कब तक चलता रहेगा बोलो,
लुका-छुपी का खेल ये ?.......
लुका-छुपी का खेल ये ?.......
अब ये दुश्मन बन जायेंगे,
या फिर होगा मेल रे ?.........
उसने सैनिक मार गिराये,
तुमने बंकर उडा दिये........
ईंट के बदले पत्थर मारे,
ताकत अपनी दिखा रहे........
संसद की कुर्सी पर बैठे,
नेता रचते शेर रे...........
एक दिन सैनिक बनकर देखो,
कैसे निकले रेड़ रे.........
शहादत की चाह से सैनिक
कब सरहद पर जाता है ?.......
हर इक पिता कब पुत्र-मरण में,
सीना यहाँ फुलाता है ?........
गर्वित देश और अपने भी,
ये हैंं शब्दों के फेर रे...........
कब तक चलता रहेगा बोलो,
लुका-छिपी का खेल ये ?.........
भरी संसद में नेताओं पर ,
जूते फेंके जाते हैं...........
सरहद पर क्यों हाथ बाँधकर,
सैनिक भेजे जाते हैं ?.........
अजब देश के गजब हैं नुख्से ,
या हैं ये भी राजनीति के खेल रे ?........
कब तक चलता रहेगा बोलो,
लुका-छिपी का खेल ये ?...........
विपक्षी के दो शब्दों से जहाँ,
स्वाभिमान हिल जाते हैं........
नहीं दिखे तब स्वाभिमान जब,
सैनिकों पे पत्थर फैंके जाते हैं......
आजाद देश को रखने वाले,
स्वयं गुलामी झेल रहे..........
दाँत भींच ये गाली सहते,
बेचारगी सी झेल रहे............
प्राण हैं इनमें ये नहीं पुतले,
कब समझोगे भेद रे ?.........
कब तक चलता रहेगा बोलो,
लुका-छिपी का खेल रे ?.........
बिन अधिकार बिना आजादी,
कैसे करें ये मेल रे ?..........
देश-भक्ति का जज्बा ऐसे,
हो न जाये कहीं फेल रे ?.........
तनिक सैनिकों को भी समझो,
बन्द करो अब खेल ये............
ठोस नतीजे पर तो पहुँचों,
हुंकारे अब ये शेर रे...........
हुक्म करो तो अमन-चैन को,
वापस भारत लाएं ये..........
शौर्य देख आतंकी भी
बंकर-सहित रसातल जायें रे..........
दे खदेड़ आतंक जहाँ से,
"विश्व-शान्ति" फैलायें ये..........
"भारत माता"के वीर हैं ये,
संसार में माने जायें रे............
चित्र :Shutterstockसे साभार.....
हर इक पिता कब पुत्र-मरण में,
सीना यहाँ फुलाता है ?........
गर्वित देश और अपने भी,
ये हैंं शब्दों के फेर रे...........
कब तक चलता रहेगा बोलो,
लुका-छिपी का खेल ये ?.........
भरी संसद में नेताओं पर ,
जूते फेंके जाते हैं...........
सरहद पर क्यों हाथ बाँधकर,
सैनिक भेजे जाते हैं ?.........
अजब देश के गजब हैं नुख्से ,
या हैं ये भी राजनीति के खेल रे ?........
कब तक चलता रहेगा बोलो,
लुका-छिपी का खेल ये ?...........
विपक्षी के दो शब्दों से जहाँ,
स्वाभिमान हिल जाते हैं........
नहीं दिखे तब स्वाभिमान जब,
सैनिकों पे पत्थर फैंके जाते हैं......
आजाद देश को रखने वाले,
स्वयं गुलामी झेल रहे..........
दाँत भींच ये गाली सहते,
बेचारगी सी झेल रहे............
प्राण हैं इनमें ये नहीं पुतले,
कब समझोगे भेद रे ?.........
कब तक चलता रहेगा बोलो,
लुका-छिपी का खेल रे ?.........
बिन अधिकार बिना आजादी,
कैसे करें ये मेल रे ?..........
देश-भक्ति का जज्बा ऐसे,
हो न जाये कहीं फेल रे ?.........
तनिक सैनिकों को भी समझो,
बन्द करो अब खेल ये............
ठोस नतीजे पर तो पहुँचों,
हुंकारे अब ये शेर रे...........
हुक्म करो तो अमन-चैन को,
वापस भारत लाएं ये..........
शौर्य देख आतंकी भी
बंकर-सहित रसातल जायें रे..........
दे खदेड़ आतंक जहाँ से,
"विश्व-शान्ति" फैलायें ये..........
"भारत माता"के वीर हैं ये,
संसार में माने जायें रे............
चित्र :Shutterstockसे साभार.....
28 टिप्पणियां:
बेहतरीन रचना
भरी संसद में नेताओं पर ,
जूते फेंके जाते हैं...........
सरहद पर क्यों हाथ बाँधकर,
सैनिक भेजे जाते हैं ?.........
अजब देश के गजब हैं नुस्खे या,
हैं ये भी राजनीति के खेल रे ?........
कब तक चलता रहेगा बोलो,
लुका-छिपी का खेल ये ?..........
बहुत ही सुंदर रचना, सुधा दी।
हार्दिक आभार अभिलाषा जी !
बहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी !
सादर आभार...
बिल्कुल सही
Bahut khoob👌👌👌
प्रश्न पर प्रश्न सार्थक प्रश्न पुछती बेमिसाल अभिव्यक्ति ।
वाह्ह्ह सुधा जी ।
बेहतरीन प्रस्तुति सखी
बहुत ही सुन्दर सखी 👌👌👌
सादर
सस्नेह आभार अनीता जी!
बहुत बहुत धन्यवाद, अनुराधा जी !
सस्नेह आभार कुसुम जी !
हार्दिक धन्यवाद नीतू जी !
ससनेह आभार, भाई...
हार्दिक धन्यवाद, रितु जी !
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-01-2020) को 'धुएँ के बादल' (चर्चा अंक- 3593) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
आभारी हूँ रविन्द्र जी तहेदिल से धन्यवाद आपका मेरी रचना चर्चा मंच पर साझा कर मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए...।
बहुत सुन्दर सृजन सुधा जी, न जाने य़ह खेल कब तक चलता रहेगा. लालच के मद में इंसान इतना अंधा हो गया कि उसने मानवता को कब सूली पर चढ़ा दिया पता ही नहीं चला
दे खदेड़ आतंक जहाँ से,
"विश्व-शान्ति" फैलायें ये..........
"भारत माता"के वीर हैं ये,
संसार में माने जायें रे.....
बेहतरीन अभिव्यक्ति ,सादर नमन सुधा जी
हृदयतल से धन्यवाद सुधा जी !
सस्नेह आभार।
आभारी हूँ कामिनी जी ! बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०८-०७-२०२०) को 'शब्द-सृजन-२८ 'सरहद /सीमा' (चर्चा अंक-३७५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
वाह बेहतरीन सृजन। बेहद मार्मिक और समयानुकूल। हार्दिक बधाई।
हृदयतल से धन्यवाद अनीता जी, निरन्तर सहयोग हेतु।
हार्दिक धन्यवाद, सुजाता जी!
सस्नेह आभार।
हार्दिक धन्यवाद आ. सर!
सादर आभार।
शानदार तंज सटीक व्यंग्य सामायिक परिस्थितियों और नेताओं के व्यवहार का सही दृश्य उकेरती सामायिक रचना ।
अभिनव सुंदर। ््।
हृदयतल से धन्यवाद कुसुम जी!
सस्नेह आभार।
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