर..
हार्दिक धन्यवाद आ. सर!
सादर आभार।
तहेदिल से धन्यवाद आ.आलोक जी!
सादर आभार।
समझदारी दिखाना और उस पर अमल भी करना जरूरी है ...
कहानी के माध्यम से बहुत खुच कहा है आपने ...
आपकी कहानी आज के दौर में महिलाओं के हालात से रूबरू करा गई,काश कि लोगों को कुछ तो समझ आए,यथार्थ का बखूबी चित्रण किया है, आपने ।p
लड़की समझदार निकली। सार्थक लघुकथा।
जी, अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
हार्दिक धन्यवाद मीना जी मेरी रचना को
चर्चा मंच में स्थान देने हेतु...।
सस्नेह आभार।
तहेदिल से धन्यवाद वीरेन्द्र जी!
सार्थक लघु कथा ।
सुन्दर संदेश देती लघुकथा....
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद, आ. संगीता जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नैनवाल जी!
बेहतरीन संदेश सुधा जी ,ऐसे लोग हम महिलाओं के आस पास ना हो तो हमे आरक्षण की आवश्यकता ही नहीं ।
वाह बेहतरीन
बहुत सुंदर लघुकथा।
सादर
सुधा दी, सुंदर सन्देश देती लघुकथा।
बहुत सुंदर, सटीक रचना...🌹🙏🌹
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद रितु जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार शरद जी!
बहुत सुंदर और सार्थक लघुकथा।
सच में नयी सोच । सशक्त सृजन ।
बहुत सुंदर और प्रेरक लघु कथा सुधा जी।
आईना दिखाती सी।
सस्नेह।
सस्नेह आभार एवं धन्यवाद सखी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अमृता जी!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद कुसुम जी!
बहुत सुंदर कहानी प्रिय सुधा जी। बेटियाँ बहुत मेधावान और तत्काल निर्णय लेने में सक्षम हैं। अब वे दया या कृपा की पात्र नहीं होती। बसों और दैनिक जीवन में उनके हौंसले बुलंद है। प्रेरक कथानक के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ❤🌹🌹🙏🌹
तहेदिल से धन्यवाद प्रिय रेणुजी !
सस्नेह आभार।
आपने अच्छा लिखा है , सुंदर रचना.
हार्दिक धन्यवाद आपका रश्मि जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
वाह! सन्देश देती सुन्दर लघुकथा।
बगैर कुछ जाने बोलना लोगों की आदत है,इस तरह के जवाब से ही इनकी बन्द अक्ल खुलती है, बहुत खूब लाजवाब, बेहतरीन पोस्ट सुधा जी, हार्दिक बधाई हो
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी!
आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहा भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
यह लघुकथा तो सचमुच बहुत ही अच्छी है सुधा जी। अभिनंदन आपका।
हृदयतल से धन्यवाद अमित जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद जितेंद्र जी!
वह आदमी नशे में होश खोया है और इतनी सारी महिलाओं के साथ खड़े होकर वह होश में आना भी नहीं चाहता....
वाह! बस एक पंक्ति में इतना करारा तमाचा!!!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी!
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