सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे, तेरे पुण्यों का भार तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ● तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे
आपकी लिखी रचना सोमवार 27 जून 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ. संगीता जी मेरी इतनी पुरानी भूली बिसरी रचना चयन कर पाँच लिंको के आनंद मंच पर साझा करने हेतु।
हटाएंलौट आओ वहींं से जहाँँ हो,
जवाब देंहटाएंव्वाहहहहह..
आभार..
सादर..
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.यशोदा जी !
हटाएंलौट आये कहीं तुम्हारे लिए
जवाब देंहटाएंजीवन की दोपहर में
धूप की आपाधापी में
जो खो गया
साँझ होने के पहले
गर मिल जाए
रात का मायना बदल जाए।
---
सुंदर अभिव्यक्ति सुधा जी।
सस्नेह।
जी, श्वेता जी, क्या खूब कहा आपने ! साँझ होने के पहले
हटाएंगर मिल जाए
रात का मायना बदल जाए।
बहुत सही...तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
खाई भी गहरी सी है,
जवाब देंहटाएंचलो पाट डालो उसे ।
सांझ ढलने से पहले,
बगिया बना लो उसे ।
नन्हींं नयी पौध से फिर,
महक जायेगा घर-बार ।
लौट आयें बचपन की यादें,
लौट आये फिर कहीं प्यार ?
एक समृद्ध परिवार संस्था जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। नव चेतना भरती सुंदर सराहनीय रचना । बधाई सुधा जी ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी !
हटाएंढले साँझ समझे अगर
जवाब देंहटाएंबस सिर्फ पछताओगे
बस में न होगा समय
फिर क्या तुम कर पाओगे
एक पल ठहर कर यही तो नहीं सोचते और अपने ही हाथों तोड़ देते खुशियों का घरौंदा, बेहद मार्मिक सृजन सुधा जी 🙏
जी, कामिनी जी सही कहा आपने...
हटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।