पर आज कुदरत ने ढाया
है ये कैसा कहर
है ये कैसा कहर
अब लगता है भूखे ही मरे होते
अपने घर-गाँवों में
यूँ मीलों पैदल न चलते
छाले पड़े पाँवों में......
आज अपने घर-गाँव वाले ही
हमें इनकार करते हैं
जहाँ हो जिस हाल में हो वहीं रहो
अपना प्रतिकार करते हैं
कहते हैं बाहर नहीं निकलना
यही सच्ची देशभक्ति है
तो हम भी हैं देशभक्त इतनी तो
हम में भी शक्ति है
अब जहाँ है वही रहकर हम
देशभक्ति निभायेंगे
हमें भी है स्वदेश से अथाह प्रेम
इसलिए इस कोरोना को मिटायेंगे
इसलिए इस कोरोना को मिटायेंगे
हम अपनों के खातिर एक दूसरे से
दूरियाँ बढ़ायेंगे...
इस महामारी से हरसम्भव
स्वदेश को बचायेंगे....
दूरियाँ बढ़ायेंगे...
इस महामारी से हरसम्भव
स्वदेश को बचायेंगे....
हमें क्या गम जब अपने पीएम
साथ खड़े हैं हमारे
देश की बड़ी हस्तियाँँ भी ,
दे रही हैं हमें सहारे
अपने डॉक्टर्स स्वयं को भूल
फिक्र करते हैं हमारी
फिर हम और हमारी हरकतें क्यों बने
देश की लाचारी ?
हाँ कुछ कमियाँ हैं सिस्टम की
पर हम उन्हें क्यों उछालें?
घर की बातें हैं सब मिल-बैठ
फिर कभी सुलझा लें
आज परीक्षा की घड़ी में हम
अपना देशपरिवार तो बचा लें !
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई
हैं हम सदियों से भाई-भाई,
हैं हम सदियों से भाई-भाई,
जातिवाद का बचकाना छोड़
आओ कुछ देशभक्ति निभालें
आओ आज सब मिलकर देशभक्ति निभालें।
इस महामारी से अपने देश को बचा लें
इस महामारी से अपने देश को बचा लें
22 टिप्पणियां:
तुम खाओ दूध- मलाई
समाजसेवा का ढोल बजाओ
फ़ोटो खिंचवा देवता कहाओ
और हम देशभक्ति निभाए..?
विचित्र लीला इस सभ्य समाज की सुधा दी।
आज अपने घर-गाँव वाले ही
हमें इनकार करते हैं
जहाँ हो जिस हाल में हो वहीं रहो
अपना प्रतिकार करते हैं
कहते हैं बाहर नहीं निकलना
यही सच्ची देशभक्ति है।
बहुत सुंदर। आजकल पहाड़ में कमोबेस यही स्थिति आन पड़ी है। और डर भी स्वाभविक है।
यथार्थ का सजीव चित्रण करती पंक्तियाँ,बहुत खूब।
जातिवाद का बचकाना छोड़
आओ कुछ देशभक्ति निभालें
सच में सुधा जो सबसे पहले देश है , जान तो जहान हैं
जी, शशि जी! विचित्र लीला है। पर अपना अपना भाग्य।....
हम औरों की देखादेखी क्यों करें जो हमसे बन पडे़गा उतना तो कर सकते हैं इन्सानियत के नाते....।
अत्यंत आभार आपका।
जी , रितु जी! सही कहा जान है तो जहान है
तहेदिल से धन्यवाद, आपका उत्साहवर्धन हेतु...
सस्नेह आभार।
आओ आज सब मिलकर देशभक्ति निभालें।
इस महामारी से अपने देश को बचा लें
सही कहा सुधा दी आज जरूरत देश को बचाने की हैं।
बहुत बहुत धन्यवाद, ज्योति जी! उत्साह वर्धन हेतु....
सस्नेह आभार।
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(०५-०४-२०२०) को शब्द-सृजन-१४ "देश प्रेम"( चर्चा अंक-३६६२) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
जी। देशभक्त अवश्य देशभक्ति निभायेंगे। सुन्दर सृजन।
कहते हैं बाहर नहीं निकलना
यही सच्ची देशभक्ति है
तो हम भी हैं देशभक्त इतनी तो
हम में भी शक्ति है
अब जहाँ है वही रहकर हम
देशभक्ति निभायेंगे...
बहुत हृदयस्पर्शी सृजन सुधा जी ।
सामयिक और भावपूर्ण रचना. बहुत बधाई.
सुन्दर प्रस्तुति
सामयिक रचना ... बेहद भावपूर्ण और सशक्त भी!!
आभारी हूँ आदरणीय जोशी जी !
हार्दिक धन्यवाद आपका।
तहेदिल से धन्यवाद मीना जी !
सादर आभार।
हार्दिक धन्यवाद जेन्नी शबनम जी !
सादर आभार।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आदरणीय ओंकार जी !
सहृदय धन्यवाद सदा जी !
सादर आभार।
अब लगता है भूखे ही मरे होते
अपने घर-गाँवों में
यूँ मीलों पैदल न चलते
छाले पड़े पाँवों में...
प्रिय सुधा जी , वह कवि मन ही क्या जो दूसरों के दर्द से अनजान रहे | मार्मिक रचना उन श्रमवीरों के नाम जिनमें हौसला है , जीवन की हर विपति से निपटने का | जिन्होंने कर्मनगरी मे रहकर भी अपनी माटी को विस्मृत नहीं किया है | उनकी जीवटता को नमन और आपकी काव्य प्रतिभा को , जो अभिव्यक्ति का रास्ता ढूंढ ही लेती है | हार्दिक स्नेह के साथ |
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया पाकर मेरी रचना सार्थक हुई सखी!हृदयतल से धन्यवाद आपका।
सस्नेह आभार।
आज तो सभी को कंधे से कह्न्धा मिला के चलने का समय है ...
मानवता भुई यही कर रही अहि सब साथ चलें ... अपने लीडर का साथ दें ... वो सबसे अच्छा करने की कोशिश कर रहा है ... उसका विरोध कैसा ... बहुत ही भावपूर्ण, आशा लिए आपके शब्द ....
हृदयतल से धन्यवाद नासवा जी !उत्साहवर्धन हेतु
सादर आभार।
एक टिप्पणी भेजें