रिमझिम रिमझिम बरखा आई

चौपाई छंद रिमझिम रिमझिम बरखा आई । धरती पर हरियाली छायी ।। आतप से अब राहत पायी । पुलकित हो धरती मुस्काई ।। खेतों में फसलें लहराती । पावस सबके मन को भाती ।। भक्ति भाव में सब नर नारी । पूजें शिव शंकर त्रिपुरारी ।। सावन में शिव वंदन करते । भोले कष्ट सभी के हरते ।। बिल्वपत्र घृत दूध चढ़ाते । दान भक्ति से पुण्य कमाते ।। काँवड़ ले काँवड़िये जाते । गंंगाजल सावन में लाते ।। बम बम भोले का जयकारा । अंतस में करता उजियारा ।। नारी सज धज तीज मनाती । कजरी लोकगीत हैं गाती ।। धरती ओढ़े चूनर धानी । सावन रिमझिम बरसे पानी ।। हार्दिक अभिनंदन आपका🙏🙏 पढिए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर ● पावस में इस बार
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 11 अक्तूबर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.यशोदा जी मेरी रचना पाँच लिंको के आनंद मंच चयन करने हेतु।
हटाएंशरद पूर्णिमा का धवल चन्द्रमा घटाओं की ओट में रहा कल …ऐसे मे अभ्र से शिकायत तो बनती है । बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंजी मीनाजी दिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-10-22} को "डाकिया डाक लाया"(चर्चा अंक-4578) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना सखी
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सखी!
हटाएंबड़ी ही उम्दा अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद मनोज जी !
हटाएंआपकी फटकार से बादल तो छँट गए लेकिन अब शरद पूर्णिमा का चाँद कहाँ देखें 😄😄
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन ।
शरद पूर्णिमा का चाँद तो लुकाछिपी में गया । पर अब करवाचौथ का भी ना दिखा तो कहीं सब भूख प्यास हड़ताल ना बैठ जायें इसलिए एक फटकार आप भी लगा ही दीजिए, मेरी नहीं तो क्या पता की ही सुन ले ये..हैं न 😁😃
हटाएंसादर आभार एवं धन्यवाद आपका🙏🙏
वर्तमान मौसम पर सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.कैलाश जी!
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना, सुधा दी।
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !
हटाएंअद्भुत और नि:शब्द!!!!
जवाब देंहटाएंसादर आभार एवं धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी !
हटाएंसरकते सरकते ऋतु जून में शीतल हो जाए
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जी, हालात देखकर सच में ऐसा लग रहा है।
हटाएंहृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
निर्मेघ नभ पर शरद पूर्णिमा के चाँद की आलोकिक आभा जो वैभव लिए विचरती है उस को मेघों ने अपने आगोश में लेकर धूसरित कर दिया।
जवाब देंहटाएंवाह! सुधा जी बहुत ही सुंदर अभिनव प्रस्तुति उलाहना और फटकार दोनों काव्यात्मक लय में , बहुत सुंदर सृजन, काव्यागत सौंदर्य के साथ।
करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं 🌷🌷🌷
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.कुसुम जी !
हटाएंसुधा जी, धरती में व्याप्त अनाचार और अव्यवस्था का प्रभाव अब आकाश पर भी पड़ने लगा है.
जवाब देंहटाएंसब ओर गड़बड़ झाला है.
बेमौसम बरसात हो रही है फिर शरद ऋतु में प्रचंड गर्मी पड़ेगी और वैशाख-जेठ में रजाइयां ओढ़नी पड़ेंगी.
जी, आ. सर ! सही कहा आपने.. मौसम का ये परिवर्तित रूप ऐसा सोचने को विवश कर रहा है...सादर आभार एवं धन्यवाद आपका ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना,
जवाब देंहटाएंशरद प्रतीक्षारत देहलीज पे
धरणी लज्जित हो बोली,
अब लाज कहां है इसीलिए तो प्रकृति को भी ठीक व्यवहार न रहा। हमें भी वैसा ही वापस मिल रहा है।
सही कहा भाई !
हटाएंसस्नेह आभार ।
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
जवाब देंहटाएंgreetings from malaysia
let's be friend