चित्र साभार shutterstock से |
दिल में सौ दर्द छिपे, करूँ किससे शिकवे गिले।
मर्द हूँ रो ना सकूँ , जख्म चाहे हों मिले।
घर से बेघर हूँ सदा फिर भी घर का ठहरा,
नियति अपनी है यही, विदा ना अश्रु ढ़ले।।
घर से निकला जो कमाने, दिल पत्थर का बनाया ।
माँ की गोदी में सिर रखा, फिर भी मैं रो नहीं पाया।
उन समन्दर भरी आँखों से आँखें चार कर खिसका ।
बही जब नाक अश्कों से ,तो मफलर काम तब आया।
झूठी मुस्कान झूठी शान ले के जी रहा हूँ।
मैं फौलाद कहने का, टूक दिल सी रहा हूँ।
करनी कापुरुष की 'सजा ए शक' में हूँ मैं,
वेवजह बेएतबारी का जहर पी रहा हूँ।।
घर समाज हो या देश पहरेदार हूँ मैं ।
माँ बहन बेटी की सुरक्षा का जिम्मेदार हूँ मैं।
अनहोनियाँ करते नरपिशाच मेरा रूप लिए,
बेबस विवश हूँ उन हालात पर लाचार हूँ मैं।।
खामोशी ओढ़के जज्बात छुपाता हूँ मैं।
बेटा,भाई, पति,पिता बन फर्ज निभाता हूँ मैं।
भूलकर दर्द अपने जिम्मेदारियाँ निभाने
"पत्थरदिल मर्द बड़ा बेदर्द" कहलाता हूँ मैं।।
31 टिप्पणियां:
खामोशी ओढ़के जज्बात छुपाता हूँ मैं।
बेटा,भाई, पति,पिता बन फर्ज निभाता हूँ मैं।
बेहतरीन रचना सखी।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-01-2022) को चर्चा मंच "सन्त विवेकानन्द" जन्म दिवस पर विशेष (चर्चा अंक-4307) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सखी!
हार्दिक धन्यवाद आ.शास्त्री जी मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु...
सादर आभार।
Bahut sunder
वाह बेहतरीन
झूठी मुस्कान झूठी शान ले के जी रहा हूँ।
मैं फौलाद कहने का, टूक दिल सी रहा हूँ।
करनी कापुरुष की 'सजा ए शक' में हूँ मैं,
वेवजह बेएतबारी का जहर पी रहा हूँ।।
बहुत सुंदर।
क्या कहूँ इसे पढ़कर? लगता है जैसे मेरे लिए ही लिखी गई है।
घर समाज हो या देश पहरेदार हूँ मैं ।
माँ बहन बेटी की सुरक्षा का जिम्मेदार हूँ मैं।
अनहोनियाँ करते नरपिशाच मेरा रूप लिए,
बेबस विवश हूँ उन हालात पर लाचार हूँ मैं।।
काश कि सभी पुरुष महसूस कर पाते तो आज किसी एक की वजह से सभी को शक की नजरों का सामना नहीं करना पड़ता! एक की सजा सबको नहीं मिलती!
बहुत से लोग हैं जो यह महसूस करते हैं!पर कुछ ही लोगों के कारण पूरा पुरुष समाज शक के घेरे में रहता है और लड़कियां जहां तक हो सकता है उनसे बचकर ही रहना चाहती हैं!बहुत ही ज्यादा तकलीफ होती है किसी से सिर्फ इस वजह से दूरी बनाना कि वह पुरुष है, पुरुषों का कोई भरोसा नहीं!जबकि हमें पता होता है कि सभी लोग एक जैसे नहीं होते हैं लेकिन फिर भी अपनी सुरक्षा के खातिर मजबूरन ऐसा करना पड़ता है और सजग रहना पड़ता है! पुरुषों के दर्द को बयां करता हुआ बहुत ही मार्मिक वह हृदयस्पर्शी सृजन! एक एक शब्द दिल को छू रहे हैं!
सस्नेह आभार, भाई!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद रितु जी!
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी!
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.जितेन्द्र जी!आपकी अनमोल प्रतिक्रिया पाकर श्रमसाध्य हुआ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय मनीषा जी! सही कहा आपने भी कि सभी पुरुषों पर संदेह करती हैं लड़कियाँ..क्या करें परन्तु एक सद्पुरुष को इस तरह शक और संदेह में जीना कितना बुरा लगता होगा...है न...
मेरे विचारों के समर्थन हेतु पुनः दिल से शुक्रिया।
बहुत बहुत सुन्दर श्लाघनीय रचना । पूरी रचना आपके कोमल भावुक में , उसके विस्तार और व्यापकता को अभिव्यक्त करती है । अत्यन्त सशक्त रचना।
खामोशी ओढ़के जज्बात छुपाता हूँ मैं।
बेटा,भाई, पति,पिता बन फर्ज निभाता हूँ मैं।
भूलकर दर्द अपने जिम्मेदारियाँ निभाने
"पत्थरदिल मर्द बड़ा बेदर्द" कहलाता हूँ मैं।।
बहुत ही सार्थक संदर्भ उठाया आपने..पुरुष मन की गहन पीड़ा और मर्म को परिभाषित करती उत्कृष्ट रचना ।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!सराहनीय प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन करने हेतु।
तहेदिल से धन्यवाद जिज्ञासा जी अनमोल प्रतिक्रिया से प्रोत्साहन हेतु।
सस्नेह आभार।
बड़ा ही उम्दा सृजन
पुरुष-व्यक्तित्व का सुन्दर विवेचन!
खामोशी ओढ़के जज्बात छुपाता हूँ मैं।
बेटा,भाई, पति,पिता बन फर्ज निभाता हूँ मैं।
पुरुष द्वारा जिम्मेदारियों को वहन करने के दायित्व का हृदयस्पर्शी
चित्रण । अति सुन्दर सृजन सुधा जी ॥
मैं निशब्द है सुधा जी,
एक पूर्ण पुरुष मन की अंतर वेदना को अपने ऐसे उकेरा है जैसे शायद हर निष्ठावान पुरुष के मनोगत भाव आपकी लेखनी से साक्षात हो रहे हैं।
बहुत बहुत बहुत सुंदर ।
अभिनव अनुपम सृजन।
पुरुष के मन की गहन अभिव्यक्ति ...... जिम्मेदारियों को निबाहता हुआ मन की कह भी नहीं पाता . बेहतरीन .
आपकी लिखी कोई रचना सोमवार. 17 जनवरी 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार मनोज जी !
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आदरणीय सर!
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार मीना जी!
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.कुसुम जी!
हृदयतल से धन्यवाद आ. संगीता जी!
सादर आभार।
जी, अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ. संगीता जी आपके सहयोग हेतु।
मर्द के मनोभाव को समझ कर लिखी रचना ...
सच अहि कई बार ये सब कुछ होता है ... आयर किसी से कुछ बयाँ करना आसान नहीं होता ...
गहरी रचना ... आभार ऐसी रचना के लिए ....
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