बुधवार, 1 सितंबर 2021

निभा स्वयं से पहला रिश्ता

Girl in introspection
Sketch by sneha devrani 


बहुत हुई जब मन के मन की,
तो तन को गुस्सा आया ।
खोली में छुपकर बैठा मन ,
तन जब मन पर गरमाया ।

अपनी अपनी हाँका करता,
फिर भी मैंने तुझको माना।
पर मुझमें ही रहकर भी क्या, 
 तूने कभी मुझे जाना ?

सबकी कदर औ' फिकर तुझे ,
जब तेरी कोई जो सुने ना ।
तब गमगीन रहे तू तुझमें,
अश्रु मुझ से ही बहे ना।

आँखें असमय फूटी जाती,
फर्क तुझे नहीं पड़ता ।
हाल वही बेहाल है तेरा,
अपनी  जिद्द पे तू अड़ता।

जाने क्या-क्या शौक तेरे ये,
मुझ पर पड़ते भारी ।
तेरी मनमानी के कारण,
मैं झेल रहा बीमारी।

तेरा क्या...दुर्गत जो हुआ मैं,
तू त्याग मुझे उड़ जायेगा ।
ढूँढ़ कोई नवतन तू फिर से, 
 यही प्रपंच रचायेगा।।

सबको मान दिया करता तू
तनिक मुझे भी माना होता
मेरे दुख-सुख सामर्थ्यों को
कुछ तो कभी पहचाना होता

सामंजस्य हमारा होता, सुन मन !
निरोगी काया हम पाते ।
निभा स्वयं से पहला रिश्ता, 
फिर दुनिया को अपनाते ।।



31 टिप्‍पणियां:

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सुधा दी सच कहा असपने कि मन रहता तो तन में है लेकिन अपने ही तन की परवाह नही करता।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…


सबको मान दिया करता तू
तनिक मुझे भी माना होता
मेरे दुख-सुख सामर्थ्यों को
कुछ तो कभी पहचाना होता..जीवन दर्शन का सुंदर भाव प्रस्तुत करती अनुपम अभिव्यक्ति ।

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

वाह सुधा जी बेहतरीन प्रस्तुति

Meena Bhardwaj ने कहा…

सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (03-09-2021) को "बैसाखी पर चलते लोग" (चर्चा अंक- 4176) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।

"मीना भारद्वाज"

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच कहा, मन यदि तनिक सुधर जाये तो शरीर स्वस्थ हो जायेगा।

Sudha Devrani ने कहा…

जी ज्योति जी, सहृदय धन्यवाद एवं आभार आपका ।

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 02 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ जिज्ञासा जी तहेदिल से धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार रितु जी!

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ मीना जी!हृदयतल से धन्यवाद आपका मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!

Sudha Devrani ने कहा…

जी, प्रवीण जी! आपका अत्यंत आभार एवं धन्यवाद।

Sudha Devrani ने कहा…

सांध्य दैनिक मुखरित मौन मे मेरी रचना साझा करने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी!

Amrita Tanmay ने कहा…

क्या खूब कहा । इतना सुन्दर, सहज, सरल और मोहक संवाद तन-मन का । मीठी फटकार और तीखी चेतावनी । अति सुन्दर । सबको ये समझना चाहिए ।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

आपकी संभवतः कोई भी ऐसी रचना नहीं है सुधा जी जो गुणवत्ता के निकष पर खरी न उतरे। यह भी अपवाद नहीं। अभिनन्दन आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ अमृता जी हृदयतल से धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र जी आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती हैं।
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार सखी!

Anita ने कहा…

तन और मन की इस नोक झोंक में मन ही जीतेगा, क्योंकि तन की तरफ़ से बोल भी तो वही रहा है, यानि उसे खबर सब है पर ज़रा नादान है, सुंदर रचना !

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.अनीता जी!आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु।
जी मन आज पश्चात्ताप से खामोश है अपनी अति से तन की दुर्गति देख।

ANIL DABRAL ने कहा…

बहुत सुंदर दी, तन और मन का ये अंतर्द्वंद्व आज पता चला... आपने बखूबी समझाया है। दोनों पास थे पर हम बेखबर से रहे इनसे...

दीपक कुमार भानरे ने कहा…

सामंजस्य हमारा होता
निरोगी काया हम पाते
निभा स्वयं से पहला रिश्ता
फिर दुनिया को अपनाते ।।
सुंदर अभिव्यक्ति । बहुत शुभकामनायें ।

मन की वीणा ने कहा…

वाह! अद्भुत सुधा जी ,अभिनव भाव अभिनव लेखन।

सच सभी मन की बात करते हैं,
पर तन ही न होगा तो मन को ठौर कहां।
बहुत सुंदर सृजन।

Sudha Devrani ने कहा…

जी भाई! अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद, आ.दीपक जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, कुसुम जी! हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुधा जी
आपकी यह रचना कैसे छूट गयी ...... बेहतरीन लिखा है ,सच मन बहुत अपनी मनमानी करता है । बेचारा तन सब झेलता रहता ।
सार्थक संदेश देती सुंदर रचना ।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.संगीता जी! आपको रचना अच्छी लगी तो श्रम साध्य हुआ अत्यंत आभार आपका।

Gajendra Bhatt "हृदयेश" ने कहा…

'तेरा क्या...दुर्गत जो हुआ मैं
तू त्याग मुझे उड़ जायेगा
ढूँढ़ कोई नवतन तू फिर से
यही प्रपंच रचायेगा।'... स्वचेतना से संघर्ष का अद्भुत आख्यान! खूबसूरत रचना है महोदया!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आदरणीय सर!

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