कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है
देख बुढ़ापा बैठ कनपटी
पोल उम्र की खोल रहा है
जान ले अन्तर्मन में जाकर
क्यों तूने ये जीवन पाया
क्या करना बाकी था तुझको
जो फिर फिर धरती में आया
आधे-अधूरे मकसद तेरे
चित्त चितेरा डोल रहा है
कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है
माँगा तूने ही ये सबकुछ
जिसपे धड़ीभर अश्रु बहाता
कर्मों के लेखे-जोखे से
सुख-दुख का है गहरा नाता
और किसी को वजह बनाकर
मन में जहर क्यों घोल रहा है
कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है
साँझ सुरमयी हो जीवन की
तो सूरज सा तपता जा
भव कष्टों से जीव मुक्त हो
दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा
कर अनुवर्तन उन कदमों का
जिनका जीवन मोल रहा है
कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है
देख बुढ़ापा बैठ कनपटी
पोल उम्र की खोल रहा है।।
51 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!त्वरित प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।
अहा सुधाजी बहुत सुंदर सुज्ञान देते से भाव, आलोकित आध्यात्मिक मार्ग को अग्रसर करता लेखन।
बहुत सुंदर सृजन।
हार्दिक धन्यवाद आ.रविन्द्र जी!मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा कर विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने हेतु।
सादर आभार।
तहेदिल से धन्यवाद कुसुम जी! आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती है।
सादर आभार।
"देख बुढ़ापा बैठ कनपटी
पोल उम्र की खोल रहा है।।" .. बड़ी प्यारी "पंच लाइन" गढ़ी है आपने .. सम्पूर्ण संदेशपरक रचना भी .. सच में, कनपटी (अपभ्रंश - कनपट्टी) यानी कलमी के बाल पहले सफ़ेद होकर जीवन के भोर की होती संध्या की ओर इशारा करने लग जाते हैं .. पर आजकल तरह-तरह के उपलब्ध 'हेयर डाई' से इस क़ुदरती सच को अँगूठा दिखला देते हैं .. शायद ...😃😃
साथ ही ..
"साँझ सुरमयी हो जीवन की
तो सूरज सा तपता जा" .. ये बिम्ब भी अच्छा है ... बस यूँ ही ...
(एक Typoerror - धड़ीभर = घड़ीभर) 🙏🙏🙏
कारणों का लेखा जोखा बुढापा बोलता है या उस समय समय बहुत होता है और पुरानी यादें कर्मों को सामने लाती हैं ..,
पर जो भी है उसका लेखा जोखा समझ कर जो ठीक हो सके उसे ठीक कर लेना बुरा नही है ...
सुधार कर लेना चाहिए ... जब जैसे ...
अच्छी रचना है बहुत ...
अति उत्तम आ0
काल कहाँ से कहाँ ले आता है।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक धन्यवाद आ.सुबोध जी !सुन्दर प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु। जी, धड़ीभर ही लिखा है मतलब धड़ी के हिसाब से ज्यादा से ज्यादा....
आपने इतने ध्यान से रचना पढ़ीइसके लिए तहेदिल से आभार।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद नासवा जी!
सुन्दर प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।
सहृदय धन्यवाद एवं आभार आ.अनीता जी!
सहृदय धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता जी! मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।
साँझ सुरमयी हो जीवन की
तो सूरज सा तपता जा
भव कष्टों से जीव मुक्त हो
दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा
कर अनुवर्तन उन कदमों का
जिनका जीवन मोल रहा है
कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है
...जीवन सत्य का सुंदर सटीक दर्शन कराती सुधार सार्थक रचना।
समय चक्र के साथ जीवन की वास्तविकता को भावपूर्ण प्रदर्शित करता सृजन मुग्ध करता है - - नमन सह आदरणीया।
सुंदर संदेशप्रद रचना !!
वाह उम्दा भावाभिव्यक्ति
सुधा जी ,
आज तो आपने आगाह कर दिया कि अब तो कुछ सोच लिया जाय । यहाँ तो सुरमई सांझ भी बीत रही है रात की कालिमा उत्तर रही है धीरे धीरे । विचार करना तो बनता है ।
यूँ तो शायद ये जीवन मृत्यु सब कर्मों का ही फल है । जो भी ज़िन्दगी में होता है सब कर्मों का फल ही होता है ऐसा कहा जाता है । फिर भी कहाँ कोई रख पाता है लेखा - जोखा ।
बेहतरीन प्रस्तुति ।
साँझ सुरमयी हो जीवन की
तो सूरज सा तपता जा
भव कष्टों से जीव मुक्त हो
दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा
कर अनुवर्तन उन कदमों का
जिनका जीवन मोल रहा है
कर ले जो भी करना चाहे
वक्त यही अब बोल रहा है---गहन सृजन...। वाह
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.सर!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अनुपमा जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.विभा जी!
सत्य की दर्शन कराती बहुत सुंदर रचना।
हृदयतल से धन्यवाद आ.संगीता जी! सही कहा आपने कि कहाँ कोई रख पाता है कर्मों का लेखा जोखा....कहते हैं कर्मानुसार ही मिलते हैं सुख-दुख पर कहाँ हम स्वीकार करते हैं सुख दुख को अपने ही कर्मों का फल...हर दुख और परेशानी की कोई वजह ढूँढ ही लेते हैं हम और फिर उसी वजह पर सारा दोष मढ़कर हम अपनी ही अदालत में अपने कर्मफलों को भुला अपनी ही नजर में अपने को बाइज्ज़त बरी करते हैं...और वजह को दोषी मानते हुये आँसू बहाते हैं....
अत्यंत आभार आपका।
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आ.संदीप जी!
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार पम्मी जी!
बहुत सुन्दर सीख भरा गीत !
लेकिन हम तो बुढ़ापे में भी सुधरने से रहे. हम मोमिन की ज़ुबान में कहेंगे -
उम्र सारी तो कटी, इश्क़-ए-बुतां में मोमिन,
आख़िरी वक़्त में, क्या खाक़, मुसलमां होंगे.
बहुत सुंदर जीवन का सार बताती रचना ।बहुत खूब।
आप तो आदर्श बन चुके सर!जो चाहा सब करके प्रेरणा बन चुके...ये पंक्तियाँ
"कर अनुवर्तन उन कदमों का जिनका जीवन मोल रहा है"
ये आप जैसे महानुभावों के कदमों का अनुवर्तन करने के लिए ही खुद से कहा गया है सर!
साँझ सुरमयी हो जीवन की तो सूरज सा तपता जा..बस आपकी तरह साँझ सुरमयी करने के लिए
स्वयं से कहा है आप तो बस मार्गदर्शन कर आशीर्वाद बनाए रखें सर!
अत्यंत आभार आपका!
सस्नेह आभार भाई!
बेहतरीन सृजन
आपकी ये रचना सुन्दर और सार्थक संदेश दे रही है। बहुत- बधाई आपको। बहुत बढ़िया। सादर।
आपने जो कहा, सच कहा सुधा जी। आंखें खोलकर इस सच को हमारी उम्र के लोग देख लें, पहचान लें; समझदारी तो इसी में है।
बहुत सुंदर रचना दी।
हार्दिक आभार मनोज जी!
हार्दिक आभार विरेन्द्र जी!
जी, अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
तहेदिल से धन्यवाद अनिल भाई!
सुधा दी,जीवन की सच्चाई को बखूबी व्यक्त किया है आपने। मुझे तो यही पंक्तियां याद आ रही है कि देख बुढापा अब क्यू रोये...
वाह!सुधा जी ,बहुत खूब!!
साँझ सुरमयी हो जीवन की
तो सूरज सा तपता जा
भव कष्टों से जीव मुक्त हो
दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा
कर अनुवर्तन उन कदमों का
जिनका जीवन मोल रहा है
वाह !!अत्यंत सुन्दर सराहना से परे सीख भरी अभिव्यक्ति।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार शुभा जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार मीना जी!
BAHUT SUNDAR RACHNA MAM.KABHI TIME NIKAL KE MERE BLOG PE BHI VISIT KARE AUR APNI PRATIKRIYA DE. THANK YOU
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार हरीश जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सत्य को उजागर करती रचना
सादर आभार एवं धन्यवाद आ.कैलाश जी !
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