हे अक्टूबर के अनाहूत अभ्र !
ये अल्हड़ आवारगी क्यों ?
प्रौढ़ पावस की छोड़ वयस्कता
चिंघाड़ों सी गरजन क्यों ?
गरिमा भूल रहे क्यों अपनी,
डाले आसमान में डेरा ।
राह शरद की रोके बैठे,
जैसे सिंहासन बस तेरा ।
शरद प्रतीक्षारत देहलीज पे
धरणी लज्जित हो बोली,
झटपट बरसों बचा-खुचा सब
अब खाली कर दो झोली !
शरदचन्द्र पे लगे खोट से
चन्द्रप्रभा का कर विलोप
अति करते क्यों ऐसे जलधर !
झेल सकोगे शरद प्रकोप ?
जाओ अब आसमां छोड़ो !
निरभ्र शरद आने दो!
शरदचंद्र की धवल ज्योत्सना
धरती को अब पाने दो !
27 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 11 अक्तूबर 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
शरद पूर्णिमा का धवल चन्द्रमा घटाओं की ओट में रहा कल …ऐसे मे अभ्र से शिकायत तो बनती है । बहुत सुन्दर सृजन ।
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-10-22} को "डाकिया डाक लाया"(चर्चा अंक-4578) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.यशोदा जी मेरी रचना पाँच लिंको के आनंद मंच चयन करने हेतु।
जी मीनाजी दिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।
बहुत ही सुन्दर रचना सखी
बड़ी ही उम्दा अभिव्यक्ति
आपकी फटकार से बादल तो छँट गए लेकिन अब शरद पूर्णिमा का चाँद कहाँ देखें 😄😄
बहुत सुंदर सृजन ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सखी!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद मनोज जी !
शरद पूर्णिमा का चाँद तो लुकाछिपी में गया । पर अब करवाचौथ का भी ना दिखा तो कहीं सब भूख प्यास हड़ताल ना बैठ जायें इसलिए एक फटकार आप भी लगा ही दीजिए, मेरी नहीं तो क्या पता की ही सुन ले ये..हैं न 😁😃
सादर आभार एवं धन्यवाद आपका🙏🙏
वर्तमान मौसम पर सार्थक रचना
बहुत ही सुंदर रचना, सुधा दी।
दिल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !
अद्भुत और नि:शब्द!!!!
सरकते सरकते ऋतु जून में शीतल हो जाए
सुन्दर रचना
निर्मेघ नभ पर शरद पूर्णिमा के चाँद की आलोकिक आभा जो वैभव लिए विचरती है उस को मेघों ने अपने आगोश में लेकर धूसरित कर दिया।
वाह! सुधा जी बहुत ही सुंदर अभिनव प्रस्तुति उलाहना और फटकार दोनों काव्यात्मक लय में , बहुत सुंदर सृजन, काव्यागत सौंदर्य के साथ।
करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं 🌷🌷🌷
सुधा जी, धरती में व्याप्त अनाचार और अव्यवस्था का प्रभाव अब आकाश पर भी पड़ने लगा है.
सब ओर गड़बड़ झाला है.
बेमौसम बरसात हो रही है फिर शरद ऋतु में प्रचंड गर्मी पड़ेगी और वैशाख-जेठ में रजाइयां ओढ़नी पड़ेंगी.
बहुत सुंदर रचना,
शरद प्रतीक्षारत देहलीज पे
धरणी लज्जित हो बोली,
अब लाज कहां है इसीलिए तो प्रकृति को भी ठीक व्यवहार न रहा। हमें भी वैसा ही वापस मिल रहा है।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.कैलाश जी!
सादर आभार एवं धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी !
जी, हालात देखकर सच में ऐसा लग रहा है।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.कुसुम जी !
जी, आ. सर ! सही कहा आपने.. मौसम का ये परिवर्तित रूप ऐसा सोचने को विवश कर रहा है...सादर आभार एवं धन्यवाद आपका ।
सही कहा भाई !
सस्नेह आभार ।
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
greetings from malaysia
let's be friend
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