मन बना अभी बंजारा।
लोगअबला ही समझते,
चाहे दें सबको सहारा।
जन्म जिस घर में लिया,
उस घर से तो ब्याही गयी।
सम्मान गृहलक्ष्मी मिला,
और पति घर लायी गयी।
कल्पना के गाँव में भी,
कब बना है घर हमारा।
लोग अबला ही समझते,
चाहे दें सबको सहारा।
कल पिता आधीन थी वह
अब पति आश्रित बनी।
चाहे जैसा वैसा करती,
अपने मन की कब सुनी।
और मन फंसे भंवर में,
ढूँढ़ता कोई किनारा।
कल्पना के गाँव में भी,
कब बना है घर हमारा ।
लोग-----------
कोमलांगी हैं मगर वो,
वीरांगना तक है सफर।
कोई कब समझा ये मन,
सिर्फ तन पे जाती नजर।
सीता माता या गार्गी,
ध्यान में जीवन गुजारा।
कल्पना के गाँव में भी,
कब बना है घर हमारा।
लोग अबला ही समझते,
चाहे दें सबको सहारा।।
28 टिप्पणियां:
जन्म जिस घर में लिया,
उस घर से तो ब्याही गयी
सम्मान गृहलक्ष्मी का मिला,
फिर पति के घर लायी गयी
कहने को दो घर और दो कुल,
पर मन अभी भी है बनजारा। बहुत सुंदर
कहने को दो घर और दो कुल,
पर मन अभी भी है बनजारा
कल्पना के गाँव में भी,
कब बना है घर हमारा
बहुत ही मार्मिक और सटीक रचना सखी। 👌👌👌सदियों से एक नारी हमेशा एक घर की तलाश में रहती है। सचमुच दो कुलों का नाम भी उसे बेघर ही रखता है। पिता , भाई , पति की अधीनता से लेकर बेटे तक उम्र बहुधा अधीनता में ही चली जाती है। सरल, सहज रचना सुधा जी , जो हर नारी के मन की आवाज है। हार्दिक शुभकामनायें🙏🙏💐💐
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
भारतीय समाज में नारी का सच।
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन सखी
सस्नेह आभार भाई!
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सखी ! रचना का सार स्पष्ट कर उत्साहवर्धन हेतु...🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹
हृदयतल से धन्यवाद श्वेता जी ! पाँच लिंको के आनंद जैसे प्रतिष्ठित मंच पर मेरी रचना साझा करने के लिए।
सस्नेह आभार आपका।
जी, विश्वमोहन जी !अत्यन्त आभार एवं धन्यवाद आपका।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सखी!
कल्पना के गाँव में भी ,
कब बना है घर हमारा
लोगअबला ही समझते,
चाहे दें सबको सहारा
यथार्थ प्रस्तुत करता बहुत सुन्दर सृजन ।
बहुत बहुत सुंदर सार्थक नवगीत सृजन सुधाजी।
भाव प्रणव।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार मीना जी!
प्रोत्साहन हेतु...।
आभारी हूँ कुसुम जी !प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आपका...।
वाह!सुधा जी ,बहुत सुंदर ! नारी जीवन की यही कहानी है ।
सुंदर लेखन
कुसुम दी, नारी जीवन की व्यथा, कथा और असलियत सब कुछ बहुत ही सुंदर शब्दों में व्यक्त की हैं आपने।
बहुत बढ़िया
नारी की ये व्यथा बहुत वर्षो बाद खुल कर सामने आ रही है।
अब तक नारी ने खुद को आश्रित होना अच्छा माना था अब कुछ हलचल सी मचने लगी है।
बहुत शानदार जानदार रचना।
वाह ! क्या बात है ! बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति हुई है । बहुत खूब आदरणीया ।
हार्दिक धन्यवाद शुभा जी !
सस्नेह आभार ।
हृदयतल से धन्यवाद आदरणीय विभा जी!
सादर आभार।
बहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी !
शायद आपने गलती से आदरणीय कुसुम जी का नाम लिखा है रचना पढने व सुन्दर टिप्पणी के लिए अत्यंत आभार आपक।
अत्यंत आभार आपका ओंकार जी!
धन्यवाद आपका।
सुन्दर प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक धन्यवाद रोहिताश जी !
सादर आभार।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद सर!उत्साहवर्धन हेतु।
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (13-04-2020) को 'नभ डेरा कोजागर का' (चर्चा अंक 3670) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
हृदयतल से धन्यवाद रविन्द्र जी! मेरी रचना साझा करने हेतु....
सादर आभार।
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