बुधवार, 11 अगस्त 2021

वक्त यही अब बोल रहा है

Eveningsky


कर ले जो भी करना चाहे

वक्त यही अब बोल रहा है

देख बुढ़ापा बैठ कनपटी 

पोल उम्र की खोल रहा है


जान ले अन्तर्मन में जाकर

क्यों तूने ये जीवन पाया

क्या करना बाकी था तुझको

जो फिर फिर धरती में आया

आधे-अधूरे मकसद तेरे

चित्त चितेरा डोल रहा है

कर ले जो भी करना चाहे

वक्त यही अब बोल रहा है


माँगा तूने ही ये सबकुछ

जिसपे धड़ीभर अश्रु बहाता

कर्मों के लेखे-जोखे से

सुख-दुख का है गहरा नाता

और किसी को वजह बनाकर

मन में जहर क्यों घोल रहा है

कर ले जो भी करना चाहे

वक्त यही अब बोल रहा है


साँझ सुरमयी हो जीवन की

तो सूरज सा तपता जा

भव कष्टों से जीव मुक्त हो

दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा

कर अनुवर्तन उन कदमों का

जिनका जीवन मोल रहा है

कर ले जो भी करना चाहे

वक्त यही अब बोल रहा है


देख बुढ़ापा बैठ कनपटी 

पोल उम्र की खोल रहा है।।


51 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!त्वरित प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।

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  2. अहा सुधाजी बहुत सुंदर सुज्ञान देते से भाव, आलोकित आध्यात्मिक मार्ग को अग्रसर करता लेखन।
    बहुत सुंदर सृजन।

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    1. तहेदिल से धन्यवाद कुसुम जी! आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती है।
      सादर आभार।

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  3. हार्दिक धन्यवाद आ.रविन्द्र जी!मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा कर विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने हेतु।
    सादर आभार।

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  4. "देख बुढ़ापा बैठ कनपटी
    पोल उम्र की खोल रहा है।।" .. बड़ी प्यारी "पंच लाइन" गढ़ी है आपने .. सम्पूर्ण संदेशपरक रचना भी .. सच में, कनपटी (अपभ्रंश - कनपट्टी) यानी कलमी के बाल पहले सफ़ेद होकर जीवन के भोर की होती संध्या की ओर इशारा करने लग जाते हैं .. पर आजकल तरह-तरह के उपलब्ध 'हेयर डाई' से इस क़ुदरती सच को अँगूठा दिखला देते हैं .. शायद ...😃😃
    साथ ही ..
    "साँझ सुरमयी हो जीवन की
    तो सूरज सा तपता जा" .. ये बिम्ब भी अच्छा है ... बस यूँ ही ...
    (एक Typoerror - धड़ीभर = घड़ीभर) 🙏🙏🙏

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    1. हार्दिक धन्यवाद आ.सुबोध जी !सुन्दर प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु। जी, धड़ीभर ही लिखा है मतलब धड़ी के हिसाब से ज्यादा से ज्यादा....
      आपने इतने ध्यान से रचना पढ़ीइसके लिए तहेदिल से आभार।

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  5. कारणों का लेखा जोखा बुढापा बोलता है या उस समय समय बहुत होता है और पुरानी यादें कर्मों को सामने लाती हैं ..,
    पर जो भी है उसका लेखा जोखा समझ कर जो ठीक हो सके उसे ठीक कर लेना बुरा नही है ...
    सुधार कर लेना चाहिए ... जब जैसे ...
    अच्छी रचना है बहुत ...

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    1. अत्यंत आभार एवं धन्यवाद नासवा जी!
      सुन्दर प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. सहृदय धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता जी! मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।

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  7. साँझ सुरमयी हो जीवन की

    तो सूरज सा तपता जा

    भव कष्टों से जीव मुक्त हो

    दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा

    कर अनुवर्तन उन कदमों का

    जिनका जीवन मोल रहा है

    कर ले जो भी करना चाहे

    वक्त यही अब बोल रहा है

    ...जीवन सत्य का सुंदर सटीक दर्शन कराती सुधार सार्थक रचना।

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    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी।

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  8. समय चक्र के साथ जीवन की वास्तविकता को भावपूर्ण प्रदर्शित करता सृजन मुग्ध करता है - - नमन सह आदरणीया।

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  9. सुधा जी ,
    आज तो आपने आगाह कर दिया कि अब तो कुछ सोच लिया जाय । यहाँ तो सुरमई सांझ भी बीत रही है रात की कालिमा उत्तर रही है धीरे धीरे । विचार करना तो बनता है ।
    यूँ तो शायद ये जीवन मृत्यु सब कर्मों का ही फल है । जो भी ज़िन्दगी में होता है सब कर्मों का फल ही होता है ऐसा कहा जाता है । फिर भी कहाँ कोई रख पाता है लेखा - जोखा ।
    बेहतरीन प्रस्तुति ।

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    1. हृदयतल से धन्यवाद आ.संगीता जी! सही कहा आपने कि कहाँ कोई रख पाता है कर्मों का लेखा जोखा....कहते हैं कर्मानुसार ही मिलते हैं सुख-दुख पर कहाँ हम स्वीकार करते हैं सुख दुख को अपने ही कर्मों का फल...हर दुख और परेशानी की कोई वजह ढूँढ ही लेते हैं हम और फिर उसी वजह पर सारा दोष मढ़कर हम अपनी ही अदालत में अपने कर्मफलों को भुला अपनी ही नजर में अपने को बाइज्ज़त बरी करते हैं...और वजह को दोषी मानते हुये आँसू बहाते हैं....
      अत्यंत आभार आपका।

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  10. साँझ सुरमयी हो जीवन की

    तो सूरज सा तपता जा

    भव कष्टों से जीव मुक्त हो

    दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा

    कर अनुवर्तन उन कदमों का

    जिनका जीवन मोल रहा है

    कर ले जो भी करना चाहे

    वक्त यही अब बोल रहा है---गहन सृजन...। वाह

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  11. सत्य की दर्शन कराती बहुत सुंदर रचना।

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  12. गोपेश मोहन जैसवाल14 अगस्त 2021 को 11:45 am बजे

    बहुत सुन्दर सीख भरा गीत !
    लेकिन हम तो बुढ़ापे में भी सुधरने से रहे. हम मोमिन की ज़ुबान में कहेंगे -
    उम्र सारी तो कटी, इश्क़-ए-बुतां में मोमिन,
    आख़िरी वक़्त में, क्या खाक़, मुसलमां होंगे.

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    1. आप तो आदर्श बन चुके सर!जो चाहा सब करके प्रेरणा बन चुके...ये पंक्तियाँ
      "कर अनुवर्तन उन कदमों का जिनका जीवन मोल रहा है"
      ये आप जैसे महानुभावों के कदमों का अनुवर्तन करने के लिए ही खुद से कहा गया है सर!
      साँझ सुरमयी हो जीवन की तो सूरज सा तपता जा..बस आपकी तरह साँझ सुरमयी करने के लिए
      स्वयं से कहा है आप तो बस मार्गदर्शन कर आशीर्वाद बनाए रखें सर!
      अत्यंत आभार आपका!

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  13. बहुत सुंदर जीवन का सार बताती रचना ।बहुत खूब।

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  14. आपकी ये रचना सुन्दर और सार्थक संदेश दे रही है। बहुत- बधाई आपको। बहुत बढ़िया। सादर।

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  15. आपने जो कहा, सच कहा सुधा जी। आंखें खोलकर इस सच को हमारी उम्र के लोग देख लें, पहचान लें; समझदारी तो इसी में है।

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  16. सुधा दी,जीवन की सच्चाई को बखूबी व्यक्त किया है आपने। मुझे तो यही पंक्तियां याद आ रही है कि देख बुढापा अब क्यू रोये...

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  17. साँझ सुरमयी हो जीवन की
    तो सूरज सा तपता जा
    भव कष्टों से जीव मुक्त हो
    दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा
    कर अनुवर्तन उन कदमों का
    जिनका जीवन मोल रहा है
    वाह !!अत्यंत सुन्दर सराहना से परे सीख भरी अभिव्यक्ति।

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  18. BAHUT SUNDAR RACHNA MAM.KABHI TIME NIKAL KE MERE BLOG PE BHI VISIT KARE AUR APNI PRATIKRIYA DE. THANK YOU

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    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार हरीश जी!
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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